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विमर्श

पुरुष चिकित्सकों द्वारा महिलाओं के ऑपरेशन का घातक प्रभाव | Fetal surgery by male doctors on women patients

Janjwar Desk
5 Jan 2022 6:27 AM GMT
पुरुष चिकित्सकों द्वारा महिलाओं के ऑपरेशन का घातक प्रभाव | Fetal surgery by male doctors on women patients
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महेंद्र पाण्डेय की टिपण्णी

Fetal surgery by male doctors on women patients : हाल में किये गए एक विस्तृत अध्ययन से यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि कम से कम सर्जरी के मामले में महिला चिकित्सक पुरुषों की तुलना में अधिक कुशल हैं| इस अध्ययन के अनुसार पुरुषों की सर्जरी के सन्दर्भ में महिला या पुरुष चिकित्सकों द्वारा की जाने वाली सर्जरी का परिणाम एक जैसा ही रहता है, पर महिला मरीजों की सर्जरी जब पुरुष चिकित्सक करते हैं तब महिला चिकित्सकों की तुलना में उनके मरने की संभावना 32 प्रतिशत तक बढ़ जाती है| ऐसे मामलों में सर्जरी के असफल परिणाम 15 प्रतिशत अधिक देखने को मिलते हैं, 20 प्रतिशत मामले में मरीजों को अपेक्षाकृत अधिक समय अस्पताल में गुजारना पड़ता है, फिर से अस्पताल में भरती होने की संभावना 11 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और 16 प्रतिशत मामलों में अप्रत्याशित जटिलता देखी जाती है|

इस अध्ययन को कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो (University of Toranto) की क्लिनिकल एपिडेमियोलोजिस्ट डॉ अंजेला जेरथ (Dr Angela Jerath) की अगुवाई में किया गया है| अपने तरह के अब तक के अकेले अध्ययन में वर्ष 2007 से 2019 के बीच कनाडा में किये गए कुल 13 लाख से अधिक सर्जरी के मामलों का विश्लेषण किया गया है, और यह अध्ययन जामा सर्जरी (JAMA Surgery) नामक जर्नल के नए अंक में प्रकाशित किया गया है| इस अध्ययन की विशेषता यह है कि इसमें मरीजों के लिंग के साथ ही सर्जरी करने वाले चिकित्सकों के लिंग का भी आकलन किया गया है|

डॉ अंजेला जेरथ के अनुसार इस अध्ययन के नतीजे निश्चित तौर पर परेशान करने वाले हैं, क्योंकि दुनियाभर में गंभीर सर्जरी की बागडोर पुरुष चिकित्सकों के हाथ में ही रहती है| इसके वास्तविक दुनिया में गंभीर परिणाम हो रहे हैं| महिला चिकित्सक जब पुरुष मरीजों की सर्जरी करती हैं तब वैसे ही परिणाम सामने आते हैं जैसे पुरुष चिकित्सक द्वारा सर्जरी करने के बाद आते, पर महिला मरीजों के मामले में ऐसा नहीं होता – इसका सीधा सा मतलब है कि अधिकतर पुरुष चिकित्सकों के मस्तिष्क में बैठी लैंगिक असमानता सर्जरी के समय हावी हो जाती हैं और महिलाओं की सर्जरी के समय वे लापरवाह हो जाते हैं|

भले ही दुनिया लैंगिक समानता का राग अलाप रही हो, पर अनेक क्षेत्रों में महिलाओं की परम्परागत तौर पर अनदेखी की जाती है, और चिकित्सा विज्ञान का क्षेत्र ऐसा ही है| महिलाओं का शरीर क्रिया विज्ञान पुरुषों से अलग होता है, पर दवाओं के परीक्षण के समय महिलाओं पर विशेष परीक्षण नहीं किया जाता| कोविड 19 के हरेक वैक्सीन के परीक्षण में भी यह असमानता बरकरार रही| भारत को छोड़कर दुनियाभर में कोविड 19 से होने वाली मौतों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है| पर, भारत में यह आंकड़ा बिलकुल अलग तस्वीर प्रस्तुत करता है| अमेरिका और भारत के वैज्ञानिकों ने भारत में 20 मई 2021 तक कोविड 19 से होने वाली मौतों का विस्तार से अध्ययन किया, इस समय तक कुल संक्रमितों की तुलना में मृत्यु दर 3.1 थी| पर, संक्रमित महिलाओं में मृत्यु दर 3.2 थी और पुरुषों में यह दर 2.9 थी| 5 वर्ष से लेकर 19 वर्ष के आयु वर्ग में जितनी भी मौतें कोविड 19 के कारण दर्ज की गयीं हैं, सभी महिलायें या लड़कियां थीं| 40 वर्ष से 49 वर्ष के आयु वर्ग में महिलाओं की मृत्यु दर 3.2 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों में यह दर महज 2.1 प्रतिशत है| इस अध्ययन के प्रमुख होर्वार्ड यूनिवर्सिटी के एस वी सुब्रमनियन के अनुसार इसका पूरी दुनिया के विपरीत भारत में महिलाओं की अधिक मृत्यु दर के कारणों का ठीक पता नहीं है, पर ये आंकड़ें चौकाने वाले और अनोखे जरूर हैं|

कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ एक अमेरिकी पत्रकार हैं और इन्होने कार्यक्षेत्र पर लैंगिक असमानता पर अध्ययन कर एक पुस्तक लिखी है, इनविजिबल वीमेन:एक्स्पोसिंग डाटा बायस इन अ वर्ल्ड डीजाइंड फॉर मेन| कैरलाइन को इस पुस्तक के लिखने की प्रेरणा तब मिली जब उन्हें पता चला कि दुनियाभर में चिकित्सक हार्ट अटैक को उन लक्षणों से पहचानते हैं जो केवल पुरुषों में पाए जाते हैं| हार्ट अटैक के सामान्य लक्षण माने जाते हैं – छाती में दर्द और बाएं हाथ में दर्द| ये दोनों पुरुषों में सामान्य हैं जबकि आठ में से केवल एक महिला को इस दौरान छाती में दर्द होता है| महिलाओं को जबड़े में और पीठ में दर्द होता है, सांस लेने में दिक्कत होती है और उल्टी आती है| इसका सीधा सा मतलब यह है कि महिलाओं में हार्ट अटैक के विशेष लक्षणों की कभी चर्चा ही नहीं की जाती है, जाहिर है इसका इलाज भी नहीं होता| कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ का एक इंटरव्यू हाल में ही साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका में प्रकाशित किया गया है| चिकित्सा के क्षेत्र में तो हालात ऐसे है कि दवाओं का सारा परीक्षण पुरुषों पर ही कर दिया जाता है, इसीलिए महिलाओं में दवाओं के रिएक्शन या फिर असर नहीं करने के मामले बहुत अधिक होते हैं|

कैरलाइन के अनुसार यह दुनिया पुरुषों के अनुसार बनाई गयी है और इसमें महिलाओं को पुरुषों की शर्तों पर ही शामिल होना पड़ता है| कैरलाइन की पुस्तक में बहुत सारे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि कार्य स्थल पर महिलायें किन समस्याओं का सामना करती हैं| पुलिस और मिलिटरी में महिलायें अब भारी संख्या में आ रही हैं पर बुलेट-प्रूफ जैकेट, बूट, गॉगल्स, हेलमेट और इस तरह की अन्य आवश्यक वस्तुएं केवल पुरुषों को ध्यान में रख कर बनाए जाते है| कोविड 19 के दौर में भी पीपीई किट के साथ भी यह समस्या उभर कर सामने आई, जब अधिकतर अस्पतालों में नर्सें अपने से बड़े पीपीई किट को संभालती नजर आती हैं| कार निर्माता कार के क्रैश टेस्ट में केवल पुरुषों के डमी से अध्ययन और परीक्षण करते हैं| किसी भी कार निर्माता को यह नहीं पता कि ड्राईवर सीट पर बैठी महिलाओं पर दुर्घटना के समय क्या असर पड़ेगा| इसी कारण बड़ी दुर्घटना के समय ड्राईवर सीट पर बैठी महिलायें पुरुषों की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक प्रभावित होतीं हैं, जबकि छोटी घटनाओं में 71 प्रतिशत अधिक प्रभावित हो जाती हैं| केवल महिलाओं पर दुर्घटना का परीक्षण नहीं करने से दुर्घटना के समय पुरुषों की तुलना में ड्राईवर सीट पर बैठी 17 प्रतिशत अधिक महिलाओं की मृत्यु हो जाती है|

यह अंतर तो सामान्य ऑफिस में भी पता चलता है| जितने भी ऑफिस फर्निचर होते हैं या फिर कमरे का डिजाईन होता है सभी पुरुषों के लिए ही बने होते हैं| कुर्सियों की बनावट, ऊंचाई और फिर कुर्सी और वर्क स्टेशन या फिर मेज की ऊंचाई भी पुरुषों के हिसाब से ही रखी जाती है| पुरुषों और महिलाओं के शरीर में जितनी भी क्रियाएं होतीं हैं उनकी दर अलग होती है, इसलिए उनके लिए आरामदेह तापमान भी अलग होता है| पुरुष 21 डिग्री सेल्सियस के आसपास के तापमान में आराम महसूस करते हैं जबकि महिलाओं के लिए यह तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है| पर दुनियाभर में ऑफिस का तापक्रम 21 डिग्री सेल्सिउस के आसपास ही रखा जाता है, जिसे 40 वर्षीय पुरुष जो 70 किलो भार का हो, के लिए 1990 के दशक से सामान्य माना जाता है|

जाहिर है, पुरुषों ने दुनिया को अपने अनुरूप ढाल लिया है, जिसमें महिलायें हर कदम पर अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित हैं|

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