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विमर्श

अपने सम्मान के लिए जनता को मतदान से करारा जवाब देना ही होगा | Public should reply through Votes

Janjwar Desk
10 Feb 2022 11:32 AM IST
अपने सम्मान के लिए जनता को मतदान से करारा जवाब देना ही होगा | Public should reply through Votes
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Public should reply through Votes| देश की 70 प्रतिशत जनता किसान और श्रमिक है, और कम से कम इस जनता को ऐसी सरकारों को सबक सिखाना ही होगा जो उन्हें कुछ नहीं समझती, यह भी नहीं मानती कि वे अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं|

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Public should reply through Votes| देश की 70 प्रतिशत जनता किसान और श्रमिक है, और कम से कम इस जनता को ऐसी सरकारों को सबक सिखाना ही होगा जो उन्हें कुछ नहीं समझती, यह भी नहीं मानती कि वे अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं| ऐसी सरकार को सबक सिखाने का समय सामने है, अब आप स्वयं निर्णय करें| जब किसानों ने आन्दोलन किया तब प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार ने उन्हें आढ़ती, देशद्रोही, खालिस्तानी और भी बहुत कुछ कहा, केवल किसान कभी नहीं कहा| बात यहीं ख़त्म नहीं होती, उस समय प्रधानमंत्री बार-बार कहते रहे, किसान भ्रम में हैं, उन्हें कांग्रेस ने भड़काया है| जाहिर है, प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार किसानों का अपना कोई विवेक नहीं है और वे किसी के भी भड़काने पर ही कोई कदम उठाते हैं|

हाल में ही संसद में प्रधानमंत्री ने संसद के इतिहास का सबसे बकवास भाषण दिया है. देश की संसद में दिया गया यह चुनावी भाषण केवल संसद की गरिमा को ही कलंकित नहीं करता पर यह भाषण किसानों के बाद अब देश के श्रमिकों पर ही लांछन लगाता है| प्रधानमंत्री ने जितने लांछन किसानों पर लगाए थे, वही सारे लांछन श्रमिकों पर भी लगाए| दरअसल वे कोविड 19 के नाम पर लगाए गए लॉकडाउन के समय की अपनी नाकामियों और बदइन्तजामी की चर्चा कर रहे थे, और जाहिर है कि इसी सरकारी नाकामी के कारण लाखों श्रमिकों को आनन्-फानन में बिना किसी साधन के ही घर वापस जाना पड़ा था| असंख्य श्रमिक पैदल हजारों किलोमीटर चले, फिर कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार से आग्रह कर विशेष रेलगाड़ियों का इंतजाम किया था| अब हमारे प्रधानमंत्री के अनुसार श्रमिकों की वापसी का कारण कांग्रेस द्वारा भड़काया जाना था और रेलवे का मुफ्त टिकट कांग्रेस ने श्रमिकों को उपलब्द्ध कराया था, इसीलिए श्रमिक अपने घरों को वापस लौटे थे|

इस तरीके की अमानवीय बातें केवल हमारे प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं, संसार का कोई दूसरा नेता ऐसी अशोभनीय बातें नहीं करता| इस क्रम में उनका विपक्ष पर आरोप लगाना तो समझ में आता है क्योंकि वे इसके अलावा कुछ जानते ही नहीं| उनकी इंटायर पोलिटिकल साइंस की शिक्षा में बस इतना ही शामिल था| पर, विपक्ष को कोसने के क्रम में वे श्रमिकों को ही विवेकहीन बता गए| उनकी नजर में श्रमिक वर्ग विवेकहीन है और उसे कोई भी और कभी भी भड़का सकता है, और प्रधानमंत्री के अनुसार श्रमिक भड़क भी जायेंगें|

पूरे श्रमिक समाज और किसानों को विवेकहीन साबित करते प्रधानमंत्री द्वारा जनता का किया जाने वाले उत्पीडन की दास्ताँ बहुत लंबी है| याद कीजिये, कोविड 19 के दूसरे दौर की कहानियां, जब ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए पूरा देश भटक रहा था, अस्पतालों के बाहर मरीजों का हुजूम था, श्मशान के बाहर चिताएं धधक रही थी, नदियों में पानी के बदले लाशें बह रही थीं – कुल मिलाकर सरकारी बदइन्तजामी का ऐसा मंजर अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं देखा गया होगा – इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री अपनी पीठ लगातार थपथपा रहे थे| कोई भी शायद ऐसा हो जिसके परिवार या रिश्तेदारों में किसी की मौत केवल सरकारी बदइन्ताजामी के कारण ना हुई हो| अब प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि देश में ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा और ना ही नदियों में कोई लाश बही| यह देश के मध्यम वर्ग पर एक क्रूर तमाचा है – अब इसका जवाब देने का समय आ गया है|

सरकार कहती है उसने करोड़ों रोजगार दिए हैं पर लाखों सरकारी पद खाली पड़े हैं| रोजगार पर सरकार बात नहीं करती और देश के करोड़ों बेरोजगार युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे है| बेरोजगार जब सडकों पर उतारते हैं, तब उन्हें रोजगार के बदले लाठियां और जेल मिलाती है| जाहिर है, अब सरकार को बेरोजगारी का करारा जवाब देने का समय सामने है|

डेस्क की सबसे बड़ी आबादी का क्रूर शासक हरेक मोर्चे पर असफल है और प्रधानमंत्री उसे ही आदर्श मुख्यमंत्री का बार-बार खिताब देते हैं| जाहिर है, प्रधानमंत्री की सोच में जातिवाद, अल्पसंख्यकों से घृणा, मानवाधिकार हनन, पत्रकारों का उत्पीडन, महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार के बढ़ाते मामले ही किसी मुख्यमंत्री को दूसरों से बेहतर बनाते हैं| अब इस सोच को बदलने का समय आ गया है|

हमारे प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री बार-बार टीवी चैनलों पर आकर आपको गुमराह करने का प्रयास करेंगें, पूरा सरकारी तंत्र आपको झासा देने में जुटेगा – पर, आप अपना निर्णय लीजिये| प्रधानमंत्री चुनावों को लोकतंत्र उत्सव बताते हैं, पर एक बार ठीक से सोचकर, गहन विचार कर आप केवल लोकतंत्र मनाइए, संभव है उत्सव का मौका भी जल्दी आ जाएगा| आखिर, गुलामी की जंजीरे तोड़ कर आजाद होना भी तो उत्सव ही है|

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