कोविड 19 ने नहीं बल्कि टीके ने अमीर और गरीब की खाई को गहरा किया
Covid 19 वैक्सीन पेटेंट विवाद में आमने-सामने कई कंपनियां, फाइजर और बायोएनटेक पर मॉडर्ना ने किया केस
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
वैश्विक महामारी कोविड 19 एक समाजवादी त्रासदी है जिसने अमीर और गरीब में कभी भेद नहीं किया और सबको समान तरीके से अपना निशाना बनाया, पर जब टीके की बात आई तो यह पूंजीवादी व्यवस्था में तब्दील हो गयी और गरीब हाशिये पर पहुँच गए| संपन्न देश जहां वैक्सीन की दो डोज़ के बाद अब बूस्टर डोज़ लगा रहे हैं, वहीं गरीब देशों के पास एक डोज़ लगाने के लिए भी वैक्सीन नहीं है| हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोविड 19 विशेषज्ञ डॉ डेविड नाबार्रो ने यूनाइटेड किंगडम के संसद सदस्यों की कोविड 19 से सम्बंधित कमेटी को संबोधित करते हुए बताया कि यह वैश्विक महामारी अभी दुनिया के लिए खतरा बनी हुई है, पर अब इसके केंद्र में गरीब देश हैं, जहां टीके का भयंकर अभाव है|
एक तरफ यूनाइटेड किंगडम की 22 प्रतिशत से अधिक आबादी दोनों टीके के बाद बूस्टर डोज भी लगवा चुकी है और अमीर देशों की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी दोनों टीके लगवा चुकी है तो दूसरी तरफ अफ्रीका में यह संख्या महज 6 प्रतिशत है| नाइजीरिया जैसे देशों में तो यह प्रतिशत महज 2.8 प्रतिशत ही है| डॉ डेविड नाबार्रो के अनुसार टीके की ऐसी असमानता के कारण दुनिया में कोविड 19 के प्रकोप हमेशा बना रहेगा| एक तरफ तो इससे कोविड 19 के नए और भयानक वैरिएंट पनपने का खतरा है, जिसपर वर्तमान वैक्सीन का असर नहीं होगा तो दूसरी तरफ वैक्सीन की सहज सुलभता वाले देशों की आबादी में कोविड 19 से बचाव के तरीकों में लापरवाही बढ़ती जायेगी| ऑक्सफेम की पालिसी सलाहकार एना मर्रिओत के अनुसार दुनिया में टीके की जितनी आपूर्ति की गयी है, उसका महज 1 प्रतिशत अफ्रीका के गरीब देशों तक पहुंचा है| टीके की उत्पादक कंपनियों, अमीर देशों की सरकारों और कोवैक्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग ने लगातार गरीब देशों की उपेक्षा की है और अमीर देशों में टीके को सहज उपलब्ध कराया है| अफ्रीकन यूनियन के अफ्रीका वैक्सीन डिलीवरी अलायन्स फ़ॉर कोविड 19 की सह-अध्यक्ष डॉ योडा अलाकिजा के अनुसार टीके की असमानता दूर करने के लिए टीका के पेटेंट को ख़त्म करना होगा, जिससे इसका उत्पादन कहीं भी किया जा सके, पर पिछले वर्ष से इस मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया|
कोविड 19 के प्रसार के लगभग दो साल बाद अब दुनिया में तीन तरह के देश हैं| बेहद अमीर देश, जिन्होंने इस दौरान अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को पहले से बेहतर बनाया, कोरोनावायरस पर अनुसंधान किया और टीके की उपलब्धता सुनिश्चित की| दूसरी तरफ गरीब देश हैं, जिन्होंने अपने सीमित संसाधनों से कोविड 19 का मुकाबला किया पर आर्थिक तंगी के कारण टीके के सन्दर्भ में अमीर देशों से पिछड़ गए| तीसरे प्रकार के देशों में भारत, ब्राज़ील, मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं, जहां सरकारें टीके को राजनीति और कूटनीति का हिस्सा बना चुकी हैं और लाशों पर बैठकर सबकुछ नियंत्रण में होने का दावा कर रही हैं|
हमारे देश में सरकार 5 ख़रब की अर्थव्यवस्था और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत का ख़्वाब दिखाकर देश को पूरा खोखला कर चुकी है| आज हालत यह है कि लोग कोविड 19 के साथ ही गरीबी और भुखमरी से भी मर रहे हैं| पर, सरकार की प्राथमिकता चुनाव, कुम्भ, राम मंदिर, प्रधानमंत्री आवास और नया संसद भवन है| सरकार की प्राथमिकता तय कराने में मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और न्यायालय खूब साथ दे रहे हैं| पिछले कुछ दिनों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय और लगभग सभी उच्च न्यायालयों ने केंद्र सरकार को खूब लताड़ लगाई, पर यह महज दिखावा से अधिक कुछ नहीं है, क्योंकि प्रताड़ना का यह हिस्सा किसी फैसले में नहीं लिखा जाता| लोग मरते रहे और चुनाव होते रहे| हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री चुनावी रैलियों में लगातार बने रहे, पर जबभी विकास की बात आती है या कोविड 19 से सम्बंधित उच्चस्तरीय मीटिंग की बात आती है तो वर्चुअल हो जाते हैं|
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस समय हम दो महामारी एक साथ देख रहे हैं – एक अमीर देशों की, जहां सबकुछ नियंत्रण में है, और दूसरी तरफ गरीब देश हैं जहां कोविड 19 से निपटने के लिए संसाधनों का घोर अभाव है| विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अमीर देश भी कोविड 19 के सन्दर्भ में भ्रम में हैं क्योंकि जबतक दुनिया से कोरोनावायरस समूल नष्ट नहीं होगा, तबतक सारे प्रयासों के बाद भी अमीर देश कभी सुरक्षित नहीं हो सकते|
इसका उदाहरण इस वर्ष अप्रैल-मई के महीने में दिखा था - भारत के कोविड 19 के अनियंत्रित मामलों और सरकारी लापरवाही का असर बांगलादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों पर भी पड़ने लगा था| मई में एक सप्ताह के भीतर कोविड 19 के मामलों में भारत में 10 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी थी, इसी अवधि के दौरान कोविड 19 के कुल मामलों के सन्दर्भ में नेपाल में 105 प्रतिशत, मलेशिया में 15 प्रतिशत, श्रीलंका में 82 प्रतिशत, मालदीव्स में 69 प्रतिशत, इजिप्ट में 11 प्रतिशत, होंडुरस में 26 प्रतिशत और कोस्टारिका में 32 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी थी| दूसरी तरफ कोविड 19 के मामलों में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में क्रमशः 10, 12, 27, 16, 54, 32 और 12 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी थी| युनिसेफ़ ने भी हाल में ही कहा है कि हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि कोविड 19 को हम नियंत्रित करने लगे है|
यूनाइटेड किंगडम के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डोन ब्राउन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक कार्यक्रम में कहा है कि कोरोनावायरस भले ही प्राकृतिक हो पर अब इसका विस्तार मानव स्वयं कर रहा है और इससे निपटने के सन्दर्भ में दुनिया में जो असमानता उपजी है उससे अब हम यह निर्धारित करने लगे हैं कि किसे जिन्दा रहना चाहिए और किसे मार दिया जाना चाहिए| गॉर्डोन ब्राउन ने ही सबसे पहले कोविड 19 के टीके को पेटेंट के दायरे से बाहर करने की वकालत की थी, जिसका समर्थन विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के अनेक देश कर रहे हैं, पर धरातल पर कुछ भी नहीं हो रहा है|