आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑटोमेशन से अमेरिका-यूरोप में 30 करोड़ नौकरियाँ होंगी कम, दक्षिणपंथी मीडिया इसके फायदे गिनाने में बिजी
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Most of the conservative governments and media support unregulated Artificial Intelligence use. हाल में ही वर्जिनिया टेक्निकल यूनिवर्सिटी के मार्केटिंग विभाग के विशेषज्ञों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मीडिया, जनता और सत्ता में स्वीकार्यता पर एक विस्तृत अध्ययन किया है, और इसे जर्नल ऑफ़ सोशल साइकोलॉजी एंड पर्सनालिटी साइंस में प्रकाशित किया है। इसके मुख्य लेखक एंजेला यी, श्रेयस गोयनका और मारिओ पंदेलेरे हैं।
इस अध्ययन के अनुसार उदार विचारधारा वाला निष्पक्ष मीडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कटु आलोचक होता है, जबकि पुरातनपंथी और दक्षिणपंथी विचारधारा वाला मीडिया इसे सहजता से स्वीकारता है। निष्पक्ष मीडिया इसके दुरुपयोग, संभावित खतरे, बेरोजगारी और तमाम असमानताओं में इसके योगदान को उजागर करता है, जबकि दक्षिणपंथी मीडिया इसके फायदों को जनता के सामने पेश करता है।
इस अध्ययन के अनुसार मीडिया व्यापक तौर पर किसी विषय पर जिस तरह के समाचार या विचार प्रकाशित करता है, अधिकतर जनता उसे ही स्वीकार करती है। समस्या यह है कि इस दौर में दक्षिणपंथी, लोकलुभावनवादी और पुरातनपंथी विचारधारा वाली सरकारों का दुनिया के अधिक देशों में दबदबा है। ऐसी सत्ता में सबसे पहले मेनस्ट्रीम मीडिया अपना पाला बदलती है और स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को छोड़कर सत्ता के विचारों को समाचार और विचार बनाने लगती है। ऐसी सत्ता में मीडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की खूबियाँ बयान करती है और फिर सत्ता भी इसे बढ़ावा देने का काम करती है और इससे सम्बंधित नीतियाँ तैयार करती है। हमारे देश में यही हो रहा है, जिस समय पूरी दुनिया में इसके व्यापक और निर्बाध उपयोग पर चिंता जाहिर की जा रही है, मोदी सरकार इसे लगातार बढ़ावा दे रही है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के “डीपफेक” जैसे कुछ बड़े नुकसान तो स्पष्ट हैं, पर यह परोक्ष तौर भी समाज को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे हरेक तरह की असमानता बढ़ रही है। इसे आर्थिक असमानता में योगदान पर तो बहुत कुछ लिखा गया है, पर नस्ली और लैंगिक असमानता पर शायद ही कभी चर्चा की जाती है। अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि इसके विकास, समाचार प्रसार और इसके विशेषज्ञों में श्वेत पुरुषों का बोलबाला है। इस पूरे क्षेत्र से महिलायें और अश्वेत और भूरे वर्ण का समाज गायब है। अनुमान है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास के क्षेत्र में जितने विशेषज्ञ शामिल हैं, उनमें से 25 प्रतिशत से भी कम महिलाओं की संख्या है, अश्वेतों की संख्या और भी कम है। इससे सम्बंधित समाचारों में भी महिलायें गायब रहती हैं – इस वर्ष अबतक इससे सम्बंधित प्रकाशित समाचारों में महिलाओं के उद्धरण की तुलना में पुरुषों के उद्धरण की सख्या 3.7 गुणा अधिक है।
प्रधानमंत्री मोदी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों को नियंत्रित करने के लिए एक वैश्विक समझौते की बात तो करते हैं, पर आज तक इसके प्रारूप पर भी काम नहीं शुरू हुआ है। इसी बीच में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, इटली, चेक गणराज्य, एस्तोनिया, पोलैंड, ऑस्ट्रेलिया, चिली, इजराइल, नाइजीरिया और सिंगापुर जैसे 18 देशों ने इसके सुरक्षित उपयोग से सम्बंधित एक समझौता किया है। यूरोपियन यूनियन भी इसके लिए नियमों का प्रारूप तैयार कर रहा है और फ्रांस, जर्मनी और इटली ने एक अलग से समझौता किया है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने इसे रोजगार को निगलने वाली टेक्नोलॉजी करार दिया है। वैश्विक स्तर पर कार्यरत 800 कंपनियों के 1 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के बीच सर्वेक्षण के बाद इकोनॉमिक फोरम ने बताया है कि 25 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों ने इससे बेरोजगारी बढ़ने की आशंका व्यक्त की है। गोल्डमैन सैश की एक रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑटोमेशन के कारण अमेरिका और यूरोप में जल्दी ही 30 करोड़ नौकरियाँ कम हो जायेंगी। आईबीएम ने हाल में ही कहा है कि भविष्य में यहाँ नई नियुक्तियों की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि 30 प्रतिशत से अधिक काम अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा किया जाएगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक माने जाने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक ज्यॉफ्री हिन्टन ने गूगल छोड़ने के बाद इस टेक्नोलॉजी के खतरों पर व्यापक चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि इस टेक्नोलॉजी के व्यापक उपयोग के बाद परम्परागत सत्य की परिभाषा बदल जायेगी और हम आसानी से झूठ को स्वीकार करने लगेंगे। चैटबौट आसानी से गलत सूचनाएं व्यापक तौर पर फैलाने में सक्षम हैं, अब तो तमाम गायकों की गायक की अनुमति के बिना ही नए गाने सामने आने लगे हैं, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा पत्रकार की जानकारी के बिना ही वरिष्ठ पत्रकारों की आवाज में हस्तियों के इंटरव्यू लिए जाने लगे हैं।