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अंधविश्वास का मेला: हर साल पहुंचती हैं हजारों चुड़ैल, मत्था टेकने आते हैं IAS-PCS
पवन जायसवाल की रिपोर्ट
मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश मे मिर्जापुर जिले के छोटे से बरहीया गाँव के बेचूबीर नामक स्थान पर एक साल मे एक बार दिवाली के बाद एकादशी वाले तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। गांव ऐसा की शायद इससे पिछड़ा उत्तर प्रदेश का कोई गावं नही होगा। लेकिन हर साल मेले के वक्त पांच लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ से पूरा गांव पट जाता है। चारों तरफ रोने की अजब-गजब की आवाजें मानो किसी दुश्मन देश ने मिसाइल से हमला कर लोगों को छत-विक्षत कर खेतों मे ला दिया हो। धूल के अम्बार आसमानों मे उड़ते हैं ।
कोरोना व प्रशासन की सख्ती के चलते श्रद्धालुओं में आयी भारी कमी
कोरोना का दंश झेल रहे देश को देखते हुए प्रशासन किसी तरह का रिस्क लेना लेनी चाहता, क्योकि ये महामारी पुनः अपने पुराने रंग रूप में सामने आ गयी है। इसलिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए बेचूबीर बरही मेले के आयोजकों व स्थानीय प्रशासन ने एक सप्ताह पहले ही सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया के माध्यम से लोगों से घर पर ही पूजा पाठ करने का अपील किया था। किंतु रोक के बाद भी इस अंधविश्वास के मेले में लोग अपने वाहन खड़े कर 15 से 20 किलोमीटर पैदल धूल भरे रास्तों से चलकर बेचूबीर चौरी पर माथा टेकने पहुंच रहे हैं।
अजीबो-गरीब हरकत करते दिखाई पड़ रहे थे लोग
तमाम रुकावट परेशानी के बाद भी श्रद्धालुओं की भीड़ मान नहीं रही है, महिलाओं-पुरुषों की भीड़ बेचूबीर बाबा बरही माता की समाधि के पास पहुंच रही है। लोग खेतों में पड़े धूलों में लेट रहे हैं। हजारों की संख्या मे महिलाएं बाल खोले उछल-कूद कर रही हैं, कुछ तो जोर-जोर से रो रही हैं और कुछ पुराने जमाने की चलन वाली बोली-भाषाओं मे गाना गा रही थीं, मानो किसी को अपने गाने के जरिये अपना दुखड़ा सुना रही हो। वो दुखड़ा सुनने वाला कोई इंसान नहीं बल्कि एक समाधि के रुप मे पीडंकी है। जिसको लोग बेचुबीर बाबा के नाम से जानते हैं। यहां हमने देखा अच्छे-खासे लोग धूप, अगरबत्ती जलाते ही उटपटागं हरकत करने लगते हैं। मानो अब उनके शरीर पर किसी और का कन्ट्रोल हो। पतले-दुबले और रोगी युवक मे इतना दम आ जाता है जो दो-चार लोग के पकड़ने पर भी कन्ट्रोल मे नहीं आता। उन्हे धक्का देकर बेचुबीर समाधी के करीब पहुंचते ही महिला पुरुष सुस्त होकर बैठ जाते हैं।
पढ़े लिखे लोग भी टेकते हैं यहां मत्था
इस अंधविश्वाव के मेले मे अनपढ़ ही नही,आईएएस, पीसीएस जैसे पढ़े-लिखे अधिकारी भी आते हैं। पिछले साल आए आगरा फतेहाबाद के सीओ अशोक कुमार सींह अपने मा के साथ मेले में पहुचे तो उन्होंने बताया कि हमारे परिवार में लोग बेचुबीर बाबा को पचासों साल से पूजते आए हैं और मन्नत पूरी होने पर मां को बाबा के पास दर्शन कराने लाए हैं। ये सब देखने बाद हमने श्रद्धालुओं से पूछा कि आप यहा क्यों आते हो? तो लोग तरह-तरह की बातें बताने लगे।
सुनीता यादव नाम की एक महिला ने बताया कि मेरी 15 साल पहले शादी को हो गई थी, कोई औलाद नही थी। पिछले साल बेचुबीर धाम किसी के कहने पर हम (दंपति) दर्शन को आए और अब उनका बेटा गोद मे है। दूसरे दर्शनार्थियों से पूछा तो किसी ने बताया कि शादी विवाह तुरन्त हो जाती है तो किसी ने बताया कि प्रेत-आत्मा का साया यहां आने से छोड़कर भाग जाती है। लोगों की अलग-अलग कहानी सुनकर हम सन्न रह गए कि आखिर पत्थर की समाधि लोगों का कैसे भला कर सकती है।
बरहिया माता के दर्शन के बाद ही मिलता है दुखों से छुटकारा
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, अभी और ट्विस्ट बाकी है। बेचुबीर बाबा समाधि से 500 मीटर की दूरी पर एक और समाधि है जिसे लोग बेचुबीर की पत्नी बराही माता के नाम से पूजते हैं। यहां का नजारा भी कुछ उसी तरह होता है। बराही माता को तो लोग बेचुबीर बाबा से भी शक्तिशाली कहते हैं। लोगो का कहना है जो भूत-प्रेत जिद्दी होते हैं वो इनके समाधि पर आते ही शरीर को छोड़ भाग जाते हैं। यहा दुखियों को पकड़कर लोग जबरदस्ती बैठाते हैं क्योकि समाधि पर जैसे ही भूत-प्रेत से पीड़ित महिला या पुरूष की नजर पड़ती है वो पीछे भागता है वो समाधि के पास आना ही नहीं चाहता। साथ मे आए परिजनों या आस-पास के लोगों को पकड़ कर बैठाना पड़ता है। कहने को तो अंधविश्वाव से यहां का माहौल भरा पटा होता है। लेकिन लोगों की आस्था देखकर मन मे सवाल उठता है आखिर कुछ कारण तो अवश्य है जो लोग दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, बिहार, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ समेत देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं।