2023 तक चुनाव नहीं कराएगी म्यांमार की नरसंहारी सेना, अपनी सत्ता चलायेंगे सेना प्रमुख जनरल मिन औंग हलिंग
(1 फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किया था।)
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। दुनिया में लोकतंत्र का क्या हाल रह गया है इसे म्यांमार की हालात से समझा जा सकता है। अब म्यांमार की सेना के घोषणा कर दी है कि अगस्त 2023 तक उनकी कार्यकारी सरकार देश का शासन चलायेगी और प्रधानमंत्री होंगे, सेना के मुखिया जनरल मिन औंग हलिंग। 1 फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट करते हुए सेना ने घोषणा की थी कि एक वर्ष के भीतर ही फिर से चुनाव कराकर देश में लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता सौप दी जायेगी, पर अब अगस्त 2023 तक की घोषणा ही सेना की और तख्तापलट के सूत्रधार जनरल मिन औंग हलिंग की मंशा को उजागर करता है।
इस बीच पूरी दुनिया जो लोकतंत्र पर बड़े भाषण देती है, मानवाधिकार की बातें करती है – म्यांमार के मामले पर खामोश है। यही दुनिया चीन के मानवाधिकार हनन और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों के जेल भेजे जाने पर भारी-भरकम वक्तव्य देती है और चीन की भर्त्सना करती है। दुनिया के देश बेलारूस में मानवाधिकार हनन की भी चर्चा करते हैं पर म्यांमार में जो कुछ सेना द्वारा किया जा रहा है, अमेरिका समेत पूरी दुनिया खामोश है। संयुक्त राष्ट्र भी म्यांमार पर खामोश है। वैसे भी संयुक्त राष्ट्र ने अब अपनी गरिमा और महत्त्व पूरी तरह खो डी है क्योंकि इसके सभी तंत्र पर दुनिया के निरंकुश शासकों का कब्ज़ा है।
म्यांमार में सेना ने तख्तापलट के बाद उसे वर्ष 2008 के संविधान के तहत जायज ठहराया था, जबकि इस संविधान को वहां की सेना ने ही इसे अपने अनुरूप तैयार किया था। इसी फरवरी को तख्ता पलट के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री आंग सैन सु की पर चुनावों में धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, पर आज तक सेना ने एक भी आरोप के साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये हैं। हाल में ही सेना ने पिछले चुनाओं को आधिकारिक तौर पर रद्द कर दिया है और एक नए चुनाव आयोग का गठन किया है।
सेना के तख्ता पलट के बाद से म्यांमार में सेना के विरुद्ध आन्दोलन किये जा रहे हैं, जिसमें लगभग एक हजार नागरिक मारे गए हैं और तीन हजार से अधिक आंदोलनकारियों को कैद कर लिया गया है। मीडिया के सभी स्त्रोत बंद कर दिए गए हैं और अधिकतर पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया है। अब तो सेना पर भी नागरिकों के हमले हो रहे हैं और सैनिक भी मारे जा रहे हैं। म्यांमार भी अब गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है, जहां की अनेक जनजातियाँ अब सेना से लोहा ले रही हैं।
इस दौर में म्यांमार कोविड 19 के सन्दर्भ में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, स्वास्थ्य सेवायें जर्जर अवस्था में हैं, ऑक्सीजन की कमी है, पर जनरल मिन औंग हलिंग के अनुसार कोविड 19 का यह दौर जनता द्वारा छेड़े गए जैव-युद्ध का नतीजा है। इस सन्दर्भ में म्यांमार दुनिया का पहला देश होगा, जहां की सत्ता जनता पर जैव-युद्ध का आरोप लगा रही है।
देश की मोदी सरकार को म्यांमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कहीं से भी ऐसा नहीं लगता जिसकी भर्त्सना भी की जा सके। अपने देश में वर्ष 2014 के बाद से लोकतंत्र जिस हालत में है, उसमें मोदी सरकार का यह रवैय्या कहीं से भी आश्चर्यजनक नहीं है, आखिर ट्रम्प जैसे तानाशाह के लिए "अबकी बार ट्रम्प सरकार" का नारा भी तो मोदी जी ने लगाया था - ब्राज़ील के तानाशाह बोल्सेनारो, मानवाधिकार के हनन के लिए कुख्यात इजराइल के प्रधानमंत्री, अपने विरोधियों को विषपान कराने वाले रूस के पुतिन, मानवाधिकार का लगातार हनन करने वाले सऊदी अरब के शासक भी तो मोदी जी के सबसे अच्छे मित्रों में शुमार हैं। म्यांमार की सेना के साथ अडानी के व्यापारिक रिश्ते भी हैं, जाहिर है मोदी जी अडानी के व्यापारिक नुकसान का कोई काम नहीं करेंगें।
अपने 76 वर्ष पूरे होते-होते संयुक्त राष्ट्र सामान्य जनता के लिए अपना पूरा महत्त्व खो चुका है, अब यह उन देशों की धरोहर बन गया है जो जनता का दमन करते हैं और मानवाधिकार का खुले आम हनन करते हैं। ऐसे देश दुनिया की नज़रों में अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सम्बंधित संस्थाओं के सदस्य पद पर पहुँच जाते हैं। दुनिया में भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, मेक्सिको और क्यूबा जैसे देश मानवाधिकार हनन के मामले में अग्रणी हैं और ये सभी देश संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संरक्षण से जुडी संस्था, ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्य भी हैं और ऐसे देशों को सदस्य बनाने के लिए बड़ी संख्या में अन्य देश भी समर्थन करते हैं।
हाल में ही वर्ष 2021 से 2023 तक के लिए ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्यों के चुनाव में चीन, पाकिस्तान, रूस, मेक्सिको और क्यूबा के अतिरिक्त बोलीविया, कोटे द आइवरी, फ्रांस, गैबन, मलावी, नेपाल, सेनेगल, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम और उज्बेकिस्तान की जीत हुई है और ये देश दुनिया के मानवाधिकार की अब निगरानी करेंगें। भारत वर्ष 2019 से 2021 तक के लिए इसका सदस्य है। दुनिया में मानवाधिकार का क्यों अधिक से अधिक हनन किया जा रहा है, यह इन देशों की सूचि से समझा जा रहा है। लगभग सभी मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार कोंसिल अपनी गरिमा खो चुका है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसके अधिकतर चुने गए सदस्य स्वयं अपने देश में मानवाधिकार का खुलेआम हनन कर रहे हैं, और अपने कारनामों पर पर्दा डालने और अपने विरुद्ध आवाज दबाने के लिए इस काउंसिल की सीट का उपयोग करते हैं।
दुनिया का एक और देश से लोकतंत्र मर गया, पर दुनिया और संयुक्त राष्ट्र को कोई फर्क नहीं पड़ता। यह दूसरे निरंकुश शासकों के लिए एक मिसाल है कि वे अपने देश में जितना चाहे जनता का दमन कर सकते हैं, और दुनिया आँखे बंद कर लेगी।