कश्मीर में नेटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त, कहा लगातार धारा 144 लागू रखना सरकारी शक्ति का दुरुपयोग

Update: 2020-01-10 08:01 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार को केंद्रशासित प्रदेश में धारा 144 लागू करने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने का निर्देश देते हुए कहा इंटरनेट का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का है हिस्सा...

जनज्वार। जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की पाबंदियों और धारा 144 के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज 10 जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान कई आदेश जारी किये। जम्मू-कश्मीर में 5 महीने से भी ज्यादा वक्त से लागू की गयी धारा 144 के कारण वहां इंटरनेट पाबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया।

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू—कश्मीर सरकार को एक हफ्ते के अंदर राज्य में जारी प्रतिबंधों की समीक्षा करने का निर्देश दिया है। राज्य में लंबे समय से इंटरनेट बंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए पाबंदी दूरसंचार नियमों का उल्लंघन है। लगातार धारा 144 लागू करना सत्ता की शक्ति का खुलेआम उल्लंघन है।

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च्च्तम न्यायालय ने शुक्रवार 10 जनवरी को जम्मू-कश्मीर सरकार को केंद्रशासित प्रदेश में धारा 144 लागू करने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने का निर्देश देते हुए कहा कि इंटरनेट का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा है।

न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने का निर्देश दिया है।

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संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट के इस्तेमाल को मौलिक अधिकार का हिस्सा बताते हुए शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से इंटरनेट बंदी के सभी आदेशों की समीक्षा करने को कहा है। इंटरनेट बंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबे वक्त तक इंटरनेट पर पाबंदी लगाना कानून गलत है। इंटरनेट पाबंदी की कोई पुख्ता वजह का होना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 144 पर टिप्पणी करते हुए कहा कि देश में कहीं भी लगातार धारा 144 को लागू रखना सरकार द्वारा अपनी शक्ति के दुरुपयोग करने की श्रेणी में आता है।

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श्मीर में लगे प्रतिबंधों को लेकर शीर्ष न्यायालय ने कहा कि किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल उपकरण के तौर पर बिल्कुल नहीं किया जा सकता। मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा जारी करते समय इस पर विचार करना चाहिए और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी आदेशों को पब्लिक डोमेन में डालने का आदेश दिया, जिनके तहत पिछले पांच महीनों से भी ज्यादा वक्त से जम्मू कश्मीर में धारा 144 लगाई गई थी।

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गौरतलब है कि पिछले साल 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर प्रदेश को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिला विशेष दर्जा वापस लिये जाने के बाद से वहां धारा 144 लागू है और इसी के तहत केंद्र की मोदी सरकार के आदेश पर इंटरनेट पर पाबंदी लगायी गयी है। केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने आज इस पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए मोदी सरकार को चेताया है कि वह इंटरनेट बंदी और इतने लंबे वक्त से धारा 144 लागू करने के उचित कारण बताये।

कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा बसिन समेत कई अन्य नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर में लागू पाबंदियों के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिस पर आज सुनवाई की गयी।

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याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने आदेश आने के बाद कहा कि 'जब किसी राज्य में सुरक्षा और आज़ादी का संतुलन बनाने की ज़रूरत होती है तब आप संविधान के कुछ सिद्धांतों के अनुसार स्वतंत्रता पर रोक लगा सकते हैं। कश्मीर में भी जब आप सुरक्षा और आज़ादी का संतुलन बनाएंगे तो इन बातों का ध्यान रखना होगा, मगर राज्य ने इंटरनेट और संचार माध्यमों पर प्रतिबंध लगाने और धारा 144 लगाने से जुड़े आदेश न तो प्रकाशित किए और न ही कोर्ट के सामने रखे।"

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वृंदा ग्रोवर ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने धारा 144 के तहत पाबंदियां लगाने के आदेशों को प्रकाशित न करने को ग़लत बताया है और इन्हें प्रकाशित करने का राज्य को निर्देश दिया गया है। आगे भी सारे आदेश हमेशा प्रकाशित किए जाएंगे, लोग उस आदेश को चुनौती दे सकेंगे। उस आदेश में ये बात होनी चाहिए कि किस कारण से स्वतंत्रता पर रोक लगाई जा रही है।'

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