साल जो बीत रहा है Best Quotes, Status, Shayari, Poetry & Thoughts Best New Year Hindi Shayari Images 2022
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Best Quotes, Status, Shayari, Poetry & Thoughts Best New Year Hindi Shayari Images 2022: एक और साल बीतने को है, और इस साल के साथ हमारे देश का लोकतंत्र भी दम तोड़ रहा है| सत्ता की निरंकुशता जो अब तक परदे के पीछे थी, अट्टाहास करते हुए बाहर आ चुकी है| अब तो सत्ता के विरोध की आवाजें आतंकवाद से भी अधिक सजायाफ्ता हो चली हैं, और मीडिया पूरी तरह से मृत हो चुका है| अब तो न्यायालयों के फैसलों पर हंसी भी नहीं आती और चुनाव के ठीक पहले सरकारी एजेंसियों की विपक्षी नेताओं पर रेड भी एकदम सामान्य घटना हो चली है|
बीते साल पर कवितायें कम ही लिखी जाती हैं क्योंकि सारी आशाएं नए वर्ष पर टिक जाती हैं| कवि अजेय की एक कविता है, अलविदा, इसमें पिछले वर्ष की निराशाओं को छोड़कर नए वर्ष से उम्मीदों पर चर्चा है|
अलविदा/अजेय
अलविदा ओ पतझड़!
बाँध लिया है अपना डेरा-डफेरा
हाँक दिया है अपना रेवड़
हमने पथरीली फाटों पर
यह तुम्हारी आखिरी ठण्डी रात है
इसे जल्दी से बीत जाने दे
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की दुनिया देखेंगे!
विदा, ओ खामोश बूढ़े सराय!
तेरी केतलियाँ भरी हुई हैं लबालब हमारे गीतों से
हमारी जेबों में भरी हुई है ठसाठस तेरी कविताएँ
मिलकर समेट लें
भोर होने से पहले
अँधेरी रातों की तमाम यादें
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की हलचल सुनेंगे!
विदा, ओ गबरू जवान कारिन्दो!
हमारी पिट्ठुओं में
ठूँस दी है तुमने
अपनी संवेदनाओं के गीले रूमाल
सुलगा दिया है तुमने
हमारी छातियों में
अपनी अँगीठियों का दहकता जुनून
उमड़ने लगा है एक लाल बादल
आकाश के उस कोने में
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की हवाएँ सूँघेंगे!
सोई रहो बर्फ़ में
ओ, कमज़ोर नदियों
बीते मौसम घूँट-घूँट पिया है
तुम्हें बदले में कुछ भी नहीं दिया है
तैरती है हमारी देहों में तुम्हारी ही नमी
तुम्हारी ही लहरें मचलती हैं
हमारे पाँवों में
सूरज उतर आया है आधी ढलान तक
आज हम पहाड़ लाँघेंगे उस पार की धूप तापेंगे!
विदा, ओ अच्छी ब्यूँस की टहनियों
लहलहाते स्वप्न हैं हमारी आँखों में
तुम्हारी हरियाली के
मज़बूत लाठियाँ हैं हमारे हाथों में
तुम्हारे भरोसे की
तुम अपनी झरती पत्तियों के आँचल में
सहेज लेना चुपके से
थोड़ी-सी मिट्टी और कुछ नायाब बीज
अगले बसंत में हम फिर लौटेंगे!
कवि माहेश्वर तिवारी ने अपनी कविता, गया साल, में लिखा है, शहर लाशघरों में हुए तब्दील, गिद्धों का मना महाभोज|
गया साल/माहेश्वर तिवारी
जैसे -तैसे गुज़रा है
पिछला साल
एक-एक दिन बीता है
अपना
बस हीरा चाटते हुए
हाथ से निबाले की
दूरियाँ
और बढ़ीं, पाटते हुए
घर से, चौराहों तक
झूलतीं हवाओं में
मिली हमें
कुछ झुलसे रिश्तों की
खाल
व्यर्थ हुई
लिपियों-भाषाओं की
नए-नए शब्दों की खोज
शहर
लाश घर में तब्दील हुए
गिद्धों का मना महाभोज
बघनखा पहनकर
स्पर्शों में
घेरता रहा हमको
शब्दों का
आक्टोपस-जाल
वेणु गोपाल की कविता, साल की आख़िरी रात, के अंत में लिखा है, रात के बारह बजने में अभी काफी देर है|
साल की आख़िरी रात/वेणु गोपाल
एक छलांग
लगाई है
उजाले ने
अंधेरे के पार
पाँव
हवा में--
और
मैं
अपनी डायरी पर
झुका हुआ
उसके
धरती छूने का
इन्तज़ार
करता
रात के बारह बजने में
अभी
काफ़ी देर है।
अशोक रंजन सक्सेना ने अपनी कविता, बीते साल, में लिखा है - मुझको क्या मतलब नेता से, मैं तो केवल एक सिपाही, लड़ने का पैसा लेता हूँ, जो देता उसका होता हूँ|
बीते साल/अशोक रंजन सक्सेना
बीते साल मुझे बतला दे,
कितना तुमने दिया धरा को
और कहाँ क्या-क्या खोया है?
मैंने माँगी अच्छी पोथी,
तुमने ला दीं सात किताबें,
पढ़ते बीती गरमी-बरखा
छोटे दिन और लंबी रातें।
तुमने जो भी प्रश्न दिए थे,
उत्तर मुझको याद नहीं थे,
फिर भी मुझको नहीं शिकायत
तुमने मुझको फेल कर दिया!
लेकिन जिसने पढ़ा न कुछ था
उसको कैसे पास कर दिया?
तुमने बाँटी मुफ्त पढ़ाई,
केवल रुपयों के बेटों को!
मेरे पास नहीं थे पैसे
फीस नहीं दी, नाम कट गया।
अब में झंडा लिये चल रहा
हर जलूस के आगे-आगे!
मुझको क्या मतलब नेता से
मैं तो केवल एक सिपाही।
लड़ने का पैसा लेता हूँ
जो देता उसका होता हूँ!
पास तुम्हारे क्या उत्तर हैं?
मेरे इन जलते प्रश्नों का
नई योजना के ख़ाकों में
क्या नक्शा मेरे सपनों का?
अच्छा आज विदा लेता हूँ
बाकी बातें कभी लिखूँगा,
नई सुबह के साथ मिलूँगा।
सरोज मिश्र ने अपनी कविता, बीत गए लो तुम भी वैसे ही, में बताया है कि यह साल भी वही सारी समस्याएं और प्रश्न हमारे बीच छोड़ कर एक इतिहास बन जाएगा|
बीत गए लो तुम भी वैसे/सरोज मिश्र
बीत गए लो तुम भी वैसे,
जैसे बीता पिछला साल!
धरती के दिन हुये न धानी
नभ की काली रात न बदली!
आग अभी तक है जंगल में
हिम की पत्थर आँख न पिघली!
आंखों के सपने आंखों में,
अधरों से मुस्कानें रुठीं,
सूनी मांग लिये उम्मीदें,
इच्छाओं की चूड़ी टूटी!
बगुलों का तीर्थ लगता है
बस्ती का हर उथला ताल!
बीत गए लो तुम भी वैसे,
जैसे बीता पिछला साल!
राग सदा ही वे गाये जो,
समय पुरुष को मोहित कर लें!
किसी सुबह फिर बिछड़ी खुशियाँ,
मुस्कायें बाहों में भर लें!
हमने जिसके आराधन को
सुन्दर से सुन्दर शब्द चुने!
उस मूरत ने गीत हमारे
सुनकर भी कर दिए अनसुने!
कहीं प्रतीक्षित हीरामन ये
तोड़ न दे पिंजरे का जाल!
बीत गए लो तुम भी वैसे,
जैसे बीता पिछला साल!
दुःख पीड़ा आंसू के मैनें
पहले कुछ गहने बनवाये!
फिर सिंगार किया कविता का,
धुले हुए कपड़े पहनाये!
अनब्याही पर रही आज तक,
कोई राजकुँवर न आया,
इसे प्रसाधन कृतिम न भाये,
उनको मौलिक रूप न भाया!
देख विवश मुझको हँस देती,
करे न कविता एक सवाल!
बीत गए लो तुम भी वैसे,
जैसे बीता पिछला साल!
इस लेख के लेखक की एक कविता है, साल दर साल| इसमें बताया गया है कि बस तारीखें बदलती जाती हैं, पर समाज की समस्याएं वहीं रहती हैं, या सत्ता द्वारा समस्याएं खडी की जाती हैं|
साल दर साल/महेंद्र पाण्डेय
तारीख बदलती है
साल बदलता है
पर,
भूख, बेरोजगारी
बीमारी, लाचारी
बेबसी
रहती है
साल दर साल
तारीख बदलती है
साल बदलता है
पर,
निकम्मी सरकार
तारीखी कचहरी
लुटेरे अधिकारी
निरंकुश पुलिस
रहती है
साल दर साल|