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विमर्श

प्रजातंत्र को कुचलने वाले सत्ता में और जनता ध्रुवीकरण-राष्ट्रवाद के खेल में इतनी बिजी कि भूख, बेरोजगारी, महंगाई नहीं मुद्दा

Janjwar Desk
26 Jun 2023 9:18 AM IST
Jharkhand News : आदिम जनजाति की दुर्दशा बेहद दयनीय, बुजुर्ग महिला परिवार के साथ शौचालय में रहने के लिए मजबूर
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Jharkhand News : आदिम जनजाति की दुर्दशा बेहद दयनीय, बुजुर्ग महिला परिवार के साथ शौचालय में रहने के लिए मजबूर (file photo)

दुनियाभर में प्रजातंत्र के विनाश के परिणाम स्पष्ट हैं – सामाजिक असमानता बढ़ रही है, मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है, समाज अस्थिर हो रहा है, चरम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतें बढ़ती जा रही हैं, देशों की संप्रभुता खतरे में हैं और इन सबसे लोग मर रहे हैं....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Erosion in democracy is not only about human rights, it is also about human deaths. जब किसी भी वस्ती का नाश होने लगता है, तब पूरी दुनिया उसकी गहन चर्चा करने लगती है – प्रजातंत्र के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। पिछले लगभग एक दशक से पूरी दुनिया में प्रजातंत्र संकट में है, प्रजातंत्र की छवि लगातार धूमिल होती जा रही है पर प्रजातंत्र का महिमामंडन बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक और समाजशास्त्री लगभग दो दशक पहले तक प्रजातंत्र को राजनीति का एक स्थाई प्रकार मानते थे, पर प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में, ट्रम्प ने अमेरिका में, बोल्सेनारो ने ब्राज़ील में, बोरिस जॉनसन ने यूनाइटेड किंगडम में, सेना ने म्यांमार में, शेख हसीना ने बंगलादेश में, नेतान्याहू ने इजराइल में, विक्टर ओर्बन ने हंगरी में और रेसेप तय्यिप एरदोगन ने तुर्की में बता दिया कि प्रजातंत्र को प्रजातांत्रिक तरीकों से ही आसानी से कुचला जा सकता है। इन देशों ने यह भी बता दिया कि प्रजातंत्र को कुचलने वाले सत्ता में बने रहते हैं और जनता ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद के खेल में इतनी व्यस्त रहती है कि भूख, बेरोजगारी, महंगाई जैसे विषय उसे परेशान ही नहीं करते।

प्रजातंत्र के विनाश से केवल मानवाधिकार का हनन और समाज अस्थिर नहीं रहता है बल्कि इसके भयानक परिणाम होते हैं। हाल में ही समाजविज्ञान से सम्बंधित द मिलबैंक नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार प्रजातंत्र के विनाश के बाद से ऐसे स्थानों में आम आबादी की मृत्युदर भी बढ़ जाती है। इस अध्ययन को सायराक्यूज यूनिवर्सिटी में सामाजिक विज्ञान की प्रोफ़ेसर जेनिफ़र करस मोर्तेज़ की अगुवाई में किया गया है। इस अध्ययन को अमेरिका में किया गया है, पर इसके निष्कर्ष पूरी दुनिया के प्रजातंत्र पर सटीक बैठते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोविड 19 से होने वाली मृत्यु के आंकड़े हैं। सबसे अधिक मौतें उन्हीं देशों में दर्ज की गईं, जहाँ का प्रजातंत्र खतरे में था।

इस अध्ययन के लिए अमेरिका के विभिन्न राज्यों के स्टेट डेमोक्रेसी इंडेक्स से प्रजातंत्र का आकलन किया गया और वर्ष 2000 से 2019 के बीच 25 से 64 वर्ष की उम्र की आबादी की मृत्यु दर का आकलन किया गया। इससे पहले भी अमेरिका में रोजगार प्राप्त आबादी के बढ़ते मृत्युदर से सम्बंधित अनेक अध्ययन किये गए हैं, किसी में रोजगार से सम्बंधित नीतियों और किसी में हथियारों से सम्बंधित लचर क़ानून को जिम्मेदार ठहराया गया था। प्रोफ़ेसर जेनिफ़र करस मोर्तेज़ के दल द्वारा किया गया अध्ययन बढ़ती मृत्यु दर का एक स्पष्ट और व्यापक कारण बताता है।

बड़े गर्व से बताया जाता है कि हमारा देश इस समय पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्दी ही तीसरे स्थान पर पहुँचाने वाला है। पर, इस देश में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मौत में से 69 प्रतिशत मौतें भूख और कुपोषण के कारण होती हैं। यहाँ गर्मी के कारण उत्तर प्रदेश के एक ही शहर में तीन दिनों के अन्दर ही 100 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। अब बाढ़ से आसाम में लोग मर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देश में हरेक वर्ष 12 लाख से अधिक लोग मर जाते हैं। स्टेट ऑफ़ फ़ूड सिक्यूरिटी एंड न्यूट्रीशन इन थे वर्ल्ड 2020 नामक रिपोर्ट के अनुसार हरेक वर्ष 25 लाख लोगों के मौत भुखमरी के कारण होती है। इसके अतिरिक्त भीड़ हिंसा, गाय के नाम पर हिंसा, जेल और हवालात में और सडकों पर दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं। हमारी निरंकुश सत्ता ने मौत के आंकड़ों को कम करने का तरीका तो नहीं खोजा है पर इन आंकड़ों को गायब करने का शर्मनाक और क्रूर तरीका खोज निकाला है – देश की संसद में भूख, प्रदूषण, चरम प्राकृतिक आपदाओं और ऐसी हरेक असामान्य मौतों के आंकड़े शून्य बताये जाते हैं।

दुनिया के अन्य देशों के साथ ही अमेरिका के जिन राज्यों में प्रजातंत्र मजबूत है, वहां शिक्षा, स्वास्थ्य, सबके लिए रोजगार के अवसर और जनता की बुनियादी जरूरतों के अनुसार नीतियाँ बनाई जाती हैं। इससे समाज में हिंसा कम रहती है, आबादी स्वस्थ्य रहती है और समाज में खुशहाली रहती है। दूसरी तरफ कमजोर प्रजातंत्र में आबादी तनाव, अवसाद, चिंता, अनिंद्रा और भूख से घिरी रहती है, जिससे मादक पदार्थों के सेवन और हिंसा में बृद्धि होती है और समाज अस्थिर रहता है। यह सामान्य सा तथ्य है कि अस्थिर समाज में मृत्युदर अधिक रहती है।

पूरी दुनिया में जीवंत प्रजातंत्र मृतप्राय हो चला है और निरंकुश प्रजातंत्र का दौर चल रहा है। पिछले एक दशक के दौरान जीवंत प्रजातंत्र 41 देशों से सिमट कर 32 देशों में ही रह गया है, दूसरी तरफ निरंकुश शासन का विस्तार 87 और देशों में हो गया है। दुनिया की महज 8.7 प्रतिशत आबादी जीवंत प्रजातंत्र में है। प्रजातंत्र का सबसे अधिक और अप्रत्याशित अवमूल्यन जिन देशों में हो रहा है, उनमें भारत, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका भी शामिल हैं। हंगरी, तुर्की, फिलीपींस भी ऐसे देशों की सूचि में शामिल हैं जहां प्रजातंत्र के आधार पर निरंकुश सत्ता खडी है। जीवंत प्रजातंत्र की मिसाल माने जाने वाले यूनाइटेड किंगडम में आज के दौर में जन-आंदोलनों को कुचला जा रहा है और अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश है।

प्रजातंत्र के अवमूल्यन का सबसे बड़ा कारण निरंकुश सत्ता द्वारा देशों के राजनीतिक ढाँचे को खोखला करना, चुनावों में व्यापक धांधली, निष्पक्ष मीडिया को कुचलना, संवैधानिक संस्थाओं पर अधिकार करना और न्यायिक व्यवस्था पर अपना वर्चस्व कायम करना है। स्टॉकहोम स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन असिस्टेंस के अनुसार दुनिया में जितने देशों में प्रजातंत्र है उनमें से आधे में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है। कुल 173 देशों की शासन व्यवस्था के आकलन के बाद रिपोर्ट में बताया गया है कि महज 104 देशों में प्रजातंत्र है और इसमें से 52 देशों में इसका अवमूल्यन होता जा रहा है। इनमें से 7 देश – अमेरिका, एल साल्वाडोर, ब्राज़ील, हंगरी, भारत, पोलैंड और मॉरिशस - ऐसे भी हैं, जिनमें यह अवमूल्यन सबसे तेजी से देखा जा रहा है।

दुनिया के 13 देश ऐसे हैं जो निरंकुशता या तानाशाही से प्रजातंत्र की तरफ बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ 27 ऐसे देश हैं जो प्रजातंत्र हैं पर तेजी से निरंकुशता की तरफ बढ़ रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, म्यांमार, कम्बोडिया, कोमोरोस और निकारागुआ में प्रजातंत्र था, पर अब नहीं है और जनता का दमन सत्ता द्वारा किया जा रहा है। एशिया में महज 54 प्रतिशत आबादी प्रजातंत्र में है। अफ्रीका में निरंकुश सत्ता वाले देश बढ़ाते जा रहे हैं, पर अधिकतर देशों में जनता प्रजातंत्र चाहती है और इसके लिए आन्दोलन भी कर रही है। गाम्बिया, नाइजर, ज़ाम्बिया, घाना, लाइबेरिया, सिएरे लियॉन जैसे अफ्रीकी देशों में जनता में प्रजातंत्र स्थापित कर लिया है। यूरोप में 17 देश ऐसे हैं, जहां प्रजातंत्र का अवमूल्यन हो रहा है। मध्य-पूर्व में केवल तीन देशों – इराक, लेबेनान और इजराइल – में प्रजातंत्र है, पर तीनों ही देशों में यह खतरे में है।

प्रोफ़ेसर जेनिफ़र करस मोर्तेज़ द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार एक मध्यम दर्जे के प्रजातंत्र में भी मृत्युदर में 3 प्रतिशत की कमी आती है, पर जीवंत लोकतंत्र में यह कमी 10 प्रतिशत तक आंकी गयी है। जब प्रजातंत्र खतरे में रहता है तब मादक पदार्थों के अत्यधिक सेवन के कारण होने वाली मृत्युदर 13 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। दुनियाभर में प्रजातंत्र के विनाश के परिणाम स्पष्ट हैं – सामाजिक असमानता बढ़ रही है, मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है, समाज अस्थिर हो रहा है, चरम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतें बढ़ती जा रही हैं, देशों की संप्रभुता खतरे में हैं और इन सबसे लोग मर रहे हैं।

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