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विमर्श

एस. एस. पिलस्ना पर क्रिसमस: Christmas on S.S. Pilsna

Janjwar Desk
26 Dec 2021 11:37 AM IST
एस. एस. पिलस्ना पर क्रिसमस:  Christmas on S.S. Pilsna
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Christmas on S.S. Pilsna:एस. एस. पिलस्ना यह उस इतालियन जहाज का नाम था जिस पर अपनी टोली के साथ गांधीजी ब्रिन्डिसि से सवार हुए और भारत लौटे | यह 1931 के क्रिसमस का समय था |

वरिष्ठ पत्रकार मनोहर नायक की टिप्पणी

Christmas on S.S. Pilsna:एस. एस. पिलस्ना यह उस इतालियन जहाज का नाम था जिस पर अपनी टोली के साथ गांधीजी ब्रिन्डिसि से सवार हुए और भारत लौटे | यह 1931 के क्रिसमस का समय था | वे लंदन में गोलमेज़ कान्फ्रेन्स के बाद वापसी में यूरोप से गुज़र रहे थे | भारत उन दिनों अत्यंत अशांत था... तीस हज़ार लोग जेलों में थे | सेंट जेम्स पैलेस में गांधीजी ने कहा था, ' वे ब्रिटिश प्रजा के बदले बाग़ी कहलाना चाहेंगे |' गांधीजी फ्रांस के विलेनयोबू में अपने मित्र रोमां रोलां से मिलने के लिए थोड़ी देर रुके थे | यहां उनकी भेंट रोलां के घनिष्ठ मित्र एडमोंड प्रिवेट और उनकी पत्नी से हुई | सौम्य, प्रसन्नवदन प्रिवेट विद्वान व्यक्ति थे | वे इतिहासकार, लेखक, पत्रकार और शांति कार्यकर्ता थे | उन्होंने गांधीजी पर फ्रेंच में दो पुस्तकें लिखीं थीं, ' Aux Indes avec Gandhi ' और ' Vie de Gandhi ' | दो नवम्बर 1980 के ' इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया ` में मनीष नंदी का लेख छपा था ' गांधी : एन अनटोल्ड स्टोरी ' ... मनीष नंदी के अनुसार गांधीजी पर एडमोंड कि इन दोनों पुस्तकों के बारे में भारत कतई अनभिज्ञ था | प्रिवेट 1889 में जन्मे थे और 1962 में उनकी मृत्यु हुई... तीस के दशक में अचानक वे गांधीजी के सम्पर्क में आये और संक्षिप्त साथ के बाद भारत में एकाएक गांधीजी की गिरफ़्तारी से यह संग टूट गया | चालीस के अंंतिम सालों में उन्होंने भारत आने की योजना बनायी पर एक हत्यारे की गोलियों कै कारण उनकी योजना का अकल्पित अंत हो गया | मनीष नंदी ने उन्हीं के वृत्तांत पर आधारित यह अद्भुत और दिलचस्प लेख लिखा |

रोमां रोलां के यहाँ जब गांधीजी ने बताया कि वे ब्रिन्डिसि से इतालवी बोट पर सवार होंगे तो प्रिवेट दम्पत्ति ने प्रस्ताव रखा कि वे रोम तक उनके साथ बतौर गाइड और दुभाषिया के चलते हैं | उन्होंने ज़रूरी छतरी के अलावा एक ब्रीफकेस में कुछ टूथब्रश और थोड़ा सा सामान रखा ... रोलां की बहन मेडलीन ने कोट दिया तो श्रीमती प्रिवेट नेयह कहकर मना कर दिया कि एक ही रात की तो बात है... जिस व्यक्ति के साथ उन्हें यात्रा करनी थी उसके बारे में वे बहुत कम जानती थीं | ट्रेन में गांधीजी ने उनसे कहा कि मैंने तो आपका देश देख लिया अब आप लोग कब मेरा देश देखने आ रहे हैं... एडमोंड ने कहा कि हम तो चाहते हैं पर इस ट्रिप के लिए अभी हमारे पास छह हज़ार फ्रैंक नहीं हैं | गांधीजी ने कहा, ' छह हज़ार फ्रैंक ! आप क्या सोचते हैं कि आप फ़र्स्ट क्लास में सफ़र करेंगे, होटलों में ठहरेंगे ! मेरे साथ आपको हमेशा थर्ड क्लास में, डेक पर सफ़र करना होगा और मेरे मित्रों के साथ ठहरना होगा, आप अपना हिसाब फिर लगाइये , ' हम देखना चाहेंगे कि आपको जोख़िम पसंद है या नहीं ' ... .यह कहते हुए गांधीजी ने कम्बल तान लिया और शांतचित्त सो गये, पर ये पति- पत्नी नहीं सो पाये, वे रात भर सोचते- मशविरा करते रहे | तड़के जब ट्रेन रोम में दाख़िल हुई तब वे जानते थे कि उन्हें क्या करना है | वीसा, कुछ ऊनी और साधारण कपड़े और कुछ चिट्ठियां डालने, तार करने के लिए पोस्ट ऑफ़िस का फेरा... और फिर प्रेविट दम्पत्ति गांधीजी के साथ एस. एस. पिलस्ना पर सवार हो गये | वहां डेक पर सुबह साढ़े तीन बजे मीरा बेन की अलार्म घड़ी सबको जगा देती... महादेव देसाई, प्यारेलाल, बर्नार्ड, शामराव , देवदास सब गांधीजी को घेरकर पालथी मारकर बैठ जाते |इनके चारों तरफ़ आलू के बोरे थे , ऊपर की मंज़िलों से नर्तकों की अंतिम टुकड़ी के संगीत की भारी आवाज़ सुनाई देती | ... मीरा बेन भजन गातीं, महादेव भाई गीता से पाठ पढ़ते |...गांधीजी जब धर्म की बात करते हैं तो वे जीवन की बात करते हैं... उन विचारों का उनके पास कोई अर्थ नहीं जो जीवन के लिए उपयोगी नहीं | अपने देश की जंगखोरी से बेज़ार दो आदर्शवादी जर्मन व्यक्ति उकताकर 'सत्य' को पाने हिमालय जा रहे हैं... वे इस समूह में आ बैठते हैं | गांधीजी उनका स्वागत करते हैं लेकिन कहते हैं, हिमालय में तुम्हें कोई सत्य नहीं मिलेगा | इसे तुम्हें अपने अंदर पाना होगा, और इसे तुम्हें अपने देश में पाना होगा जहाँ तुम्हें सत्य और शांति के लिए काम करना चाहिए | ... जर्मनों ने सत्य को देखा, उन्होंने साबरमती जाना तय किया |

गांधीजी सबसे मज़ाक़ करतें हैं .. प्रिवेट से वे कहते हैं कि अगर मुझमें विनोदवृति न हो तो मैं मर जाऊँगा | मीराबेन रेज़र से जब उनका सिर शेव कर रहीं हैं तब भी वे दूसरों की चिंता कर रहे हैं, अपनी बास्केट से सेब और संतरे लोगों को देते जा रहे हैं | वे एडमोंड के लिए एक तीन पेज का नोट बनाते हैं कि भारत में उन्हें क्या देखना चाहिए, इसमें शहरों, मकबरों स्मारकों की सूची है, इसमें यह भी है कि क्या खाना, पीना है... उबला पानी ...मसाला और मिर्च नहीं |... सीधे बैठे हुए वे ढेर लगे चिट्ठी- पत्रों के जवाब दे रहे हैं, जहाजियों का चारों तरफ़ शोर उन्हें परेशान नहीं करता, न ही कलाई पर बैठी मक्खी | चरखा चलाकर वे थकावट दूर करते हैं | दिन में ऊपर की केबिन से लोग उनसे मिलने आते हैं, अंग्रेज उनसे मिलने में हिचकते है, छोटे नाविक प्रेम से मिलते हैं... बच्चों से तो वे घिरे ही रहते हैं... कैप्टन उनके प्रति सदाशयता से भरा हुआ है, सब करने को तैयार... गांधीजी मुस्कुरा कर उससे ज्ञ कहते हैं, ' हम लोग डेक पर यात्रा करने के अद्वितीय अनुभव से वंचित हो जाएंगे '| ... उन्हें टेलीग्राम मिलता है कि अभी दो बंगाली युवकों ने एक अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट की हत्या कर दी... गांधीजी मृतक के परिवार, दो युवकों और देश के लिए दुख में डूब जाते हैं... वे कहते हैं लोग क्यों नहीं समझते कि ऐजेंट को मारकर हुकूमत नहीं बदली जा सकती... यह एक क्रूर भ्रम है |वे बाम्बे पहुंचकर कांग्रेस नेताओं से मशविरा कर बंगाल जाकर हिंसा के विरुद्ध अभियान चलाने का मन बनाते हैं... वै रचनात्मक काम करना चाहते हैं, धार्मिक सद्भाव के लिए, हरिजनों के लिए |

एस. एस. पिलस्ना बॉम्बे के क़रीब पहुँच रहा है ...यह क्रिसमस की पूर्व संघ्या है... कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट कल सुबह की सर्विस कौन करे इस पर एकमत नहीं हैं| अंततः वे गांधीजी के पास आते हैं| गांधीजी उनसे पूछते हैं कि उनके हिसाब से क्या समय उपयुक्त होगा,... सब कहते हैं जो आपको सुभीते का लगे.. तब गांधीजी कहते हैं कि मेरा प्रार्थना का समय सुबह चार बजे है | लोगों का कहना था कि उस समय बहुत कम लोग आएंगे... गांधीजी ने कहा, ' जिन्हें नींद की ज़रूरत है उन्हें नींद लेने दो, जिन्हें आना होगा वे आएंगे '|

उस समय तब अंधेरा था जब लोग डेक पर उस तनखीन व्यक्ति को घेरकर बैठ गए जो चश्मा लगाये था और लैम्प की कंपकंपाती सी अद्भुत रोशनी में उसका मस्तक चमक रहा था | पहले आनंद गान हुआ और फिर गांधीजी की नर्म और साफ़ आवाज़ सुनाई देने लगी... " जब वास्तविक शांति आयेगी तब प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं रहेगी | वह हमारे जीवन में प्रकाशित होगी, निजी और सामूहिक रूप से | तब हम कहेंगे : क्राइस्ट का जन्म हुआ | फिर हम साल में उनके जन्म की वर्षगांठ मनाने के एक दिन के बारे में नहीं सोचेंगे | हम सोचेंगे कि वह सदा विद्यमान रहने वाली चीज़ है जोकि हममें से प्रत्येक के जीवन को प्रकाशित कर सकती है | हम को अभी ईसाइयत हासिल करनी है | जब हममें बदले का कोई विचार नहीं होगा और हम एक दूसरे से पूरी तरह प्यार करने लगेंगे तब हमारा जीवन ईसाइयत से पूर्ण होगा " |

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