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विमर्श

दुनिया की आधी महिला वैज्ञानिक कैरियर के दौरान होती हैं यौन उत्पीड़न का शिकार, 20% ही करती हैं शिकायत और उनकी भी नहीं होती सुनवाई

Janjwar Desk
21 March 2023 5:50 AM GMT
दुनिया की आधी महिला वैज्ञानिक कैरियर के दौरान होती हैं यौन उत्पीड़न का शिकार, 20% ही करती हैं शिकायत और उनकी भी नहीं होती सुनवाई
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file photo

25 प्रतिशत से अधिक महिला वैज्ञानिकों ने बताया कि उनके विरोध करने के बाद भी उनके साथ काम करने वाले पुरुष उन्हें “गर्ल्स”, “चिक”, “बेब” या “डॉल” जैसे संबोधनों से बुलाते हैं, 24 प्रतिशत से अधिक वैज्ञानिकों से निजी जिन्दगी और अन्तरंग जिन्दगी से सम्बंधित सवाल बार-बार पूछे जाते हैं....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Almost half of all women scientists have faced sexual harassment at workplace at some point of their career. दुनिया में विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान में महिलाओं की संख्या बहुत कम है, महिला वैज्ञानिकों की संख्या कम है और बेहतर काम और अनुसंधान के बाद भी उनके योगदान को हमेशा नकारा जाता है, पर अब एक विस्तृत अध्ययन के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि दुनिया की लगभग आधी महिला वैज्ञानिक अपने कैरियर के दौरान कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं।

इस अध्ययन को लोरिएल फाउंडेशन ने कराया है और इसके लिए भारत समेत कुल 117 देशों की 5000 से अधिक महिला वैज्ञानिकों का सर्वेक्षण और साक्षात्कार किया गया है। इसमें सरकारी और निजी अनुसंधान संस्थानों, दोनों को शामिल किया गया था और विज्ञान और प्रोद्योगिकी के हरेक क्षेत्र की महिला वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था। लोरिएल फाउंडेशन संयुक्त राष्ट्र के यूनेस्को के साथ मिलकर महिला वैज्ञानिकों के मसले पर काम करता है। महिला वैज्ञानिकों का साक्षात्कार वर्ष 2022 में जुलाई से सितम्बर के बीच लिया गया।

इस अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार 49 प्रतिशत से अधिक महिला वैज्ञानिकों ने कभी न कभी यौन उत्पीड़न का सामना किया है। यह स्थिति हरेक देश और हरेक प्रकार के वैज्ञानिक संस्थान में है। इस अध्ययन के अनुसार 65 प्रतिशत महिला वैज्ञानिकों ने यह स्वीकार किया कि यौन उत्पीड़न के बाद उनके कैरियर पर बुरा प्रभाव पडा। अधिकतर महिला वैज्ञानिकों का उत्पीड़न कैरियर के शुरुआती दौर में किया गया।

महिला वैज्ञानिकों को अपना कैरियर बनाने के लिए पुरुषों के मुकाबले अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और दूसरी तरफ भले ही सभी संस्थानं यौन उत्पीड़न जैसे विषय को गंभीरता से लेने का दावा करते हों, पर ऐसे मामलों में शायद ही कभी पुरुषों को सजा होती है, उलटा शिकायत करने वाली महिला का कैरियर दांव पर लग जाता है। शायद इसीलिए केवल 20 प्रतिशत महिला वैज्ञानिकों ने ही उत्पीड़न की शिकायत अपने संस्थान में दर्ज करवाई, और इनमें भी अधिकतर मामलों में कोई कार्यवाही नहीं की गयी।

25 प्रतिशत से अधिक महिला वैज्ञानिकों ने बताया कि उनके विरोध करने के बाद भी उनके साथ काम करने वाले पुरुष उन्हें “गर्ल्स”, “चिक”, “बेब” या “डॉल” जैसे संबोधनों से बुलाते हैं। 24 प्रतिशत से अधिक वैज्ञानिकों से निजी जिन्दगी और अन्तरंग जिन्दगी से सम्बंधित सवाल बार-बार पूछे जाते हैं। महिला वैज्ञानिकों की स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 20 प्रतिशत से अधिक महिला वैज्ञानिक जिस जगह या संस्थान में पूरा दिन काम करती हैं, वहां सुरक्षित महसूस नहीं करतीं। 50 प्रतिशत से अधिक महिला वैज्ञानिक अपने साथ काम करने वाले पुरुष कर्मचारियों में से कुछ को हमेशा नजरअंदाज करती हैं।

लगभग 65 प्रतिशत महिला वैज्ञानिकों ने बताया कि संस्थानों में यौन उत्पीडन या महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार हरेक वैज्ञानिक संस्थान को यौन उत्पीड़न रोकने के लिए इस मुद्दे पर “जीरो टॉलरेंस” के नीति अपनाने की जरूरत है और इसे विषयों से निपटने के लिए अपने बजट में प्रावधान की जरूरत है।

वर्ष 2017 से दुनियाभर की महिलाओं ने यौन उत्पीडन के मामले उजागर करने के लिए और इसपर अंकुश लगाने के लिए “मी टू” कैंपेन की शुरुआत सोशल मीडिया पर की। पिछले कुछ दशकों के दौरान किये गए आन्दोलनों के सन्दर्भ में सही मायने में यह वैश्विक आन्दोलन था और प्रभावी भी। पर, इस अध्ययन के अनुसार इस आन्दोलन का असर विज्ञान के क्षेत्र में बिलकुल नहीं पड़ा। आधे से अधिक महिला वैज्ञानिकों ने इस आन्दोलन के दौरान या इसके बाद यौन उत्पीडन का सामना किया है।

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