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विमर्श

Most Polluted Cities In India : पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक देशों में शामिल हुए हम, 100 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 43 सिर्फ भारत में

Janjwar Desk
27 Oct 2021 9:18 AM GMT
Most Polluted Cities In India : पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक देशों में शामिल हुए हम, 100 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 43 सिर्फ भारत में
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(दुनिया के सबसे अधिक 100 खतरनाक देशों में 99 एशिया में हैं, और इनमें सबसे अधिक यानि 43 शहर अकेले भारत में) 

Most Polluted Cities In India : रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से आर्थिक और सामाजिक तनाव बढेगा, इससे राजनीतिक संकट खड़ा होगा और बड़ी जनसंख्या अस्थिर और उग्र होती जायेगी

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Most Polluted Cities In India : हाल में ही अमेरिका में बाइडेन प्रशासन (Biden Administration of USA) ने एक रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है जिसके अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि (Climate Change & Global Warming) के प्रभावों से पूरी दुनिया में अराजकता बढ़ेगी, पर सबसे अधिक असर 11 देशों पर पड़ेगा, जिनमें भारत भी शामिल है। इस रिपोर्ट को अमेरिका की ख़ुफिया संस्थानों और पेंटागन (Intelligence agencies & Pentagan) ने संयुक्त तौर पर तैयार किया है, और यह वहां के खुफिया विभाग और रक्षा से जुड़े संस्थानों की जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर पहली रिपोर्ट है।

इसके अनुसार अमेरिका समेत पूरी दुनिया तापमान बृद्धि, लगातार सूखा और चरम प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हो रही है, इस कारण लोगों का पलायन और विस्थापन (migration) हो रहा है और पानी और खाद्यान्न जैसे संसाधनों पर अधिकार की कवायद चल रही है – जाहिर है इससे आर्थिक और सामाजिक अराजकता लगातार बढ़ रही है, पर वर्ष 2030 के बाद से इसका असर भयानक होगा। इन सब समस्याओं के असर से दुनिया अस्थिर होती जायेगी और आपस में टकराव बढेगा। इन सबसे वैश्विक समरसता प्रभावित होगी।

इस रिपोर्ट के अनुसार अस्थिरता तो पूरी दुनिया में बढ़ेगी, पर 11 देश ऐसे हैं जिसमें इसका प्रभाव सबसे अधिक होगा। ये देश हैं – अफगानिस्तान, म्यांमार, भारत, पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया, ग्वाटेमाला, हैती, होंडुरास, निकारागुआ, कोलंबिया और इराक। पूरी सूची से स्पष्ट है कि सबसे प्रभावित क्षेत्रों में भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण अमेरिका और मध्य-पूर्व (Indian sub-continent, South America & Middle-East) है। रिपोर्ट के अनुसार जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के भौतिक प्रभाव – यानि बाढ़, सूखा, चक्रवात, अत्यधिक गर्मी, बादलों का फटना और भू-स्खलन – जैसे प्रभाव बढेंगे, वैसे-वैसे भौगोलिक अस्थिरता बढ़ती जायेगी। इसका असर केवल प्रभावी देशों पर ही नहीं सीमित रहेगा, बल्कि अमेरिका और उसके मित्र देशों (USA & its allies) पर भी पड़ेगा क्योंकि इन देशों में उदारवादी सरकारें हैं और शरणार्थियों को शरण देने की योजनायें हैं।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन का असर हरेक क्षेत्र में पड़ रहा है। मध्य अफ्रीकी देश लगातार सूखे से जूझ रहे हैं, प्रशांत महासागर के देश समुद्र तल बढ़ने के कारण डूबते जा रहे हैं, मध्य-पूर्व के देशों में पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाली कमाई घटने लगी है और ये देश लगातार सूखा और अत्यधिक गर्मी से भी प्रभावित हैं। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से आर्थिक और सामाजिक तनाव बढेगा, इससे राजनैतिक संकट खड़ा होगा और बड़ी जनसंख्या अस्थिर और उग्र होती जायेगी। इन सबसे क्षेत्रीय स्तर पर सत्ता का बैलेंस प्रभावित होने लगेगा और संभव है अनेक देशों में सरकार और सरकारी तंत्र ही चरमरा जाए। बड़े पैमाने पर आबादी का विस्थापन केवल देशों के बाहर ही नहीं बल्कि देशों के भीतर भी होगा, और ऐसा हो भी रहा है।

प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज (Proceedings of National Academy of Sciences) में 4 अक्टूबर 2021 को प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार आबादी के सन्दर्भ में दुनिया के सबसे तेजी से शहरों की बड़ी आबादी अत्यधिक गर्मी की चपेट में है। इस अध्ययन के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टिट्यूट (Earth Institute of Columbia University) के वैज्ञानिकों ने दुनिया के 13115 शहरों के आबादी, इंफ्रास्ट्रक्चर, तापमान जैसे पैरामीटर का विस्तृत अध्ययन किया। इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग शहरों में आ रहे हैं, जिससे अत्यधिक गर्मी झेलने वाली जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है, और इससे मरने वालों के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं।

अत्यधिक गर्मी के कारण मानव उत्पादकता (Human Productivity) प्रभावित होती जा रही है और अंत में अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। इस अध्ययन के अनुसार शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर के जाल, सडकों, भवनों और कम पेड़ों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तापमान अधिक रहता है। वर्ष 1983 से 2016 के बीच अत्यधिक गर्मी झेलने वाली आबादी की संख्या में 200 प्रतिशत की बृद्धि हो गयी है। इस समय दुनिया की अक-चौथाई आबादी साल-दर-साल अत्यधिक गर्मी की मार झेल रही है। अत्यधिक गर्मी की मार झेलने वाले शहरों में से अधिकतर शहर भारत, बंगलादेश, चीन, पाकिस्तान और म्यांमार समेत दक्षिण एशिया में स्थित हैं। दक्षिण एशिया के बाद मध्य-पूर्व के शहर सबसे अधिक प्रभावित हैं।

पर्यावरण के लिहाज से दुनिया के सबसे अधिक 100 खतरनाक देशों में 99 एशिया में हैं, और इनमें सबसे अधिक यानि 43 शहर अकेले भारत में हैं। दुनिया के सबसे अधिक खतरनाक 20 देशों में से 13 भारत में हैं। पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे खतरनाक शहर इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता है। यहाँ वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, अत्यधिक गर्मी, बाढ़ की समस्या है और यह शहर तापमान बृद्धि के प्रभावों के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है। जकार्ता में भूजल का दोहन इस हद तक किया गया है कि इसे दुनिया का सबसे तेजी से डूबने वाला शहर बताया जाता है। दूसरे स्थान पर दिल्ली है, तीसरे स्थान पर चेन्नई है, छठे स्थान पर आगरा, दसवें स्थान पर कानपुर, 22वें स्थान पर जयपुर, 24वें स्थान पर लखनऊ और 27वें स्थान पर मुंबई है।

इस सूचि में पहले 100 शहरों में केवल पेरू की राजधानी लिमा ऐसा शहर है, जो एशिया में नहीं है। पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक 100 शहरों में 43 भारत में हैं और भारत के बाद सबसे अधिक 37 शहर चीन में हैं। इस रिपोर्ट को बिज़नस रिस्क का विश्लेषण करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट (Verisk Maplecraft) ने तैयार किया है। इसके मुख्य लेखक विल निकोलस के अनुसार भारत और चीन में एक बड़ा अंतर है।

भारत में भविष्य की योजनाओं में पर्यावरण (Environment) सुधारने के मुद्दे शामिल नहीं हैं तो जाहिर है इस और सरकारों का ध्यान नहीं है, प्राथमिकता भी नहीं है। भारत में पहले जो पर्यावरण सुधारने के जो कदम उठाये गए हैं, उनका कहीं असर नहीं दिखता और भारत में जनता भी पर्यावरण के सन्दर्भ में उदासीन है। दूसरी तरफ चीन ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपने शहरों में पर्यावरण पर लगातार ध्यान दे रहा है और इसके नतीजे भी जमीनी स्तर पर दिख रहे हैं। चीन में तेजी से बढ़ता माध्यम वर्ग अब जोर शोर से साफ़ हवा और पानी की मांग करने लगा है, और यह मांग सरकार की हरेक योजना और हरेक पहल में स्पष्ट होता है। चीन में सरकारें किसी बहुत प्रदूषणकारी उद्योब को बंद करने से नहीं हिचकतीं, जबकि भारत में ऐसे उद्योग लगातार चलते रहते हैं।

बिज़नेस रिस्क का विश्लेषण करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट के अनुसार यह विश्लेषण दुनियाभर की सरकारों को पर्यावरण के बारे में आगाह करता है और अपना कारोबार बढाने और निवेश के सन्दर्भ में बहुत अधिक पर्यावरण संबंधी समस्याओं वाले शहर में कारोबार करने के लिए आगाह करता है। दुनियाभर के शहरों में लगभग 50 प्रतिशत आबादी रहती है और शहर देशों के अर्थव्यवस्था (Economy) का आधार हैं। अब कारोबार करने या इसे बढाने के पहले अधिकतर कम्पनियां स्थानीय पर्यावरण पर ध्यान देती हैं और यह भी परखती हैं कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से होने वाले प्रभावों के लिए शहर कितने तैयार हैं। इस विश्लेषण में दुनिया के 576 शहरों का विश्लेषण किया गया और 414 शहर ऐसे हैं जहां पर्यावरण की समस्या गंभीर है। इन 414 शहरों की सम्मिलित आबादी लगभग 1.4 अरब है। इस विश्लेषण के लिए जानलेवा प्रदूषण, घटते जल संसाधन, तापमान बृद्धि, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की क्षमता और जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता का विश्लेषण किया गया।

पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक क्रम से एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका है। वायु प्रदूषण (Air Pollution) से प्रभावित सबसे अधिक शहर भारत में हैं, पर जल संकट से जूझते शहरों में सबसे अधिक शहर चीन से हैं। जल प्रदूषण के सन्दर्भ में सबसे प्रदूषित 50 शहरों में से 35 चीन के हैं और जल संकट के सन्दर्भ में 15 सर्वाधिक प्रभावित शहरों में से 13 चीन में हैं। जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के सन्दर्भ में समसे प्रभावित शहर अफ्रीका में सहारा रेगिस्तान के इर्द-गिर्द बसे हैं। ऐसे 45 सर्वाधिक प्रभावित 45 शहरों में से 40 इस क्षेत्र में हैं। यूरोप के अधिकतर देश पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे सुरक्षित हैं।

अपने देश में प्रधानमंत्री मोदी के प्रधानमंत्री बनाने के बाद से स्मार्ट शहरों (Smart cities) के खूब सब्जबाग दिखाए गए, खूब नारे लगे और पैसे भी खर्च किये गए। पर, बीजेपी सरकार की परंपरा के अनुरूप स्मार्ट शहर नारे और विज्ञापनों में ही सिमट गए, अब तो कोई इसकी चर्चा भी नहीं करता है। अलबत्ता हमारे देश के शहर पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, प्राकृतिक आपदाओं और पानी की किल्लत के सन्दर्भ में दुनिया के अन्य शहरों की अपेक्षा अधिक खतरनाक हो गए। जाहिर है, न्यू इंडिया के तथाकथित स्मार्ट शहर दरअसल पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे अधिक संकटग्रस्त होते चले गए।

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