पर्यावरण सुरक्षा व आवश्यक बिजली के लिए सौर ऊर्जा ही भारत में उचित विकल्प
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राज कुमार सिन्हा का आलेख
सौर ऊर्जा में सस्ती टेक्नोलॉजी और इनोवेशन ने पुरी दुनिया में बिजली का परिदृश्य बदल दिया है। 2010 में भारत की राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन शुरू किया गया था। उस समय मात्र 17 मेगावाट बिजली उत्पादन होता था। 20 जून 2020 तक सौर बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता 35 हजार 739 हो गया है। वर्तमान केंद्र सरकार ने 2022 तक 1 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा, 60 हजार मेगावाट पवन ऊर्जा, 15 हजार मेगावाट अन्य परम्परागत क्षेत्रों से उत्पादन का लक्ष्य रखा है। देश के पांच प्रमुख राज्य जहां सोलर उत्पादन इस प्रकार है : (मेगावाट में) कर्नाटक - 7100, तेलगांना - 5000, राजस्थान - 4400, गुजरात - 2654। मध्यप्रदेश भी इस दौर में जल्द ही शामिल होने वाला है।
1 नवंबर 2020 के सरकारी आंकड़े के अनुसार, मध्यप्रदेश में विभिन्न स्रोतों से मिलने वाली बिजली (मेगावाट में) इस प्रकार है : राज्य थर्मल - 5400, राज्य जल विद्युत - 917, संयुक्त उपक्रम अन्य हायडल - 2456, केंद्रीय क्षेत्र - 5055, निजी क्षेत्र - 1942, अलट्रा मेगा पावर प्रोजेक्टस - 1485 एवं नवकरणीय ऊर्जा - 3965 अर्थात 21 हजार 220 मेगावाट प्रतिदिन की क्षमता है। दिसंबर 2020 में अधिकतम मांग 15 हजार मेगावाट दर्ज की गयी थी। जबकि वर्ष में औसत मांग लगभग 9 हजार मेगावाट है। रीवा में 750 मेगावाट की अलट्रा मेगा सोलर प्लांट शुरू हो चुका है। रीवा सौर परियोजना से हर साल 15.7 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को रोका जाएगा, जो 2 करोड़ 60 लाख पेड़ों के लगाने के बराबर है। यह दावा एक सरकारी विज्ञप्ति में किया गया है। मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों में सोलर पावर प्लांट (मेगावाट में) आगर - 550, नीमच - 500, मुरैना - 1400, शाजापुर - 450, छतरपुर - 1500 और ओंकारेश्रवर - 600 अर्थात कुल 5 हजार मेगावाट क्षमता की परियोजना निर्माणाधीन है।
भारत में 30 मिलियन फार्म पम्पस हैं जिसमें से 10 मिलियन पम्पस डीजल से चलाए जाते हैं। इन किसानों को ऊर्जा सुरक्षा उत्थान महा अभियान (कुसुम योजना) द्वारा जो सोलर पंप दिया जा रहा है, उससे कुल 28 हजार 250 मेगावाट बिजली पैदा किया जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि अबतक 14 हजार 250 किसानों के लिए सोलर पंप स्थापित किये जा चुके हैं। तीन सालों में 2 लाख पंप और लगाने का लक्ष्य है। दूसरी ओर मध्यप्रदेश में अबतक 30 मेगावाट क्षमता के सोलर रूफ टाॅप संयत्र स्थापित किये जा चुके हैं। इस साल 700 सरकारी भवनों पर 50 मेगावाट के सोलर रूफ टाॅप लगेंगे। भोपाल के निकट मंडीदीप में 400 औद्योगिक इकाइयों के लिए 32 मेगावाट क्षमता की सोलर रूफ टाॅप परियोजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। जबलपुर शहर के गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ) और वीकल फैक्ट्री (वीएफजे) में क्रमशः 10-10 मेगावाट का सोलर प्लांट लगाया गया है। इन दोनों जगहों से बिजली का उत्पादन और वितरण किया जा रहा है। अब जितनी बिजली इस प्लांट से बनती है, उतना क्रेडिट इनके बिल में किया जा रहा है। ऐसे में न केवल वीएफजे और जीसीएफ बल्कि आयुध निर्माणी खमहरिया (ओएफके) तथा ग्रे आयरन फाउंड्री (जीआइएफ) को भी बिलों में बचत होने लगी है। न केवल चारों आयुध निर्माण बल्कि इस्टेट के बंगले एवं क्वार्टर में होने वाली बिजली की खपत भी इसमें समाहित की गयी है। इन दोनों सोलर प्लांट से हर साल 3 करोड़ 60 लाख यूनिट से ज्यादा का बिजली उत्पादन किये जाने का अनुमान है। एक अनुमान के अनुसार इन दोनो प्लांट से 40 हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोका जा सकेगा।
देश में अधिकांश बिजली, लगभग 58 फीसदी का उत्पादन कोयले से होता है। भारत में बिजली की स्थापित क्षमता 3 लाख 73 हजार 436 मेगावाट है, जिसमें कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों का योगदान 2 लाख 21 हजार 803 मेगावाट है। इसमें से 30 हजार मेगावाट से अधिक क्षमता के संयत्र 20 साल से ज्यादा पुराने, खर्चीले और प्रदूषणकारी हैं। औद्योगिक विकास के लिए कोयला और पेट्रोलियम जलाने से निकलने वाला कार्बन का धुआं पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारक है। ग्लोबल रिस्क इंडेक्स 2020 के अनुसार 1998 से 2017 के बीच जलवायु परिवर्तन सूखा, अतिवृष्टि, समुद्री तूफान आदि के कारण 5 लाख 99 हजार करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान भारत में हुआ है। वहीं, केवल 2018 में जलवायु परिवर्तन से आर्थिक नुकसान 2 लाख 79 हजार करोड़ का था और 2081 लोगों की मौतें हो गयीं। राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुसार अगले दशक में विद्युत की बढती मांग को 2027 तक 2 लाख 75 हजार मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा किया जा सकता है। इसलिए कोयले के नये संयंत्रों की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसी परिस्थितियों में बिजली की मांग और अर्थव्यवस्था की गति को बनाए रखने के लिए आवश्यक हो गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा में निरंतर वृद्धि करते हुए विद्युत उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता कम की जाए। ग्रीनपीस के अनुसार, कोयले से उत्पन्न बिजली, सौर और पवन ऊर्जा से 65 फीसदी महंगी है।
संपूर्ण भारतीय भूभाग पर 5000 लाख करोड़ किलोवाट प्रति वर्ग किलोमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है जो कि विश्व की संपूर्ण खपत से कई गुणा है। देश में वर्ष में 250 से 300 दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिन भर उपलब्ध रहती है। भारत का दुनिया भर में बिजली का उत्पादन और खपत के मामले में पांचवां स्थान है। भारत की लगभग 72 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है और इनमें से हजारों गांव ऐसे भी हैं जो आज भी बिजली जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है। यह देश को ऊर्जा की योग्यता, संरक्षण और ऊर्जा के नवीन स्रोतों पर ध्यान देने का उचित समय है। सौर ऊर्जा, भारत में ऊर्जा की आवश्यकताओं की बढती मांग को पूरा करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(लेखक बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हैं।)