Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

संसद के विशेष सत्र पर इतना रहस्य क्यों, क्या सोच रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी?

Janjwar Desk
10 Sep 2023 4:13 PM GMT
संसद के विशेष सत्र पर इतना रहस्य क्यों, क्या सोच रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी?
x

file photo

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को कहा था अगले साल भी लाल क़िले से तिरंगा वे ही फहराएँगे।लाल क़िले से जी-20 तक का घटनाक्रम इसी ओर इशारा करता है कि चुनाव चाहे जब भी हों, प्रधानमंत्री तो मोदी ही रहने वाले हैं...

वरिष्ठ संपादक श्रवण गर्ग की टिप्पणी

अठारह से 22 सितंबर तक आहूत किए गए संसद के विशेष सत्र को प्रधानमंत्री द्वारा उनके दूसरे कार्यकाल के अंतिम पंद्रह अगस्त पर लाल क़िले से अत्यंत विश्वासपूर्वक की गई घोषणा के साथ जोड़कर देखा जाए तो भाजपा के कार्यकर्ताओं को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। मोदी ने कहा था अगले साल भी लाल क़िले से तिरंगा वे ही फहराएँगे। लाल क़िले से जी-20 तक का घटनाक्रम इसी ओर इशारा करता है कि चुनाव चाहे जब भी हों, प्रधानमंत्री तो मोदी ही रहने वाले हैं। यानी विपक्षी गठबंधन INDIA चाहे जो कर ले।

प्रधानमंत्री रहस्य की परतों के बीच जीते और शासन चलाते हैं। कहा जाता है कि अपने इर्द-गिर्द जो आभामंडल वे बनाए रखते हैं उसकी परतों के पार कोई झांक नहीं पाता, उनके सबसे नज़दीक माने जाने वाले सहयोगी भी नहीं! वाराणसी में भगवान विश्वनाथ के कॉरिडोर के भव्य लोकार्पण समारोह के छाया चित्रों को गूगल पर खोजिए। 13 दिसंबर 2021 को रेवती नक्षत्र में दिन के 1.37 बजे से 1.57 तक के शुभ मुहूर्त में कॉरिडोर के लोकार्पण से पूर्व जब उन्होंने गंगा माता में डुबकी लगाकर उसकी पूजा की, तब भी वे ऊपर से नीचे तक भगवा वस्त्रों से आच्छादित थे।

वाराणसी से नामांकन भरते समय ‘न मैं आया, न मुझे भेजा गया, मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है’ का उच्चार करने वाले चुनाव-प्रत्याशी नरेंद्र मोदी गंगा माँ की गोद में भी प्रधानमंत्री ही बने रहते हैं और तब भी जब वे फोटोग्राफरों की टीम की मौजूदगी में गांधीनगर में माँ (स्व) हीराबेन से भेंट और उनके साथ भोजन करते थे।

पूछा जा सकता है कि संसद के विशेष सत्र की कार्यसूची प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की तरह ही पहरों में क्यों है? प्रधानमंत्री कार्यालय या लोकसभा सचिवालय विज्ञापनों के ज़रिए उसे अख़बारों में उस तरह क्यों नहीं प्रकाशित करवा देता, जिस तरह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में प्राप्त हुई उपलब्धियों की गाथाएँ जनता के पैसों से छपवा कर जनता के बीच ही प्रसारित की जातीं हैं? पीएमओ या लोकसभा सचिवालय ऐसा नहीं करेगा! कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया गांधी चाहें तो इस सिलसिले में एक और चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिखकर विशेष सत्र के एजेंडे पर अपनी और विपक्ष की चिंताएँ व्यक्त कर सकतीं हैं।

‘स्वतंत्रता दिवस’ के दिन लाल क़िले से की गई प्रधानमंत्री की घोषणा को सुनने वालों में कई विदेशी राजनयिक भी थे। निश्चित ही दुनियाभर के इन राजनयिकों ने प्रधानमंत्री के उद्बोधन का सार चेतावनियों के साथ अपने-अपने शासनाध्यक्षों को लाल क़िले के परिसर से ही स्मार्ट फ़ोनों के ज़रिए भिजवा दिया होगा। सवाल यह है कि ऐसा दावा कि अगले साल भी तिरंगा झंडा वे ही फहराएँगे प्रधानमंत्री ने अपने प्रथम कार्यकाल के अंतिम पंद्रह अगस्त (2018) के उद्बोधन में क्यों नहीं किया था? दूसरे कार्यकाल के अंतिम पंद्रह अगस्त को ही क्यों किया?

क्या विशेष सत्र के रहस्यमय एजेंडे में ही सारे सवालों के जवाब छुपे हुए हैं? या इन सच्चाइयों से भी कुछ अनुमान लगाए जा सकते हैं कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पार्टी न सिर्फ़ एक के बाद एक विधानसभा चुनाव हार रही है, उपचुनावों में भी उसकी पराजय हो रही है। छह राज्यों की सात सीटों के लिए हुए उपचुनावों में सबसे महत्वपूर्ण नतीजा प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी के निकट स्थित घोसी का है, जहां मुख्यमंत्री योगी द्वारा हरसंभव ताक़त और संसाधनों का इस्तेमाल किए जाने के बावजूद भाजपा भारी मतों से हार गई। यूपी की अस्सी लोकसभा सीटें तो भाजपा के लिए सत्ता की रीढ़ हैं! उन पर आगे क्या होने वाला है?

क्या मान लिया जाए कि घोसी में पराजय से सत्ता की रीढ़ यूपी के भी चटकने की शुरुआत हो चुकी है और संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ की तरह भाजपा को लग गया है कि सिर्फ़ मोदी की छवि और हिंदुत्व के बल पर ही पार्टी फिर सत्ता में नहीं आ पाएगी? ज़ाहिर है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे द्वारा (दो सितंबर को) थमाया गया सनातन धर्म पर हमले का मुद्दा घोसी के लिए हुए मतदान (पाँच सितंबर) में भाजपा के काम नहीं आया!

आख़िरी सवाल यह कि लोकसभा चुनावों में हार की आशंकाओं के चलते प्रधानमंत्री अगर किन्हीं कमज़ोर क्षणों में सत्ता का मोह त्याग केदारनाथ की उस चर्चित गुफा में ध्यान लगाने का मन बना लें जहां वे 18 मई 2018 को फ़ोटोग्राफ़रों की टीम के साथ पहुँचे थे तो क्या ऐसा कर पाएँगे? शायद नहीं! निहित स्वार्थों की भक्त मंडली ने उनकी आँखों में भारत को दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त (लोकतंत्र नहीं?) बनाने का ऐसा काजल रोप दिया है कि वह उन्हें ऐसा कुछ नहीं करने देगा।

चाटुकार उद्योगपतियों का समूह वर्तमान हुकूमत को बचाने के लिए अपना सर्वस्व दाव पर लगा देगा। यह समूह बारीकी से नोंद ले रहा है कि राहुल गांधी उसके ख़िलाफ़ संसद और विदेशों यात्राओं (हाल में ब्रुसेल्स) में किस तरह के भाषण दे रहे हैं!

प्रधानमंत्री ने सत्ता को अपने लिए काम के नशे में तब्दील कर लिया है। जैसा गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं :'नरेंद्र भाई पिछले नौ सालों से बिना एक दिन की भी छुट्टी लिए रोज़ाना सत्रह घंटे काम करते हैं।’ अतः समझा जा सकता है कि जो व्यक्ति अपने लंबे राजनीतिक जीवन में एक दिन के लिए भी विपक्ष में नहीं बैठा हो, वह एक दिन के लिए भी सत्ता से बाहर कैसे रह सकता है!

संसद के विशेष सत्र का एजेंडा देश की नज़रों से दूर रहस्य की परतों में छुपा है। पीएमओ के अलावा कोई अन्य दावे से नहीं कह सकता कि 18 से 22 के बीच क्या होने वाला है! ‘मोदी हैं तो मुमकिन है’ की तर्ज़ पर सोचा जाए तो सब कुछ संभव है! मतलब कुछ भी हो सकता है। प्रधानमंत्री के अब तक के (गुजरात और दिल्ली के) 22 सालों के कार्यकाल को ध्यान में लाएँ तो मोदी ने कभी चिंता ही नहीं की कि उनके फ़ैसलों से जनता की ज़िंदगी पर क्या असर पड़ सकता है! उनकी नज़रें हमेशा विपक्षी दलों की ज़िंदगी पर पड़ सकने वाले असर पर ही केंद्रित रहीं!

आठ नवंबर 2016 की रात आठ बजे अचानक से घोषित की गई नोटबंदी और उसके चार साल बाद 24 मार्च 2020 को कोरोना महामारी के दौरान घोषित किए गए 21 दिनों के ‘लॉक डाउन’ सहित तमाम आकस्मिक घोषणाओं के पहले और बाद के देश की कल्पना करें तो तस्वीर ज़्यादा साफ़ नज़र आने लगेगी। मोदी सिर्फ़ कार्रवाई में यक़ीन करते हैं, परिणाम जनता के भाग्य पर छोड़ देते हैं।

क्या संसद के विशेष सत्र के दौरान या उसके बाद कुछ ऐसा चमत्कार नहीं हो सकता कि किसी आकस्मिक परिवर्तन के ज़रिए निर्धारित समय पर चुनाव कराए बग़ैर भी लाल क़िले से अगले साल झंडा फहराने (या बाद) तक मोदी ही देश के मुखिया बने रहें? विशेष सत्र की उलटी गिनती गिनना शुरू कर दीजिए। इस सोमवार को ग्यारह सितंबर है और अगले को अठारह सितंबर।

(श्रवण गर्ग के इस लेख को उनके ब्लॉग shravangarg1717.blogspot.com पर भी पढ़ा जा सकता है।)

Next Story

विविध