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विमर्श

Gender bias in research: मेडिकल रिसर्च में महिलाओं की अनदेखी क्यों की जाती है?

Janjwar Desk
21 Jun 2022 7:47 AM GMT
Gender bias in research:  मेडिकल रिसर्च में महिलाओं की अनदेखी क्यों की जाती है?
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Gender bias in research: मेडिकल रिसर्च में महिलाओं की अनदेखी क्यों की जाती है?

Gender bias in research: अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) ने मई 2022 में सर्कुलेशन नामक स्वास्थ्य जर्नल में एक पत्र प्रकाशित कर अमेरिका के राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि कार्डियोवैस्कुलर रोगों से (Cardiovascular diseases) सम्बंधित अनुसंधान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के लिए उचित कदम तत्काल उठाये जाएँ,

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Gender bias in research: अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) ने मई 2022 में सर्कुलेशन नामक स्वास्थ्य जर्नल में एक पत्र प्रकाशित कर अमेरिका के राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि कार्डियोवैस्कुलर रोगों से (Cardiovascular diseases) सम्बंधित अनुसंधान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के लिए उचित कदम तत्काल उठाये जाएँ, जिससे लाखों महिलाओं को अकाल मृत्यु से बचाया जा सकेगा| अमेरिका, युनाइटेड किंगडम और दूसरे अमीर देशों में महिलाओं की मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण कार्डियोवैस्कुलर रोग हैं| ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन के अनुसार वर्ष 2002 से 2013 के बीच इंग्लैंड में कार्डियोवैस्कुलर रोगों से 8000 अतिरिक्त महिलाओं की मौत केवल इस कारण हो गयी क्योंकि उनमें डाक्टरों ने केवल उन लक्षणों का परीक्षण किया, जो पुरूषों में किये जाते हैं|

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर महिलाओं से सम्बंधित परीक्षण कम किये जाते हैं, और यदि परीक्षण किये भी जाते हैं तो उनका विस्तृत विश्लेषण नहीं किया जाता है| एसोसिएशन के अनुसार सभी क्लिनिकल ट्रायल्स में महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए, और परिणामों का विस्तृत विश्लेषण किये जाने की जरूरत है| अस्पतालों को भी कार्डियोवैस्कुलर रोगों के सन्दर्भ में महिलाओं के लक्षणों की पहचान करनी चाहिए|

यूनाइटेड किंगडम की एक संस्था, अस्थमा+लंग यूके (Asthma+Lung UK), के अनुसार अस्थमा से मृत्यु के सन्दर्भ में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या दुगुनी से अधिक है| इसका कारण यह है कि महिलाओं पर विशेष अध्ययन नहीं किये जाते, और एक ही तरीके से सबका इलाज स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमें लैंगिक समानता से दूर करता जा रहा है| अस्थमा के लक्षणों और प्रभावों से सम्बंधित एक भी ऐसा अध्ययन नहीं है जिसमें महिलाओं के किशोरावस्था, मासिक धर्म, गर्भधारण या फिर रजोनिवृत्ति के समय हॉर्मोन उत्सर्जन और प्रभावों का ध्यान रखा गया हो| किशोरावस्था से पहले की उम्र में अस्थमा अटैक से होने वाले मौतों में लड़कों की संख्या अधिक होती है पर इसके बाद से मौतों के आंकड़े पूरी तरह से पलट जाते हैं| वर्ष 2014 से 2020 के बीच यूनाइटेड किंगडम में अस्थमा अटैक से 5100 महिलाओं की मृत्यु हुई, जबकि इसी अवधि में महज 2300 पुरुषों की मृत्यु ही अस्थमा से दर्ज की गयी| 20 से 49 वर्ष के आयुवर्ग में अस्थमा से अस्पतालों में भर्ती होने वालों की कुल संख्या में से महिलाओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा 2.5 गुना अधिक दर्ज की गयी|

कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ (Caroline Criado Perez) एक अमेरिकी पत्रकार हैं और इन्होने कार्यक्षेत्र पर लैंगिक असमानता पर अध्ययन कर एक पुस्तक लिखी है, इनविजिबल वीमेन:एक्स्पोसिंग डाटा बायस इन अ वर्ल्ड डीजाइंड फॉर मेन (Invisible Women: Exposing data bias in a world designed for men)| कैरलाइन को इस पुस्तक के लिखने की प्रेरणा तब मिली जब उन्हें पता चला कि दुनियाभर में चिकित्सक हार्ट अटैक को उन लक्षणों से पहचानते हैं जो केवल पुरुषों में पाए जाते हैं| हार्ट अटैक के सामान्य लक्षण माने जाते हैं – छाती में दर्द और बाएं हाथ में दर्द| ये दोनों पुरुषों में सामान्य हैं जबकि आठ में से केवल एक महिला को इस दौरान छाती में दर्द होता है| महिलाओं को जबड़े में और पीठ में दर्द होता है, सांस लेने में दिक्कत होती है और उल्टी आती है| इसका सीधा सा मतलब यह है कि महिलाओं में हार्ट अटैक के विशेष लक्षणों की कभी चर्चा ही नहीं की जाती है, जाहिर है इसका इलाज भी नहीं होता| कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ का एक इंटरव्यू साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका में प्रकाशित किया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था - चिकित्सा के क्षेत्र में तो हालात ऐसे है कि दवाओं का सारा परीक्षण पुरुषों पर ही कर दिया जाता है, इसीलिए महिलाओं में दवाओं के रिएक्शन या फिर असर नहीं करने के मामले बहुत अधिक होते हैं|

कैरलाइन के अनुसार यह दुनिया पुरुषों के अनुसार बनाई गयी है और इसमें महिलाओं को पुरुषों की शर्तों पर ही शामिल होना पड़ता है| कैरलाइन की पुस्तक में बहुत सारे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि कार्य स्थल पर महिलायें किन समस्याओं का सामना करती हैं| पुलिस और मिलिटरी में महिलायें अब भारी संख्या में आ रही हैं पर बुलेट-प्रूफ जैकेट, बूट, गॉगल्स, हेलमेट और इस तरह की अन्य आवश्यक वस्तुएं केवल पुरुषों को ध्यान में रख कर बनाए जाते है| कोविड 19 के दौर में भी पीपीई किट के साथ भी यह समस्या उभर कर सामने आई, जब अधिकतर अस्पतालों में नर्सें अपने से बड़े पीपीई किट को संभालती नजर आती हैं| कार निर्माता कार के क्रैश टेस्ट में केवल पुरुषों के डमी से अध्ययन और परीक्षण करते हैं| किसी भी कार निर्माता को यह नहीं पता कि ड्राईवर सीट पर बैठी महिलाओं पर दुर्घटना के समय क्या असर पड़ेगा| इसी कारण बड़ी दुर्घटना के समय ड्राईवर सीट पर बैठी महिलायें पुरुषों की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक प्रभावित होतीं हैं, जबकि छोटी घटनाओं में 71 प्रतिशत अधिक प्रभावित हो जाती हैं| केवल महिलाओं पर दुर्घटना का परीक्षण नहीं करने से दुर्घटना के समय पुरुषों की तुलना में ड्राईवर सीट पर बैठी 17 प्रतिशत अधिक महिलाओं की मृत्यु हो जाती है|

कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ की पुस्तक से प्रभावित होकर यूनाइटेड किंगडम के प्लायमाउथ स्थित यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में मेडिसिन कंसलटेंट प्रोफ़ेसर टिम नटबीम ने कार दुर्घटनाओं में घायलों का विस्तृत अध्ययन कर बताया है कि कार दुर्घटना के दौरान पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कार में ही फंसे रहने की संभावना दुगुनी रहती है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं को गंभीर चोट भी अलग जगहों पर लगती है| इस अध्ययन को ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ओपन में प्रकाशित किया गया है| कैरलाइन क्रिअदो पेरेज़ के दल ने अध्ययन के लिए वर्ष 2012 से 2019 के बीच यूनाइटेड किंगडम के विभिन्न ट्रामा केन्द्रों पर कार दुर्घटनाओं में घायल 70027 पुरुषों और महिलाओं का अध्ययन किया है|

इस अध्ययन के अनुसार गंभीर कार दुर्घटनाओं के दौरान केवल 9 प्रतिशत पुरुष ही कारों के मलबे में फंसे रहते हैं, जबकि महिलाओं के लिए यह संख्या 16 प्रतिशत से अधिक है| महिलाओं को अधिक चोटें कुल्हे के क्षेत्र और रीढ़ की हड्डियों में लगती है जबकि पुरुषों को सर, चहरे, छाती और पैरों में लगती है| इस अध्ययन के अनुसार वजन और लम्बाई के सन्दर्भ में महिलाओं के कुल्हे का क्षेत्र पुरुषों की अपेक्षा अधिक चौड़ा होता है, और चौडाई अधिक होने के कारण यह कार के दरवाजे से अपेक्षाकृत अधिक नजदीक रहता है| दूसरी तरफ महिलायें स्टीयरिंग से अपेक्षाकृत अधिक नजदीक रहकर ड्राइव करती हैं| इन दोनों कारणों से दुर्घटना के बाद कार में मलबे में उनके फंसे रहने की संभावना बढ़ जाती है| महिलाओं को अधिक गंभीर चोटें कुल्हे के क्षेत्र में लगती है और ऐसे में हिलना-डुलना कठिन हो जाता है| इस अध्ययन में कार निर्माताओं से कहा गया है कि वे कार के डिजाईन पर विशेष ध्यान दें, जिससे महिलायें भी पुरुषों जितना सुरक्षित रह सकें| कारों के क्रैश टेस्ट के दौरान महिलाओं के वास्तविक आकार को दर्शाने वाले डमी के उपयोग के लिए भी कहा गया है| यूरोपियन यूनियन में एक ने बिल लाया जा रहा है जिसमें कारों के क्रैश टेस्ट में महिलाओं के डमी के साथ टेस्ट को अनिवार्य किया जा रहा है|

एक विस्तृत अध्ययन से यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि कम से कम सर्जरी के मामले में महिला चिकित्सक पुरुषों की तुलना में अधिक कुशल हैं| इस अध्ययन के अनुसार पुरुषों की सर्जरी के सन्दर्भ में महिला या पुरुष चिकित्सकों द्वारा की जाने वाली सर्जरी का परिणाम एक जैसा ही रहता है, पर महिला मरीजों की सर्जरी जब पुरुष चिकित्सक करते हैं तब महिला चिकित्सकों की तुलना में उनके मरने की संभावना 32 प्रतिशत तक बढ़ जाती है| ऐसे मामलों में सर्जरी के असफल परिणाम 15 प्रतिशत अधिक देखने को मिलते हैं, 20 प्रतिशत मामले में मरीजों को अपेक्षाकृत अधिक समय अस्पताल में गुजारना पड़ता है, फिर से अस्पताल में भरती होने की संभावना 11 प्रतिशत तक बढ़ जाती है और 16 प्रतिशत मामलों में अप्रत्याशित जटिलता देखी जाती है|

इस अध्ययन को कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो की क्लिनिकल एपिडेमियोलोजिस्ट डॉ अंजेला जेरथ की अगुवाई में किया गया है| अपने तरह के अब तक के अकेले अध्ययन में वर्ष 2007 से 2019 के बीच कनाडा में किये गए कुल 13 लाख से अधिक सर्जरी के मामलों का विश्लेषण किया गया है, और यह अध्ययन जामा सर्जरी नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया था| इस अध्ययन की विशेषता यह है कि इसमें मरीजों के लिंग के साथ ही सर्जरी करने वाले चिकित्सकों के लिंग का भी आकलन किया गया है|

महिलाओं और पुरुषों का अंतर तो सामान्य ऑफिस में भी पता चलता है| जितने भी ऑफिस फर्निचर होते हैं या फिर कमरे का डिजाईन होता है सभी पुरुषों के लिए ही बने होते हैं| कुर्सियों की बनावट, ऊंचाई और फिर कुर्सी और वर्क स्टेशन या फिर मेज की ऊंचाई भी पुरुषों के हिसाब से ही रखी जाती है| पुरुषों और महिलाओं के शरीर में जितनी भी क्रियाएं होतीं हैं उनकी दर अलग होती है, इसलिए उनके लिए आरामदेह तापमान भी अलग होता है| पुरुष 21 डिग्री सेल्सियस के आसपास के तापमान में आराम महसूस करते हैं जबकि महिलाओं के लिए यह तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है| पर दुनियाभर में ऑफिस का तापक्रम 21 डिग्री सेल्सियस के आसपास ही रखा जाता है, जिसे 40 वर्षीय पुरुष जो 70 किलो भार का हो, के लिए 1990 के दशक से सामान्य माना जाता है| जाहिर है, पुरुषों ने दुनिया को अपने अनुरूप ढाल लिया है, जिसमें महिलायें हर कदम पर अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित हैं|

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