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विमर्श

कोविड 19 से ज्यादा घातक है भुखमरी, प्रतिदिन 12 हजार लोगों की हो सकती है मौत

Janjwar Desk
14 July 2020 7:00 AM IST
कोविड 19 से ज्यादा घातक है भुखमरी, प्रतिदिन 12 हजार लोगों की हो सकती है मौत
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आने वाले समय में भुखमरी से सामान्य समय में प्रतिदिन मरने वालों के आंकड़े में 12000 लोग और जुड़ जायेंगे और यदि ऐसा हुआ तो यह संख्या कोविड 19 के सबसे बुरे दौर में महामारी से प्रतिदिन मरने वालों की संख्या से 2000 अधिक होगी....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

अंतरराष्ट्रीय चैरिटी संस्था ऑक्सफैम द्वारा प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार कोविड 19 के कारण करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर पहुँच गए हैं, और आने वाले समय में जितने लोग वैश्विक महामारी से मरेंगे, उससे कहीं अधिक लोग भूख से मरेंगे। लॉकडाउन, कर्फ्यू, आवागमन पर प्रतिबन्ध और सीमाओं को बंद करने के कारण लोगों तक खाना नहीं पहुँच पा रहा है, खाद्यान्न आपूर्ति बाधित हो रही है और लोगों की आमदनी तेजी से घटी है या फिर बंद हो गई है।

पहले से ही बहुत सारे देशों में भुखमरी की विकट समस्या थी, पर अब यह समस्या विकराल हो चली है। अनुमान है कि अफ़ग़ानिस्तान में केवल भूख के कारण दस लाख से अधिक मौतें होंगीं, जबकि यमन में यह मानवता के नाम पर धब्बा होगा। यमन में इस वैश्विक महामारी के पहले भी दो-तिहाई आबादी खाद्यान्न समस्या से जूझ रही थी।

अफ़ग़ानिस्तान में खाद्यान्न्न संकट इतना बढ़ गया है कि अकाल जैसे हालात हो गए हैं। पिछले वर्ष सितम्बर तक वहां लगभग 25 लाख आबादी भुखमरी के कगार पर थी, जबकि कोविड 19 के बाद इस वर्ष मई तक यह संख्या 35 लाख तक पहुँच गई। अफ़ग़ानिस्तान की एक बड़ी आबादी ईरान में काम करती है, पर अब सीमा बंद होने के कारण यहाँ के लोग बेरोजगार हो गए हैं।

अनुमान है कि आने वाले समय में भुखमरी से सामान्य समय में प्रतिदिन मरने वालों के आंकड़े में 12000 लोग और जुड़ जायेंगे और यदि ऐसा हुआ तो यह संख्या कोविड 19 के सबसे बुरे दौर (अप्रैल 2021) में महामारी से प्रतिदिन मरने वालों की संख्या से 2000 अधिक होगी।

ऐसी ही हालत यमन, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, वेनेज़ुएला, वेस्ट अफ्रीका का सहेल क्षेत्र, इथियोपिया, सूडान, साउथ सूडान, सीरिया और हैती में भी है। दूसरे देशों में जाने की बंदिशों के कारण समस्या और विकराल हो रही है।

इस वर्ष के पहले चार महीनों के दौरान यमन के दूसरे देशों में कार्यरत श्रमिकों द्वारा अपने देश भेजे जाने वाली मुद्रा में 80 पर्तिशत से अधिक की कमी दर्ज की गई है। यमन में खाने-पीने का 90 प्रतिशत से अधिक सामान दूसरे देशों से आयात किया जाता है, जो इस दौर में रुक गया है। खाद्यान्न की कमी से जो कुछ बाजार में उपलब्ध है वह बहुत महंगा है और सामान्य जनता की पहुँच से दूर है।

ऑक्सफैम के चीफ एग्जीक्यूटिव डैनी सृस्कंदाराजाह के अनुसार यह समझ में आता है कि कोविड 19 वैश्विक महामारी है इसलिए सभी देशों की प्राथमिकता इससे निपटना है, पर सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी संगठनों को समझाना होगा कि खाद्यान्न सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है और इस और ध्यान देना ही होगा।

रिपोर्ट के अनुसार केवल गरीब देशों में ही यह समस्या नहीं, बल्कि भारत और ब्राजील जैसे माध्यम आय वाले देश भी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं। सरकारों को एक निष्पक्ष और सतत खाद्य तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है, जिसके तहत सबको खाद्यान्न सुरक्षा मिले।

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम के अनुसार इस वर्ष कोविड 19 के प्रभाव से दुनिया में अत्यंत भुखमरी की चपेट में 12 करोड़ से अधिक आबादी आ जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के कोविड 19 से सम्बंधित ग्लोबल फण्ड में खाद्यान्न सुरक्षा के लिए जितनी मुद्रा उपलब्ध है, उसका 9 प्रतिशत भी अब तक सम्बंधित देशों को उपलब्ध नहीं कराया गया है।

दुनिया के अधिकतर मानवाधिकार संगठन अब गरीब देशों के पहले के कर्जे माफ़ करने की मांग कर रहे हैं। अफ्रीका के सहेल क्षेत्र के देशों में जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर पद रहा है और लगभग 40 लाख आबादी पलायन कर रही है। इससे संसाधनों के बंटवारे के लिए तनाव बढेगा और विस्थापितों की खाद्यान सुरक्षा हमेशा के लिए खतरे में पड़ जायेगी।

दुनियाभर में कोविड 19 के कारण रोजगार की समस्या पैदा हो गई है, पर इसका सबसे अधिक असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है। भारत में केंद्र सरकार और अनेक राज्य सरकारें एक बड़ी आबादी को मुफ्त में खाद्यान्न उपलब्ध कराने का जोरशोर से दावा कर रही हैं, फिर भी जमीनी वास्तविकता एकदम भिन्न है। अप्रैल में इंटरनेशनल कमीशन ऑफ़ जुरिस्ट्स ने अपने ब्रीफिंग पेपर में बताय था कि कोविड 19 के दौर में सबको खाद्यान्न के अधिकार के मामले में भारत बहुत पीछे है।

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन के अनुसार भारत में 40 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की हालत बहुत खराब है और इनमें से अधिकतर अत्यधिक गरीबी की तरफ बढ़ रहे हैं। विश्व बैंक की गरीबी रेखा, 240 रुपये प्रतिदिन की आमदनी, के सन्दर्भ में भारत में 1 करोड़ से अधिक आबादी इससे नीचे पहुँच रही है।

भारत में कोविड 19 के दौर के पहले भी खाद्यान्न सुरक्षा और कुपोषण की स्थिति बहुत खराब थी। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 में कुल 117 देशों में भारत का स्थान 102वां था। भारत को इंडेक्स में अत्यधिक भुखमरी वाली श्रेणी में रखा गया है। अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर भारत का हरेक पड़ोसी देश – चीन (25), श्रीलंका (66), नेपाल (73), बांग्लादेश (88) और पाकिस्तान (94) – बेहतर स्थिति में था।

लन्दन के किंग्स कॉलेज और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार कोविड 19 के प्रकोप के कारण भुखमरी उन्मूलन के क्षेत्र में दुनिया ने पिछले 30 वर्षों में जितनी प्रगति की थी, वह एक झटके में समाप्त हो जायेगी। इससे इस वर्ष के अंत तक दुनिया के 8 प्रतिशत से अधिक आबादी जूझेगी। इस समस्या के और विकराल होने की संभावना है क्योंकि कोविड 19 से पार पाने के बाद अधिकतर देश उद्योगों और अर्थव्यवस्था की तरफ ध्यान देंगें, और भुखमरी से मुक्ति शायद ही किसी देश की प्राथमिकता है।

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