कोविड 19 के टीके की हो रही है कमी, लक्ष्य के अनुरूप नहीं हो पा रहा उत्पादन
(पांच महीने पहले मरे व्यक्ति को कोरोना के दूसरे डोज के लिए मैसेज आया)
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
भारत सरकार के एक विज्ञापन को याद कीजिये, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की फोटो भी है और साथ में लिखा है, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। इस विज्ञापन के साथ यह भी याद कीजिये, जब जून-जुलाई 2020 में भारत सरकार का आयुष मंत्रालय लगातार प्रचार कर रहा था कि कोविड-19 को मात देने के बहुत सारे काढ़े और दवाएं उसके पास हैं। इसके बाद भारत सरकार उद्योगपति रामदेव के कोरोनिल के प्रचार में जुट गयी, जिसके बारे में दावा किया गया है कि इससे कोरोना नहीं होगा, यदि हो गया है तो ठीक हो जाएगा और यदि आप ठीक हो चुके हैं तो बाद का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
ऐसे हरेक मामले में भारत के स्वास्थ्य मंत्री और विश्व स्वास्थ्य संगठन के एग्जीक्यूटिव बोर्ड के चेयरमैन डॉ हर्षवर्धन लगातार जनता को और दुनिया को गुमराह करते रहे। बीजेपी के नेता भी अपनी तरफ से कभी गौमूत्र से, कभी गोबर से, कभी काढ़ा से, कभी गर्म पानी से तो कभी हवन से कोरोना का इलाज बताते रहे। कोविड 19 के इलाज की इतनी सारी दवाएं तो किसी भी देश में नहीं होंगीं और किसी देश के सरकार ने कभी भी ऐसी अफवाहों को स्वयं फैलाया होगा। जब देश में इतनी सारी दवाएं हैं, तो फिर तो जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं वाला पोस्टर अब तो हटा ही देना चाहिए।
जिस तरह किसान आन्दोलन के बाद प्रधानमंत्री और दूसरे मंत्रियों ने लगातार देश को गुमराह किया कि कृषि कानूनों को बनाने के पहले अनेक किसान संगठनों से सलाह ली गयी थी, उसी तरह लॉकडाउन का हाल भी है। सरकार लगातार कहती रही कि लॉकडाउन से पहले सभी मंत्रालयों और चिकित्सा केन्द्रों से विमर्श किया गया था, पर बीबीसी ने जब अनेकों आरटीआई में पूछे गए प्रश्नों के माध्यम से इसकी पड़ताल की, तब पता चला कि लॉकडाउन केवल प्रधानमंत्री कार्यालय की उपज थी, इसके लिए न तो किसी मंत्रालय से चर्चा की गयी, न तो वित्तीय संस्थानों को जानकारी थी और न ही राज्यों को कुछ पता था।
अब, कोविड के टीके पर सरकार का पूरा ध्यान है, जबकि कोविड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसा ही लॉकडाउन के समय भी हुआ था, लॉकडाउन लगते ही मामले तेजी से बढ़ने लगे थे और थालियाँ पीट रहे थे और मोमबत्तियां जला रहे थे। भारत उन चुनिन्दा देशों में शामिल है जहां टीके का उत्पादन किया जा रहा है। इसी बीच केंद्र सरकार को वैक्सीन डिप्लोमेसी का ख़याल आया और देश में जितने टीके नहीं लगे उससे अधिक विदेशों को भेंट में दिए गए या फिर बेचे गए।
जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तब सीरम इंस्टीट्यूट ने अनेक देशों की टीके की सप्लाई को रोक दिया है। सीरम इंस्टीट्यूट ने ब्राज़ील, मोरक्को और सऊदी अरब से हरेक देश को 2 करोड़ टीके बेचने का ऐलान किया था, पर अब इसकी आपूर्ति में देरी की जा रही है। सीरम इंस्टीट्यूट ने इन देशों को भेजे गए पत्र में कहा है कि टीकों के आपूर्ति में देरी का कारण जनवरी में उनके प्लांट में लगी आग है। दूसरी तरफ पुणे में इनके प्लांट में आग लगाने के बाद यह सबने सुना था कि वहां केवल पोलियो के टीके बनते थे और कोविड के टीके वहां से अनेक किलोमीटर दूर बन रहे थे।
समाचार एजेंसी रॉयटर के अनुसार सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा आपूर्ति में देरी का संबंध आग से नहीं है, बल्कि यह कंपनी देश में ही पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पा रही है और दूसरी तरफ अपना उत्पादन बढाने की प्रक्रिया में है। इतनी बड़ी संख्या में टीके के उत्पादन में पर्याप्त कच्चा माल मिलाना भी एक बड़ी समस्या है।
सीरम इंस्टीट्यूट अब तक ब्राज़ील को 40 लाख, सऊदी अरब को 30 लाख और मोरक्को को 70 लाख टीके भेज चुका है। अभी हाल में ही ब्रिटेन साकार ने भी ऐलान किया है कि उनके नागरिकों को टीके के दूसरे डोज के लिए अभी इंतज़ार करना पड़ेगा। इसका कारण भी सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा टीके की आपूर्ति में देरी है। सीरम इंस्टिट्यूट को ब्रिटेन में 1 करोड़ टीका भेजना था, जिसमें से 50 लाख टीके भेजे जा चुके हैं, पर पिछले महीने सीरम इंस्टीट्यूट ने ब्रिटेन सरकार को बताया की अगली खेप में अभी देर होगी। सीरम इंस्टिट्यूट अभी महीने में 6 से 7 करोड़ टीके बना रहा है, पर अगले महीने से उत्पादन बढ़ाकर 10 करोड़ टीके का लक्ष्य है।
अपने देश में अबतक 4.4 करोड़ टीके खप चुके हैं, पर सीरम इंस्टीट्यूट 75 देशों में 5.2 करोड़ टीके बेच चुका है और 6 करोड़ टीके सरकार ने उपहार स्वरुप दूसरे देशों को भेजे हैं। जाहिर है, टीके का उत्पादन लक्ष्य के अनुरूप नहीं हो पा रहा है।