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कोविड -19

कोरोना पॉजिटिव महिला पुलिसकर्मी की जिद की कहानी, थोड़ी सी जिद जिंदा रखिये, ठीक होने की

Janjwar Desk
16 Nov 2020 1:39 PM IST
कोरोना पॉजिटिव महिला पुलिसकर्मी की जिद की कहानी, थोड़ी सी जिद जिंदा रखिये, ठीक होने की
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​महिला पुलिसकर्मी बंशी यथार्थ के कोरोना से संघर्ष की कहानी (photo : FB)

तकलीफ बहुत हुई शरीर में इतनी कमजोरी एक मिनट खड़ा रहना मुश्किल चलना तो दूर की बात, पेशाब के लिए दो दिन तो दीवार का सहारा लिया, दो-तीन बार फोन आए BHMO से बोल रहे हैं आपका एड्रेस क्या है। एड्रेस फॉर्म में लिखा था, दो बार बता दिया वही है...

राजस्थान पुलिस की सिपाही बंशी यथार्थ की कोरोना से लड़ाई की यह कहानी गंभीर पॉजिटिव रोगियों को देगी जिंदा रहने और इस महामारी से लड़ने की हिम्मत

सुबह साढ़े तीन उठी खाना बनाया नहा-धोकर मेरा टिफिन साथ लिया सुबह पांच बजे ड्यूटी के लिए झोटवाड़ा से रवाना होकर छः बजे पुलिस कन्ट्रोल रूम यादगार (जयपुर) पहुंची।

तब तक पुलिस लाइन से अन्य जवान यादगार पहुंच चुके थे। ड्यूटी का आदेश मिले तब तक सोचा चाय पी लें। चाय पी आदेश मिला कि आपको यही रिजर्व में रहना है फिर हमें ग्यारह बजे आदेश मिला कि जाओ तीन बजे ड्यूटी पॉइन्ट पर आ जाना ।

लगभग 12 बजे घर पहुंच कर टिफिन खोला खाना खाया और कपड़े धोने लग गयी। आधे ही कपङे धोये थे कि जोरदार पेट दर्द होने लगा। मैंने सोचा आलू की सब्जी खराब कर गयी। बचपन से सुनते आ रहे हैं आलू की ठण्डी सब्जी से पेट दर्द हो सकता है। पेट दर्द के मामले में बदनाम है आलू की सब्जी। मैं हल्का गर्म पानी पीकर सो गयी करीब 1.45 पर ग्रुप में msg देखा ड्यूटी वनस्थली चौराहा लगी है। 2.55 पर ड्यूटी पॉइन्ट पर हाजिर हो गयी और अपनी ड्यूटी करने लगी।

भयंकर पेट दर्द हो रहा था, खड़ा रहना भी मुश्किल हो रहा था। मैंने साथ वाली लड़की को बोला आसपास चाय का ठेला है तो चाय पीते हैं चाय के बहाने थोड़ी देर बैठ जाऊंगी, मेरे लिए खङा रहना दुःखदायी हो रहा है। एक -एक मिनट भारी लग रहा है। चाय के बहाने आधा घंटा बैठकर निकाला फिर ड्यूटी में जुट गई। पुलिस कॉन्स्टेबल का पेपर था, चौराहे पर काफी भीड़ थी। कोई नागौर की बस का पूछ रहा था, कोई ट्रांसपोर्ट नगर का, कोई सिंधी कैम्प का।

हैडसाहब बोले इनकी भीड़ मत होने दो आगे निकालते रहो, इनसे ज्यादा बात मत करो। मैंने कहा सर - हम बात नहीं कर रहे ये बस खाकी वर्दी देखकर रास्ता पूछ रहे हैं और हम बता रही हैं। भूखे-प्यासे परेशान हैं सही रास्ता बताने में क्या दिक्कत है? आगे से आगे निकाल कर भीड़ कम करने से क्या मतलब? यहां लोफ्लोर बस रुकती है, थोड़ी देर भीड़ होगी मगर अपने गंतव्य स्थान की ओर रवाना तो हो जायेंगे। इतना करते ही हैडसाहब मेरे से चिढ़ गया और बोला आप दोनो लड़कियां उस तरफ जाओ सिटी बस रूक रही है, उनको रूकने मत दो, कोई ई रिक्शा भी नहीं रुके। मैं चलती-चलती बोल गई ई रिक्शा रुकेंगे तभी तो सवारी बैठायेंगे, भीड़ कम होगी।

हैडसाहब अपने आप अगले स्टॉप पर चढा लेंगे अपने को, अपने पॉइन्ट पर भीड़़ नहीं होने देनी, ज्यादा दयावान मत बनो। मैने कहा- ज्यादा दयावान नहीं हूं बस थोड़ी सी दया आती है मैं क्या करूं, इस दया वाले पुर्जे को कहां फेंक आऊं।

पेट दर्द के साथ-साथ शरीर कांपने लगा ठण्ड लग रही थी, सिर में हथौड़े से पड़ने लगे। पास की दुकान से कुर्सी लेकर बैठ गई, थोड़ी देर बैठी रही। भीड़ और बढ़ने लगी तो खुद को खुद से ही शर्म महसूस होने लगी कि बैठना ठीक नहीं, हिम्मत करके ड्यूटी करनी है।

मैं कुर्सी पर जची बैठी हूं और परीक्षार्थी मेरे पास आकर रास्ता पूछ रहे हैं अच्छा नहीं लगता। आत्मा ने कहा खड़ी हो जाओ और मैं फिर खड़ी हो गयी। थोड़ी देर में शरीर फिर जवाब देने लगा, ड्यूटी अगले आदेश तक थी तो सोचा पता नहीं कब तक ड्यूटी करनी पड़े। मेडिकल स्टोर से दवाई ले आती हूं दर्द ठीक होने की। पास ही मेडिकल था, मेडिकल वाले ने जो गोली दी वह फटाफट गटक गयी। कौनसी गोली है नाम भी नहीं देखा।

8.30 हो गए थे, मैं हैडसाहब को बोली सर मेरी तबीयत बहुत खराब है मैं कांप रही हूं। आंखों में पानी बह रहा है, नाक बेपूछ ही चल रही है। हैडसाहब बोले, अभी जाने के आदेश नहीं है अभी ड्यूटी करो। मैं कोशिश कर रही थी बस थोड़ी देर और खड़ी रह पाऊं, बस थोड़ी देर और। फिर हारकर बोली -सर मै जा रही हूं मैं मर रही हूं, आपके ड्यूटी की लगी है। गैरहाजिर से एक दिन की तनख्वाह कम मिल जाएगी क्या फर्क पड़ता है मरूंगी तो नहीं।

मैं रवाना हो गई। घर पहुंच कर गर्म पानी पीया और जो मेरी बात सुनते हैं जिसके आगे में रो सकती हूं उनको फोन लगाया और बोली मेरी सरधा (तबीयत खराब है) कोनी

जीभर रोयी।

मैं मेरी शारीरिक तकलीफ के लिए कभी नहीं रोती, यूं भले ही एक कहानी पढ़ते-पढ़ते कई बार रो लूं मैं मर रही हूं।

पता नहीं क्या हो गया अचानक?

मेरे से बैठा भी नहीं जा रहा, आंखें नहीं खुल रहीं।

रोटी कैसे बनाऊं।

मैं तो आ गई मगर अभी ड्यूटी चल रही है।

सुबह 6 बजे ड्यूटी पॉइन्ट पर पहुंचना है।

वो बोले- सुबह ड्यूटी मत जाना अभी फोन करके बता दे तबीयत खराब है, ड्यूटी नहीं आ सकती।

खाने का ऑडर दे दो।

मैं - ड्यूटी तो लग चुकी है अब कौन काटेगा, मैं किसी के आगे ड्यूटी न करने की भीख नहीं मांगूगी।

आपको कितनी बार कह चुकी हूं भीख मांगकर मेरे से नौकरी नहीं होती है।

मैं हिम्मत, ईमानदारी और अपने दम पर नौकरी करना चाहती हूं।

नौकरी में 100 प्रतिशत देने का प्रयास करती हूं ।

केठा दिनगै तक ठीक हो जाऊं अबी क्यामी मना कर देऊं ड्यूटी खातर।

रोते हुए बारै गो खाणो कोनी मंगाऊ बारै कोरोना है

वो बोले- थोड़ा आराम करके हॉस्पिटल चली जा, रोने से ठीक नहीं होगी दवाई से ठीक होगी।

तू बीमार होती है कभी नहीं रोती आज रो रही है।

मुझे पता है तेरे तकलीफ ज्यादा ही है।

मैं -दवाई मेडिकल से लायी हूं गोळी ली असर ई कोनी करी।

मैने फोन काट दिया कुछ देर बाद गोळी का नसा हुआ हिम्मत करके उठी चार रोटी बनाई।

सब्जी काटी बना नहीं पाई, हिम्मत जवाब दे चुकी थी। चटनी बनाई और बाहर वाले रूम में आकर सो गई।

थोड़ी देर बाद एक्टिंग क्लास से बेटा आ गया। कपड़े बदल हाथ-मुंह धोकर बोला मम्मी।

मैं उसकी बात सुने बिना ही बोली- बेटा चटनी-रोटी है खा ले दूध गर्म करके पी ले।

मैने रोटी खा ली है मेरी सरधा कोनी मैं दवाई लेकर सोऊं।

मैं बेटे से झूठ बोली कि रोटी खा ली। झूठ नहीं बोलती तो वो मुझे बार-बार खाने को कहता और मेरे से बोला भी नहीं जा रहा था।

बुखार उतर गया था, उसके बाद बुखार नहीं आया पर रात भर नींद नही आई। पेट दुखता रहा, शरीर ऐसे टूट रहा जैसे सौएक लठ मार कर सारे हाड़ तोड़ दिये हों। अस्थमा की मरीज होने के कारण सांस की तकलीफ से जीवन की अनगिनत रातें बैठे-बैठे निकाली हैं और दिन भर फिर वही ड्यूटी व अन्य कार्य किया है (अस्थमा में सोने पर सांस की तकलीफ ज्यादा व बैठे रहने पर कम रहती है)। मगर हिम्मत कभी नही हारी।

रातभर लगा ये सांस आया शायद अगला तो नहीं आयेगा। फेफड़े फटे जा रहे थे, तीन-चार forecort 400 ले लिये, उल्टी तकिये पर सिर रख कर घुटने पेट के चिपकाकर सोयी कहीं आराम नहीं मिला। 5 बजे सोचा जीवड़ा सोये रहने से क्या होगा ड्यूटी तो जाना पड़ेगा, उठा नहीं जा रहा था, पर हिम्मत करके उठी।

रसोई में जाकर पीने के लिए पानी गर्म रखा और जीदोरा सा हुआ, आंखों से दिखना बंद हो गया। जैसे-तैसे गैस बंद किया और स्लेब पकड़कर बैठ गयी। दिमाग तो काम कर रहा था, पर आंख नहीं खोल पा रही थी, ना ही उठा जा रहा था। करीब दस मिनट बाद बतख चाल से (पुलिस ट्रेनिंग में सजा के तौर पर चलाया जाता है मेंढक चाल, मुर्गा चाल, बतख चाल) सरकते, सरकते चारपाई तक पहुंची, गला सूखा जा रहा था। चारपाई के पास पड़ी बोतल में पानी था। रात का गर्म रखा हुआ वो पीया व गला बोलने लायक हुआ।

मैंने कम्पनी के CHM साहब को फोन लगाया, उन्होंने नही उठाया। फिर GDC को फोन किया उससे कहा मेरी तबीयत खराब है, मैं ड्यूटी नहीं जा सकती। CHM साहब ने फोन नहीं उठाया तुम बता देना। GDC बोली दीदी एक बार ड्यूटी पॉइन्ट पर पहुंच जाओ, वहां जाकर बैठ जाना। अब 6 बज रहे हैं, ऐन वक्त पर ड्यूटी कौन काटेगा। मैं बोली ड्यूटी पर पहुंचना तो दूर मैं चारपाई से नही उठ पा रही हूं, गैरहाजिर लगती है तो लगने दो, मैं नहीं जा सकती। मैंने फोन काट दिया।

थोड़ी देर बाद GDC का फोन आया, मैने कन्ट्रोल रूम बता दिया है तुम बीमार हो। 9 बजे GDC का फिर फोन आया, दीदी CHM साहब कह रहे है हॉस्पिटल की पर्ची भेजो।

मैं बोली -मैं मर रही हूं आपके पर्ची की लगी है उठा जायेगा तब हॉस्पिटल जाऊंगी, भेज दूंगी पर्ची। रिकॉर्ड में पर्ची चाहिए, जवान भले ही मर जाए 'मरया ही पीताओगा के (भरोसा करोगे क्या) पुलिस सिस्टम खराब है या पुलिस की नौकरी खराब, मैं बड़बड़ज्ञ रही थी और कब उधर से फोन काटा मुझे पता नहीं।

बेटे को जब तक मैं नही उठाऊं वो उठता नहीं है।

बेटा जितेश उठ मुझे पानी गर्म करके लाकर दे, गोळी लेऊगी सरधा कोनी।

थोड़ी देर बाद फिर .... जीत उठ रे 9 बज गया

जीत ओ जीत उठ रे।

जितेश आंख मसलता हुआ बोला-मम्मी जी 9 बज गया थे ड्यूटी कोनी गया सरधा कोनी के।

हां बेटा।

जितेश पानी लाया, मैंने दो गोळी फटाफट गटक ली।

मम्मी जी दो मत लेओ खाली पेट खराब करसी।

खराब तो करसी पर गोळी गै नसै स्यूं हॉस्पिटल जाईजै गो।

जितेश चाय बनाकर लाया मुझे चाय में कोई स्वाद नही आया।

बेटा अदरक कोनी गेरी चा में, पाणी बरगी चा बणाई है।

मम्मी जी अदरक गेरी।

बेटा अदरक गी खूशबू तो छानी को रेवै।

सप्लाई हाळो पाणी चरको है पण आज मनै चरको तो कोनी लागयो।

मनै लागै कोरोना होगयो।

बेटा मेरो सिर कदैई कोनी दूखै। रात गो सिर फूटे है। है तो शरीर में कोई नुई बला।

मम्मी uber कार कर दूं।

नहीं बेटा पेपर चालै भीड़ है uber बाइक करदे। बाइक भीड़ में जल्दी निकल जाती है।

SMS हॉस्पिटल धन्वन्तरि OPD में दिखाया, डॉक्टर लक्षण देखकर बोले आपके कोरोना के लक्षण हैं चरक भवन के पास कोरोना OPD है वहां दिखाओ।

मैं पूछती-पूछती आधे घंटे में कोरोना OPD पहुंची। फॉर्म लिया भरा सेम्पल देने के लिए पर्ची कटवानी पड़ती है, वहां लम्बी लाइन थी। लोग आपस में लड़ रहे थे। मैं पहले आया, मैं पहले आया। कोई कोरोना का भय नहीं मास्क भी एक-दो के तो ठोडी पर। जल्दी सबको थी ज्यादा युवा लड़के थे जो लाइन में बेवजह ही ही हु हु हा हा हा कर रहे थे।

गार्ड भाई लाइन में लगने को कह रहा था, मगर कोई मानने को तैयार नही था। मैं पुलिस की PT ड्रैस में थी तो गार्ड भाई बोला दीदी आप समझाओ ना ये एक मीटर की दूरी से खड़े रहें। बुढे-ठेरे थे जो मेरी तरह मुंह बा कर सांस ले रहे थे, उनको आगे लगाया बाकी युवा को पीछे। मेरी बात मानकर सब शान्ति से पर्ची कटवाते रहे। एक-दो अनपढ महिला व पुरूष फॉर्म भरना नही जानते थे, वो मेरे पास आऐ पता नही कौन सी बोली में बोले मुझे कुछ समझ नही आया, पर इतना समझ गई की ये फॉर्म भरने का कह रहे हैं। मेरे पास पैन नहीं था। मेरा पैन किसी ने थोड़ी देर पहले ले लिया था। कहा पैन लेकर आओ। एक व्यक्ति के पास पैन था, उसने उनको पैन देने से इनकार कर दिया कि मेरे पैन के कोरोना लग जाऐ मैं नही देऊंगा।

मैने कहा भईया पैन देना इनका फॉर्म भर दूं।

फॉर्म नही भरा गया तो कब तक यहां खड़े रहेंगे, ये बाहर से आऐ लगते हैं। ठीक तरह से इनकी बोली भी समझ नही आ रही है, व्यक्ति ने मुझे पैन दे दिया। आधार कार्ड देखकर फॉर्म भरा वो UP के थे।

लाइन से थोड़ी दूर पत्थर पड़ा था, उस पर जाकर बैठ गई। मेरी बारी का इंतजार करने लगी। गोळी का असर उतर रहा था और शरीर चलने-फिरने को राजी नही था। एक-दो व्यक्ति बोले आप पहले पर्ची कटवा लो, हम लड़ रहे थे हम सबको लाइन में लगा दिया।

नही, मैं मेरा नम्बर आयेगा तभी कटवाऊगी मुझे कोई जल्दी नहीं है।

सेम्पल देकर व दवाई लेकर एक खुराक वहीं ली और एक दीवार के पास धूप में बैठ गई। GDC के पास what's app पर दवाई की पर्ची भेजी।

मन ही मन बड़बड़ाई चाट लो पर्ची को। अब तो तसल्ली हो जायेगी की मैं सच मैं बीमार हूं। कुछ देर बाद उठने की हिम्मत की पर हिम्मत जवाब दे रही थी। आधा घंटा बाद दवाई ने असर दिखाया हिम्मत कर uber बाइक से घर आई।

घर आते ही जितेश बोला मम्मीजी मेरा शरीर दुख रहा है लगता है बुखार होगी।

अचानक क्या हो गया तेरे बेटा, लगता है मेरे कोरोना है मेरे वाला तेरे तक पहुंच गया। मैने मेरी दवाई में से उसको दी और दोनों सो गए। रात के 10 बजे आंख खोली समय देखा।

जितेश कैसे हो, बोला ठीक हूं। बेटा हिम्मत करके उठ पानी गर्म करके ला। बेटा पानी देकर वापिस सो गया।

बेटा कुछ खायेगा क्या?

नही मम्मी।

दूसरे दिन सुबह 10 बज गए, मां-बेटे दोनो में किसी में उठने की हिम्मत नहीं।

फिर भी हिम्मत करके चाय व खिचड़ी बनाई।

दोनो ने थोड़ी सी खिचड़ी खाई, उल्टी आने जैसा मन हुआ छोड़ दी।

11 बजे मोबाइल में मैसेज आया कोरोना पॉजिटिव।

जीत बेटा मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव है फटाफट uber कर और हॉस्पिटल जा, सेम्पल दे आ, फिर लाइन लग जायेगी भीड़ में परेशान हो जाऐगा।

बेटे के चेहरे से साफ पता चल रहा कि कोरोना पॉजिटिव सुनते ही डर गया।

मम्मी जी मेरी भी पॉजिटिव आई तो।

फिर क्या है?

बेटा दोनो एकसे हो जायेंगे।

कोई 'रीसरोसो' कोनी रेवै।

मम्मीजी, रीसरोसो के हुवै।

तु यह नहीं कहेगा कि क्यूं थारै कोरोना मेरै कोनी हुयो।

दोनो जोरदार ठहाका मारकर हंसे। बेटे के चेहरे पर डर की जगह हंसी ने ले ली थी।

खुद का सेम्पल देकर मेरी रिपोर्ट के साथ दवाई ले आया। मेरी रिपोर्ट ली, तब काउन्टर वालों ने पूछा मरीज के सांस में तकलीफ है तो भर्ती हो जाओ।

बेटा फोन पर मम्मी जी सांस में तकलीफ है क्या?

झूठ बोली नहीं बेटा सांस ठीक है एकदम।

मैंने सोचा मैं भर्ती हो जाऊंगी तो बेटा घर में अकेला, उसकी भी तबीयत खराब है बेटे को अकेला नही छोड़ सकती।

मैं भर्ती हो जाऊंगी तो वो और डर जायेगा।

कोरोना पॉजिटिव के लिए डरना घातक है।

मुझे दवाई समझाई कब कौनसी लेनी है, मेरा भंयकर सिर दुख रहा था मैं झूठे ही हां, हूं किये जा रही थी। बेटा समझ गया मम्मी का ध्यान दवाई समझने में नहीं है।

एक गोळी का पत्ता उठाकर पूछा बताओ मम्मी ये कब लेणी है।

अब क्या बताऊं दिमाग में बैठी कोनी तो।

मैने कहा... मेरो जी करै जदै लेणी है।

दोनो फिर जोर से हंसे।

जब बोलने की हिम्मत नहीं हो और जोरदार हंसी आ जाए तो शरीर में सकारात्मक ऊर्जा व ताकत की कंपकंपी सी उठती है।

दोनो ने सकारात्मक ऊर्जा का आनंद अनुभव किया।

दूसरे दिन बेटे की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी।

बेटा दवाई बताये अनुसार ले रहा था और मैं जी करै हो वही ले रही थी।

20 गोळी पैरासिटामोल दे दी, तीन टाइम लेते रहो। मुझे बुखार था ही नहीं, मैं क्यो लेऊ पैरासिटामोल गोळी मुझे बहुत खराब करती है। Hydroxychloroquine की डिब्बी दी, सुबह-शाम लेते रहो। मैंने चार गोळी ली तब-तक मुझे महसूस हो चुका था कि ये भी फायदा कम व नुकसान कर रही है।

गोळी से लगा मेरा सिर कलकते जा रहा है।

जीभ भारी, आवाज तुतली सी और खाली पेट फला-ढिकमा कचरा दिया वो कोई दवाई नहीं ली।

दिन में दो बार गिलोय काढा, दूध में अदरक, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग-इलायची, हल्दी डालकर पीया। गर्म पानी बार-बार पीया। गला सूखता है, खांसी व सांस की तो तकलीफ ज्यादा होती है । गला तर करते ही काफी आराम महसूस होता है।

जब-जब सांस में तकलीफ हुई forecort 400 लिया। नाक से सांस बंद तो पतंजलि की coronilkit के साथ आई दवाई नाक में डाली दो बार में नाक खुल गया तो लगा आधा कोरोना ठीक हो गया।

घर में मां-बेटा दो ही थे, दोनों गम्भीर बीमार तो कौन चाय-पानी दे। कभी बेटा कहता मम्मी जी हिम्मत करियो चाय बणाईयो। कभी मैं कहती बेटा जीत हिम्मत कर पानी गर्म कर दे दवाई ले लू।

पानी देते हुए बेटा कहता चुपचाप बताये अनुसार दवाई ले लो, दवाई पर अब राजनीति मत करना।

दोनों ठहाका मारकर हंसते हैं।

राजनीति तो करूंगी दवाई खराब करती है तो।

मम्मी जी आपको क्या पता खराब करती है।

बेटा मेरी दादी भी कहती थी, मेरी मां भी कहती है कोई दवाई लेने के बाद जीभ भारी पड़े, आवाज घेघी हो जाए तो समझना दवाई साइड इफेक्ट कर रही है।

मैने पेट में कुछ खाया नहीं दो दिन से। दिन में तीन पैरासिटामोल व दो hydroxychloroquine लेऊंगी तो नहीं मरूंगी, तो भी मर जाऊंगी।

जब कोरोना की दवाई है ही नहीं तो दवाई के नाम पर यह कचरा क्यों खाऊं।

मम्मी जो डॉक्टर देंगे वो खानी पड़ेगी, मरने के भय से बचने के लिए।

मरने का भय नही है बेटा... बस ठीक होने की हिम्मत है।

मम्मी ज्यादा हिम्मत, हिम्मत मत करो दो लाख लोग गये।

मर रहे हो तो भी उठने का प्रयास करो सफलता मिलेगी, यह कहकर मैं रसोई में गई तीन-चार दिन से गैस चूल्हे पर चाय, दूध उफन कर चितराम मंडे (बने) हुए थे, वो साफ करने लगी।

बेटे ने आवाज लगाई मम्मी क्या कर रहे हो पङ्यो कोनी रेईजै के।

चूल्हे पर मंडेड़ा चितराम लुगाई जात ने फूटी आंख कोनी सुवावै।

मम्मी जी चितराम के हुवै।

आकर देख ले।

जब कम्पनी में पता चला कोरोना पॉजिटिव का तो साथ वाली लड़कियों ने कहा जब जो जरूरत हो बता देना, हम आ जायेंगे। तुम यह मत सोचना कोरोना है तो हम आ नहीं सकते। सुबह-शाम खाना पहुंचाने की जिद्द की। मदद के लिए अनेक हाथ उठे।

मैं किसी को परेशान नही करना चाहती थी, पांच दिन तो कुछ खाया नही, खाने की इच्छा भी नहीं हुयी।

कोरोना दूर था, मैं बहुत सावधानी रखती। कोरोना से मौत सुनकर कभी-कभी डर भी लगता।

मगर जब कोरोना शरीर में प्रवेश कर गया तो बेटे से कहा -बेटा अपने शरीर से कोरोना दूर था बहुत डर लिये।

अब कोरोना अपने भीतर है अब डरना नहीं, सिर्फ कोरोना से लड़ना है जीतना है हिम्मत रखनी है।

एक बार भी मन में नहीं आया कि कोरोना से मर जाऊंगी।

तकलीफ बहुत हुई शरीर में इतनी कमजोरी एक मिनट खड़ा रहना मुश्किल चलना तो दूर की बात। पेशाब के लिए दो दिन तो दीवार का सहारा लिया। दो-तीन बार फोन आए BHMO से बोल रहे हैं आपका एड्रेस क्या है। एड्रेस फॉर्म में लिखा था, दो बार बता दिया वही है।

मैं बड़बड़ाई म्हारी बोलणगी सरधा कोनी बारी-बारी फोन करगे दुख देवै।

मरीज सूं कोई लेणो-देणो कोनी मरै या जियै।

बस रिकोर्ड में घर गो पतो सही होणो चाईजै।

एड्रेस गो आचार घाललयो।

बेटा बोला -मम्मी जी गोळीयो का नसा ज्यादा है क्या?

दिमाग सटक गया क्या ?

बेमतलब बड़बड़ा रहे हो बेचारे एड्रेस ही तो पूछ रहे है वो भी गाइडलाइंस के अनुसार अपनी नौकरी कर रहे हैं।

बड़बड़ाऊं मेरै सूं बोलीजै कोनी।

घड़ी—घड़ी में फोन आवै।

बोई एड्रेस खातर मरीज गो हाल-चाल तो पूछै कोनी।

8 दिन हो गये अब काफी ठीक हूं।

योगाभ्यास भी करती हूं।

संगीत सुनती हूं।

बस थोड़ी सी जिद जिंदा रखिये, ठीक होने की... जिंदा रहोगे।

(बंशी यथार्थ की यह पोस्ट उनकी फेसबुक वॉल से)

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