कोरोना कुप्रबंधन के दौर में गृहमंत्री अमित शाह को खोज रहा देश
डॉ. अंजुलिका जोशी की टिप्पणी
जनज्वार। ज्यादा नहीं सिर्फ 25 दिन पहले तक हम रोज ही अपने देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री की कड़कती फड़कती आवाज सुनते थे कि हमारी सरकार आने दीजिये हम पश्चिम बंगाल का चेहरा ही बदल देंगे। पर अब 25 दिन बाद न तो गृहमंत्री और न ही प्रधानमंत्री की आवाज सुनाई दे रही है। जहाँ एक ओर आज पूरी दुनिया भारत में होने वाले मौत के तांडव को देख कर परेशान हो रही है, मदद का हाथ बढ़ा रही है, वहीं दूसरी तरफ हमारी चुनी हुई सरकार के उच्चपदाधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। जैसे उन्हे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा।, बल्कि पाँच लाख ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का सपना दिखाने वाले आज पूरी दुनिया के सामने हाथ फैलाए खड़े हैं।
गृह मंत्रालय का दायरा न सिर्फ केंद्र और राज्य के संबंधों को उचित दिशा—निर्देश देना होता है बल्कि देश की नीतियों को तय करने के साथ साथ आपदा प्रबंधन का भी होता है, तो कहां है हमारे गृहमंत्री? उनका कोई उत्तरदायित्व है या नहीं? और हमारे प्रधानमंत्री जी जो 20 दिन बाद दिखे भी तो किसान सम्मान निधि का वितरण करते हुए वो भी सिर्फ 16 रूपये 66 पैसे प्रतिदिन के हिसाब से, जिससे एक कफ़न का सूती कपडा भी नहीं ख़रीदा जा सकता है।
आज भारत के लगभग 5 लाख गाँवों में किसी भी तरह की स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं हैं। यही नहीं देश के 409 जिले ऐसे भी हैं जहाँ किसी भी तरह के अस्पताल भी मुहैय्या नहीं हैं। इस अवस्था में गृहमंत्रालय की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए? गृहमंत्री को कहाँ होना चाहिए? लेकिन वो तो कहीं है ही नहीं।
हमारे गृहमंत्री जो प्रधानमंत्री के पश्चात् भारत में सर्वोत्तम पद पर है,अपनी आँखों पर कैसे पट्टी बाँध सकते हैं, जबकि उनके अपने ही कार्य क्षेत्र के आसपास जैसे नार्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उद्योग भवन, कृषि भवन व केंद्रीय सचिवालय भवन इत्यादि में काम करने वाले लगभग 100 उकर्मचारियों की मौत हो गयी है, जिसमें अमूमन 15 सहायक अनुभाग अधिकारी, 16 अनुभाग अधिकारी, 7 अवर अधिकारी, 5 उपसचिव, 2 निदेशक पद पर भी थे। इसके अतिरिक्त स्वस्थ्य मंत्रालय की निदेशक राधा रानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के हनीफ अख्तर भी कोविड की चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार अब तक लगभग 1000 डाक्टरों की मौत हो चुकी है, जो दिन रात एक करके कोविड के मरीज़ों का इलाज कर रहे थे। ऐसे गृहमंत्री हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार ही दिखे। सरदार वल्लभ भाई पटेल जिनकी मूर्ति गुजरात में इसी सरकार में बनी है, उन्हीं के चरण चिन्हों पर चल लेते। वो भी विभाजन के वक्त पकिस्तान से आये हुए शरणार्थियों की ज़रूरतों की व्यवस्था की निगरानी करने के लिए उनके बीच जाकर जायजा लिया करते थे। ऐसी विकट परिस्थिति में कैसे गृहमंत्री आँख बंद कर मूक बधिर की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते हैं। इसकी इसकी जगह कि वो आपदा प्रबंध करें, वो आंकड़ों के प्रबंधन में ही लग गए।
पूरी दुनिया में यह बात उजागर है कि सभी सरकारी आंकड़े गलत हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की 25 मई की दी हुई रिपोर्ट के अनुसार अब तक तकरीबन 6 लाख लोग कोरोना संक्रमण से अपनी जान गावं चुके और 40 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से केवल 307,231 लोगों की मृत्यु हुई है और 2.69 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं। इतने गलत आंकड़े।
गुजरात में ही जो स्वयं प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री का कार्य क्षेत्र रहा है 1 मार्च से 25 मई तक के आंकड़ों पर गौर करें तो सरकारी आंकड़ों के हिसाब से केवल और केवल 4300 मौतें हुई हैं जबकि मृत्यु प्रमाणपत्र जारी हुए हैं 1 लाख 23 हज़ार। अब जब वो कोविड से हुई मौत के आंकड़े ही गलत दे रहे हैं तो उनसे क्या आशा की जा सकती है।
देश तो पहले ही ICU में था, अब तो वो वेंटीलेटर पर आ गया है। वर्तमान समय में न तो अस्पतालों में जगह है, न ऑक्सीजन, न दवाइयाँ और तो और शवों को जलाने के लिए भी व्यवस्था नहीं है। आज जब भारत के तकरीबन हर गॉंव और शहर लाशों से पटे पड़े हैं, नदियों में अनगिनत लाशें तैर रही हैं तो बुलेट ट्रेन और हवाई चप्पल पहनने वाले, हवाई यात्रा का चूरन चटाने वाले, मरीज़ों और लाशों को एंबुलेंस तक नहीं दे पा रहे हैं। बल्कि इसकी जगह कि लाशों की गरिमामय तरीके से अंत्येष्टि की व्यवस्था की जाये, आंकड़े छिपाने के लिए उनके ऊपर सम्बन्धियों द्वारा उढ़ाया हुआ वस्त्र ही हटवा दे रहे हैं।
कहाँ गयी वो आवाज़ जो 25 दिन पहले चारों और दम्भ से गूंज रही थी? इसकी जगह कि वो इस परिस्थिति से निपटने के लिए कुछ कार्य करते वो तो दिल्ली पुलिस के साथ उन्हीं हाथों में ही बेड़ियाँ डालने लग गए जो निःस्वार्थ मदद के लिए उठे थे। क्या यही यही गुजरात मॉडल है, जिसका इतना हो हल्ला था।
प्रश्न उठता है कि आखिर इस सरकार ने किया ही क्या है स्वास्थ्य की दिशा में? 2014 में जब मोदी जी सत्ता में आये थे तब स्वास्थ्य उपकेंद्रों (जो स्वास्थ्य सेवा का सबसे निचला स्तर है) की कुल संख्या थी 1 लाख 53 हज़ार और आज 6 साल बाद उसकी संख्या है 1 लाख 56 हज़ार यानी की तीन हजार नए स्वास्थ्य उपकेंद्र, जबकि जनसँख्या में 10 करोड़ का इजाफ़ा हुआ है। हालाँकि बहुत जोर शोर से आयुष्मान भारत का ऐलान ज़रूर हुआ था, कहा गया था कि यह सरकार डेढ़ लाख स्वास्थ्य उपकेंद्र बनवाएगी, लेकिन हुआ क्या सब ठन्डे बस्ते में चला गया। गांवों के अलावा अगर हम शहर का रुख करें तो वहां पर भी स्वास्थ्य सुविधाओं की यह हालत है कि सरकारी अस्पतालों में लेटने को जगह नहीं हैं, पर्याप्त डॉक्टर्स नहीं हैं, और अगर हैं भी तो इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है ICU तो दूर की बात है इलेक्ट्रिसिटी ही नहीं है।
आने वाले वक्त में हम क्या करेंगे कैसे लड़ेंगे? मोदी सरकार ने हालाँकि फरवरी में यह ऐलान किया कि 3 फेज में 157 मेडिकल कॉलेज खोले जायेंगे, पर उस पर अमल करने के लिए हमारे पास न तो मूलभूत सुविधाएँ हैं न ही उन्हें जुटाने के लिए पैसा। अब यह पैसा आएगा कहाँ से? जनता से? वो तो वैसे ही कोविड से और मॅहगाई के कारण मरणासन्न है। ऐसा नहीं है कि यह आपात स्थिति पहली बार आयी है, 1947 में जब विभाजन हुआ था या 1961 और 1965 के युद्ध के समय भी हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, पर उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जनता का मनोबल बढ़ने के लिए उनके साथ खड़े थे, लेकिन आज हमारे माननीय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों ही नदारद हैं शायद ब्लैक चॉकलेट खाकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए!
2014 में जब आपने ताज पहना देश अपनी शाश्वत समस्याओं रोटी-कपड़ा-मकान से जूझ रहा था, आपने 18—18 घंटे बिना थके काम करके देश को ऐसी स्थिति में ला दिया है, जहां वह दवा और हवा के बिना हाँफ रहा है। अच्छे दिनों की इस विकास यात्रा के वाहक के रूप में इतिहास आपको याद रखेगाऔर याद रखिये इतिहास बहुत निर्मम होता है, आपका न्याय समय करेगा ।
(लेखिका डॉ. अंजुलिका जोशी मूलत: बायोकैमिस्ट हैं और उन्होंने NCERT के 11वीं-12वीं के बायोटैक्नोलॉजी विषय पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करने में अपना योगदान दिया है।)