कोरोना से पिता की हो चुकी मौत, कार्टूनिस्ट भाई समेत पॉजिटिव, मां अकेली मगर कोई नहीं कर रहा मदद
जनज्वार, शाहजहाँपुर। 'उत्तर प्रदेश में सारे सिस्टमों की पोल खुलकर सामने आती जा रही है। यहाँ कुछ भी नहीं है, सब ढोल में पोल है। एक-एक कर सब मर जायेंगे, और मर ही रहे हैं। शर्म आती है शाहजहाँपुर ज़िला प्रशासन और यहां के कंट्रोल रूम पर। शर्म आती है यहां के नेताओं पर, जिनमें सांसद, कैबिनेट मंत्री, विधायक और एमएलसी सब शामिल हैं।' यह कहना है शाहजहाँपुर के रहने वाले सैफ असलम खान का। सैफ एक उभरते हुए कार्टूनिस्ट हैं।
दरअसल सैफ के वालिद का कई दिन बीमार पड़े रहने के बाद 7 दिन पहले इंतकाल हो चुका है। हालांकि उनकी रिपोर्ट निगेटिव आयी थी। सैफ अपने वालिद को शहर के तमाम नामी-गिरामी अस्पतालों में लेकर गए। कहीं डॉक्टर नहीं मिले तो कहीं ऑक्सीजन नहीं मिली। थक-हार कर बरेली के एक अस्पताल में जगह मिली, जहां कई दिन तक बीमारी के नाम पर उन्हें सिर्फ लूटा गया। और तो और अपने वालिद के साथ अस्पताल में कई दिन रहने के चलते वह और उनके बड़े भाई कोविड पॉज़िटिव हो गए।
जनज्वार संवाददाता से बात करते हुए सैफ रूँधे हुए गले से बताते हैं कि पिछले 7 दिनों से हम दोनों भाई घर में ही आइसोलेट हैं। हर रोज़ सुबह-शाम कंट्रोल रूम से स्वास्थ की जानकारी के लिए मेरे और भाई के पास फोन आता है। रोज़ उन्हें अपनी खांसी की शिकायत दर्ज करवाता हूँ। उधर से पूछा जाता है कि क्या बाकी घर वालों की जांच हुई है? क्या आपका घर सेनेटाइज़ हुआ है? क्या आप तक सरकारी दवाएं पहुँची हैं? क्या आपके घर कोई कर्मचारी पहुंचा है? और भी बहुत सारे अनाप-शनाप सवाल, जिनका हर जवाब मेरी तरफ से 'ना' होता है।
सैफ बताते हैं 'सच्चाई यह है कि कंट्रोल रूम से रोज़ सुबह-शाम अलग-अलग नम्बर से यह फ़ोन आते हैं, और अभी तक एक कर्मचारी भी घर में झांकने नहीं आया है। बाज़ार से ही महंगी दवाएं मंगवा रहे हैं। घर भी सेनेटाइज़ ख़ुद ही कर रहे हैं। मेरी खांसी बढ़ती जा रही है। भाई की भी तबियत भी तेज़ी से बिगड़ रही है, लेकिन ज़िला 'शाहजहाँपुर कंट्रोल रूम' से सिर्फ फ़ोनबाज़ी के अलावा कुछ नहीं करते। बल्कि ख़ानापूर्ति ही हो रही है।'
'अरे जब कोई मदद नहीं कर सकते, तो दिन में कई-कई बार फ़ोन कर-कर के दीमाग़ क्यों चाटते हो। हम पहले से ही बहुत ज़्यादा परेशान हैं। हमारे सर से वालिद का साया उठ चुका है। जिसका हाथ मैनें पिछले दस दिन तक एक पल को नहीं छोड़ा, उसे आख़िरी वक़्त में कांधा तक नहीं दे पाया। पॉजिटव की वजह से अछूत बन गया हूँ। ना मेरे पास रोने के लिए कोई कांधा है, और ना किसी का सर पर हाथ।'
सैफ रोते हुए फोन पर जनज्वार को बताते हैं कि 'इस वक़्त मुझे अपनी माँ और परिवार का साथ देना था। लेकिन लाचार और बेबस हो गया हूँ कि चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता। मेरे पापा ख़त्म हो चुके हैं, लेकिन कंट्रोल रूम वाले सुबह शाम उनके स्वस्थ के बारे में पूछते हैं। उन्हें बता-बता कर थक चुका हूँ, कि अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। अगर मुझे या मेरे भाई को कुछ होता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी ज़िला प्रशासन की होगी। क्योंकि हर रोज़ फ़ोन हम नहीं आप करते हो। सारी समस्याएं भी आप ही पूछते हो। आपको सब पता है कि यहां क्या चल रहा है।'
खुद को संयत करते हुए सैफ जनज्वार को बताते हैं कि 'मैने कला के छेत्र में बहुत नाम कमाया है। अंतराष्ट्रीय एवं विदेशों में भी बहुत सारे सम्मान एवं पुरस्कार भी मिले हैं। बड़े-बड़े लोगों से मिल भी चुका हूँ। डूडल आर्टिस्ट एवं कार्टूनिस्ट के नाम से देश में मशहूर हूँ। बहुत सारी स्टोरियां हुई हैं मुझे लेकर। राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी के साथ फ़ोटो देखी होगी आपने। बहुत सारे अखबारों के लिए कार्टून बनाने का काम किया है, जिसमें 'दैनिक जागरण' व 'अमर उजाला' जैसे बड़े अख़बार शामिल हैं। और देखिए अपने शहर और अपने देश का नाम रोशन करने वाले एक युवा कलाकार के साथ आज यह हो रहा है।