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विमर्श

मोदीराज में मानवाधिकार की आवाज उठाने वालों पर चलाया जाता है बुल्डोजर, दुनियाभर में कुचले जा रहे ह्यूमेन राइट्स !

Janjwar Desk
29 Nov 2024 11:52 AM IST
मोदीराज में मानवाधिकार की आवाज उठाने वालों पर चलाया जाता है बुल्डोजर, दुनियाभर में कुचले जा रहे ह्यूमेन राइट्स !
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हमारे प्रधानमंत्री जी मानवता की बात तो करते हैं, पर मानवाधिकार पर खामोश रहते हैं। यहाँ मानवाधिकार की आवाज उठाने वालों पर बुल्डोज़र चलाया जाता है, मीडिया इसका लाइव प्रसारण करता है, सत्ता इसे रामराज्य बताती है और जनता इस पर तालियाँ...

मानवाधिकार का दायरा लगातार कैसे सिकुड़ता जा रहा है बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय

In the last 25 years, the world miserably failed to protect human rights, says a new report. पिछले 25 वर्षों से दुनिया मानवाधिकार को लगातार कमजोर करती जा रही है, अब स्थिति यह है कि मानवाधिकार को कुचलने वाले देशों की तुलना में मानवाधिकार का सम्मान करने वाले देशों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ रोडे आइलैंड द्वारा प्रकाशित ऐन्यूअल रिपोर्ट ऑन ग्लोबल ह्यूमन राइट्स के 2024 के संकरण में दी गई है। इसके अनुसार दुनियाभर में मानवाधिकार को कुचला जा रहा है और दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है, जहां इसका सम्मान पूरी तरह से किया जाता है।

इस रिपोर्ट में दुनिया के 195 देशों के मानवाधिकार की स्थिति को 0 से 100 अंक के पैमाने पर आँका जाता है – 0 यानि शून्य मानवाधिकार और 100 अंक यानि पूर्ण मानवाधिकार। रिपोर्ट में 0 से 60 अंक तक के देशों को “एफ” श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है, यह वर्ग उन देशों का है जहां मानवाधिकार का गंभीर हनन किया जाता है, भारत 41 अंकों के साथ इसी श्रेणी में है।

मानवाधिकार के संदर्भ में वैश्विक औसत 52 अंकों का है, यानि भारत की स्थिति वैश्विक औसत से भी बदतर है। इस श्रेणी में दुनिया के 62 प्रतिशत देश हैं। 61 से 70 अंक वाले देशों की श्रेणी “डी” है, और अमेरिका इसी श्रेणी में है। 71 से 80 अंक “सी” श्रेणी, 81 से 90 अंक “बी” श्रेणी और 91 से 100 अंक “ए” श्रेणी है। मानवाधिकार संरक्षण के संदर्भ में सबसे अच्छी स्थिति “ए” श्रेणी की है। दुनिया के महज 18 प्रतिशत देश “ए” और “बी” श्रेणी में हैं। इस आकलन के लिए मानवाधिकार के 4 श्रेणियों – शारीरिक समग्रता, सशक्तीकरण, श्रमिक अधिकार और न्यायिक अधिकार – के अंतर्गत 24 मानवाधिकारों का आकलन किया जाता है।

पिछले 25 वर्षों के दौरान वैश्विक स्तर पर प्रजातंत्र का हनन किया गया है, असमानता और डिजिटल उत्पीड़न तेजी से बढ़ा है। इस दौरान इस संबंध में कानूनों का दायरा बढ़ा है, नई संस्थाएं और एनजीओ बनते जा रहे हैं, नई प्रोद्योगिकी से मानवाधिकार से संबंधित सूचनाओं का प्रचार बढ़ गया है, पर इन सबके बीच मानवाधिकार नष्ट होता जा रहा है। यह ठीक वैसा ही है जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है, और साथ ही गरीबों की संख्या भी बढ़ रही है।

इस रिपोर्ट के अनुसार किसी देश को पूरे 100 अंक नहीं मिले हैं। मानवाधिकार के संदर्भ में सबसे आगे 97.9 अंकों के साथ आइसलैंड है, इसके बाद एस्टोनिया, डेनमार्क, फ़िनलैंड और मोनाको का स्थान है। सबसे अंतिम स्थान पर 0 अंक के साथ ईरान है, इससे ऊपर के देश अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया, येमन और साउथ सूडान हैं। प्रजातन्त्र मानवाधिकार का सबसे अच्छा सूचक है, पर इसके अपवाद भी हैं। भारत प्रजातन्त्र है पर मानवाधिकार की सूची में 41 अंकों के साथ “एफ” श्रेणी में है, वैश्विक स्तर पर 116वें स्थान पर है। दूसरी तरफ मोनाको में राजशाही है, पर यह “ए” श्रेणी में और वैश्विक स्तर पर पांचवें स्थान पर है। मानवाधिकार के संदर्भ में सबसे आगे यूरोप के देश हैं जबकि एशिया, मध्य-पूर्व और अफ्रीका में यह बदतर स्थिति में है। मानवाधिकार के संदर्भ में सबसे अधिक हनन श्रमिकों के अधिकारों का किया जा रहा है, अहिंसक आंदोलनों को कुचला जा रहा है, प्रदर्शनों के अधिकार को छीना जा रहा है, बाल मजदूरी पर अंकुश नहीं लग रहा है, न्यूनतम मजदूरी का पालन नहीं हो रहा है, महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को छीना जा रहा है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकतर अमीर देशों में मानवाधिकार सुरक्षित है, पर जी 20 समूह के अमीर देशों की स्थिति इसके ठीक विपरीत है। जी 20 समूह के कुल 19 देशों में से कोई भी देश “ए” श्रेणी में नहीं है, 5 देश “बी” श्रेणी में, 3 देश “सी” श्रेणी में, 2 देश “डी” श्रेणी में और भारत समेत 9 देश “एफ” श्रेणी में हैं।

कुल 195 देशों में से 58 प्रतिशत देश मानवाधिकार से संदर्भ में सबसे खराब श्रेणी में हैं, 23 प्रतिशत देश मध्यम श्रेणी में है और केवल 19 प्रतिशत देश इसका ठीक से पालन कर रहे हैं। मानवाधिकार की स्थिति ऐसी है कि किसी भी द्विपक्षीय या अनेक पक्षीय वार्ताओं में मानवाधिकार का जिक्र तक नहीं किया जाता। इसकी चर्चा अंतरराष्ट्रीय अधिवेशनों तक ही सीमित है, और इन अधिवेशनों में वही राष्ट्राध्यक्ष सबसे तेजी से इसकी वकालत करते हैं जो अपने देशों में मानवाधिकार को लगातार कुचलते हैं।

हमारे प्रधानमंत्री जी मानवता की बात तो करते हैं, पर मानवाधिकार पर खामोश रहते हैं। यहाँ मानवाधिकार की आवाज उठाने वालों पर बुल्डोज़र चलाया जाता है, मीडिया इसका लाइव प्रसारण करता है, सत्ता इसे रामराज्य बताती है और जनता इस पर तालियाँ बजाती है।

संदर्भ:

https://web.uri.edu/artsci/wp-content/uploads/sites/1132/GRIP-report-2024.docx_.pdf

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