अरुणाचल प्रदेश में जदयू के 6 विधायकों को तोड़कर भाजपा ने दिया संकेत, बिहार में भी दोहराएगी यही खेल
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
भाजपा किसी गठबंधन धर्म पर विश्वास नहीं करती, न ही उसे नैतिकता से कोई मतलब है। मोदी राज में सिर्फ धन बल के सहारे जनादेश को निरर्थक साबित करने के उदाहरण कई राज्यों में देखे जा चुके हैं। आम मतदाता भले ही किसी पार्टी विशेष के नेता को चुनता है, अंततः वह नेता पैसे के बदले बिक जाता है। नोटबंदी के बाद सारा पैसा भाजपा की तिजौरी में ही है और वह लोकतंत्र का मज़ाक बनाकर विपक्ष के जन प्रतिनिधियों को खरीदकर कई छोटी पार्टियों के वजूद को ही खत्म करती जा रही है।
अरुणाचल प्रदेश में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को एक बड़ा झटका देते हुए उसके सात विधायकों में से छह सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए हैं। राज्य विधान सभा द्वारा जारी बुलेटिन में इस बात की जानकारी दी गई है। जद (यू) भाजपा की सहयोगी है और दोनों मिलकर बिहार में सरकार चला रही हैं।
जदयू के जिन विधायकों ने पाला बदल लिया है, वे हैं रुमगोंग विधानसभा सीट से तालेम तबो, हाएंग मंगफी (चायांग ताजो), जिके ताको (ताली), दोरजी वांग्दी खर्मा (कलकटंग), डोंगरू सियनगजू (बोमडिला) और मारियांग-गेकू सीट से कांगगोंग ताकू। बुलेटिन में बताया गया है। इससे पहले नवंबर में जदयू ने 'पार्टी विरोधी' गतिविधियों के लिए सियनगजू, खर्मा और ताकू को कारण बताओ नोटिस जारी किए थे और उन्हें निलंबित कर दिया था।
जदयू के छह विधायकों ने इससे पहले तालेम तबो को नए विधानमंडल दल के नेता के रूप में चुना था। ऐसा उन्होंने कथित तौर पर पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों को सूचित किए बगैर ही किया था।
जदयू के इन छह विधायकों के साथ ही पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) के इकलौते विधायक लिकाबाली निर्वाचन क्षेत्र से कर्डो न्यागियोर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। इस महीने की शुरुआत में क्षेत्रीय पार्टी द्वारा पीपीए विधायक को भी निलंबित कर दिया गया था।
भाजपा के अरुणाचल प्रदेश के अध्यक्ष बी आर वाघे के हवाले से कहा, 'हमने उनके पार्टी में शामिल होने के इरादे से लिखे गए पत्रों को स्वीकार किया है।' बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने 2019 के विधानसभा चुनावों में 15 में से सात सीटें जीतीं, और भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जिसने 41 सीटें हासिल की थीं।
विधायकों के पाला बदलने के बाद भाजपा के पास अब 60 सदस्यीय सदन में 48 विधायक हैं, जबकि जदयू के पास केवल एक विधायक बचा है। कांग्रेस और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के चार-चार सदस्य हैं। नीतीश कुमार ने शुक्रवार को इस खबर को नजरंदाज करने का दिखावा किया। 'हम अपनी प्रस्तावित बैठक पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उनको जहां जाना था चले गए।'
इस बीच, बिहार में विपक्ष कांग्रेस-राजद ने कहा कि अरुणाचल का घटनाक्रम बिहार में आने वाले समय के घटनाक्रम का संकेत देता है। राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, 'भाजपा ने गठबंधन धर्म का उल्लंघन करते हुए, यह स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है कि उसे नीतीश कुमार की बिलकुल परवाह नहीं है। दूसरी तरफ अपने विधायकों के बिक जाने पर नितीश प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भी घबराहट महसूस कर रहे हैं।'
'हम अरुणाचल प्रदेश के घटनाक्रम पर आश्चर्यचकित हैं। यह गठबंधन धर्म के बुनियादी नियमों के विरुद्ध है। अरुणाचल प्रदेश सरकार खतरे में नहीं थी और हम एक दोस्ताना विपक्ष की भूमिका निभा रहे थे, 'जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने बताया।
अरुणाचल में यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है, जबकि पिछले माह ही बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा और जदयू की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 125 सीटों के साथ कांटों के मुकाबले में बहुमत पाने में कामयाब रहा था। हालांकि इस चुनाव में नीतीश की अगुवाई वाले जदयू को काफी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन भाजपा ने जबर्दस्त कामयाबी हासिल की।
जदयू ने विधानसभा चुनाव 2020 में 115 प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 43 जीते और 72 चुनाव हार गए। वहीं, उनकी सहयोगी पार्टी भाजपा की बात करें, तो इस चुनाव में भाजपा 110 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें उन्होंने 74 सीटों पर जीत हासिल की। दूसरी ओर, राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन को 110 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस गठबंधन में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटों पर जीत मिली थी।
इससे साफ पता चलता है कि भाजपा आने वाले समय में बिहार में भी जदयू विधायकों को खरीद कर नितीश कुमार के पैरों के नीचे से जमीन खींच सकती है। भाजपा के लिए अवसरवाद ही सबसे बड़ा धर्म है। मोदी-शाह की जोड़ी ने जिस तरह देश भर में कांग्रेस समेत विभिन्न पार्टियों के भ्रष्ट नेताओं को भाजपा में शामिल किया है या विधायकों को खरीद कर सरकार बनाने-गिराने का खेल जारी रखा है, उसे देखते हुए नितीश की पार्टी को भी भाजपा पूरी तरह निगल ले, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।