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समाज

कश्मीर में करीब 200 मीडिया संस्थानों के 600 पत्रकारों के पास खबर भेजने के लिए सिर्फ एक मीडिया सेंटर

Nirmal kant
26 Dec 2019 2:42 PM GMT
कश्मीर में करीब 200 मीडिया संस्थानों के 600 पत्रकारों के पास खबर भेजने के लिए सिर्फ एक मीडिया सेंटर
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श्रीनगर में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का बनाया हुआ एक मीडिया सेंटर है। 10 अगस्त से पूरे कश्मीर राज्य से अपनी खबर भेजने का यही एकमात्र स्थान है। यहां न सिर्फ श्रीनगर के पत्रकार अपना काम करते हैं, बल्कि पुलवामा, सोपोर, गंर्दबल आदि जिलों से पत्रकार आते हैं....

श्रीनगर से फैजान की रिपोर्ट

श्मीर के हालात के बारे में जब हम बात करते हैं तो पहली बात मीडिया की होती है। मीडिया की बात इसलिए कि बगैर मीडिया के कश्मीर का हाल कैसे पता चलेगा, मीडिया नहीं होगी तो हम सच कैसे जान पाएंगे कि मोदी सरकार के दावों मुताबिक राज्य में खुशहाली है या फिर भारत और कश्मीर के बीच खाई और बढ़ गयी है।

जाहिर है कश्मीर का हाल हमें मीडिया से ही पता चलता है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि अनुच्छेद 35-ए और अनुच्छेद 370 खत्म होने के पांच महीने बाद मीडिया के क्या हाल हैं। क्या राज्य में मीडिया अपना काम कर पा रही है या फिर अभी भी सेना, पुलिस और सुरक्षा बलों की पहरेदारी में कैद है।

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भी भी सरकार को अपने ही देश की मीडिया को स्वतंत्र रूप से काम करने देने में डर लग रहा है। जम्मू—कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का बनाया हुआ एक मीडिया सेंटर है। 10 अगस्त से पूरे कश्मीर राज्य से अपनी खबर भेजने का यही एकमात्र स्थान है। यहां न सिर्फ राजधानी श्रीनगर के पत्रकार अपना काम करते हैं, बल्कि पुलवामा, सोपोर, गंर्दबल, टनबर्ग आदि जिलों से पत्रकार आते हैं।

र रोज 20 से 30 किलोमीटर दूर से पत्रकार आकर अपनी स्टोरी—रिपोर्ट अपने मीडिया संस्थानों को भेजते हैं। यहां एक समय में कई बार 65 से 70 पत्रकारों—वीडियो पत्रकारों और लेखकों की भीड़ लगी रहती है। मीडिया सेंटर से हर रोज करीब 600 पत्रकार अपने संस्थानों को वीडियो, फोटो और रिपोर्ट भेजते हैं लेकिन बैठने की जगह केवल बीस ही लोगों के लिए है, महिला पत्रकार अलग बैठती हैं।

ज्यादा भीड़ सुबह 11 बजे से 2 बजे और शाम के 6 से 7 बजे की बीच होती है। उस समय इंटरनेट की स्पीड बहुत कम हो जाती है, पत्रकारों को स्टोरी भेजना मुश्किल हो जाता है। आप सोचेंगे पत्रकारों को ऐसा क्यों करना पड़ता है, आखिर पत्रकारों के दफ्तर कहां गए, क्या वह अपने घरों और दफ्तरों से खबर नहीं भेज सकते।

रकार ने पिछले पांच महीनों से जबसे अनुच्छेद 35-ए और अनुच्छेद 370 को हटाया है, सभी इंटरनेट बंद कर दिए हैं। किसी दफ्तर में इंटरनेट काम नहीं करता है। सभी पत्रकारों को इसी मीडिया सेंटर से अपनी खबर भेजनी पड़ती है, चाहे जितनी जरूरी खबर हो। वहां से अभी एसएमएस नहीं जाता, प्रीपेड मोबाइल नहीं काम करती, इंटरनेट नहीं चलता।

त्रकार आकिब कहते हैं, अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में जो हालात बने हैं, उसके चार महीने से ज्यादा समय हो गया है। इंटरनेट सुविधा यहां पर नहीं है। हमारे लिए जम्मू-कश्मीर सरकार के सूचना विभाग ने इंटरनेट सुविधा रखी थी। लेकिन हम कब तक इस पर रहेंगे। इससे पहले हमारे पास अपने ऑफिस में इंटरनेट एक्सेस था। जब हम यहां पर आते हैं तो बहुत भीड़ होती है जिससे हम अपना काम अच्छे से नहीं कर पाते हैं। हमें टाइमिंग की बहुत समस्या होती है। मैं रात दस से बारह बजे भी यहां मीडिया सेंटर पर होता हूं। मैं सरकार से केवल इतना जानना चाहता हूं कि आखिर ये मसला कबतक चलेगा। हमारी ये मुख्य समस्या इंटरनेट की है यह कब खत्म होगी।

फैजान मीर कहते हैं, 'हमें बहुत ही मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है। जो भी स्टोरी हम कवर करते हैं उसके लिए सरकार ने एक मीडिया सेंटर रखा है। हम उसी से बाहर कहीं अपनी रिपोर्ट ई-मेल कर पाते हैं। यहां पर बहुत भीड़ होती है। पांच सौ लोगों को एक साथ कैसे एक्सेस मिलेगा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट अभी बहाल हुआ है। दुकानें भी आहिस्ता-आहिस्ता खुलने लगीं हैं। जैसे पहले सामान्य स्थिति थी वैसी होने लगी है। लेकिन मोबाइल, इंटरनेट सेवाएं सबकुछ यहां अभीतक बंद हैं। केवल पोस्टपैड कनेक्शन को बहाल किया गया है। मुझे खुद पांच छह किलोमीटर दूर आकर मेल करना पड़ता है। मैं सरकार से मांग करता हूं कि इंटरनेट सेवाओं को जल्द से जल्द बहाल किया जाएं।'

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वाल यह है कि दिल्ली या दूसरे राज्यों में बैठकर जब कश्मीर के हालात के बारे में बात करते हैं तो हम क्यों भूल जाते हैं कि सरकार ने जब वहां के पत्रकारों को इतनी सुविधा मयस्सर कर रखी है। पत्रकार तो​ फिर भी सत्ता के करीब रहने वाला होता है, वह रोज अधि​कारियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के साथ उठता बैठता है। जब उनका यह भेड़-बकरियों की तरह हाल है तो आम लोगों के क्या हाल होंगे। जब आप कहते हैं कि कश्मीर में सबकुछ अच्छा हुआ है तो कभी इन हालातों पर भी सोचिए। उन बच्चों और महिलाओं के बारे में सोचिए जिनके माताओं- पिताओं का पता नहीं। पता नहीं कोई कहीं खबर भी नहीं छप सकती।

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