योगी सरकार में टाइगर भी नहीं रहा जिंदा, इलाज के अभाव में पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन की हुई मौत
जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनात का आदेश है कि मरीज का पहले इलाज फिर रेफरल। लेकिन सिस्टम के नियम में ही जिंदगी दम तोड़ दे रही। कल शाम 6 बजे से जुटे तो रात में दो बजे रेफेरल बन पाया, पर अस्पताल नही मिला। जिसके चलते तड़के 4 बजे रॉ के पूर्व जासूस मनोज रंजन की मौत हो गई। ये हाल तब हुआ जब सीधे सिस्टम से जुड़ी अधिकारी ऋतू सुहास रात 2 बजे तक खुद जुटी रही। पल पल की अपडेट पहुंचाती रहीं।
ऋतू सुहास के साथ हिंदुस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट ज्ञान प्रकाश भी लगातार प्रयास करते रहे, लेकिम अफसोस कि कागज और औपचारिकता तो जिंदा रहे इंसान ने दम तोड़ दिया। मुख्यमंत्री को व्यवस्था को जमीनी लेवल पर बदलना ही होगा। पिछले साल के लॉकडाउन में रॉ के पूर्व जासूस रहे मनोज रंजन दाने-दाने को मोहताज हो गए थे। कहीं से मदद ना मिलने पर उन्होने डीएम तक से भरण पोषण की गुजारिश की थी लेकिन मिली तो बस मायूसी।
पिछले साल के लॉकडाउन में नजीबाबाद में रहने वाले मनोज रंजन ने डीएम ऑफिस में अधिकारी के सामने कहा था 'सर मैं पूर्व रॉ एजेंट हूँ, मुझे रहने के लिए छत चाहिए।' मनोज की बात सुनकर सामने बैठा अधिकारी हैरान रह गया था। डीएम नहीं मिले तो उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ा था। बाद में वह कभी किसी के सामने मदद मांगने नहीं गए।
जासूसी करने के जुर्म में पाकिस्तान में गिरफ्तार होने के बाद 2005 में भाघा बार्डर पर छोड़े गए मनोज रंजन कुछ साल पहले बीमार पत्नी का इलाज कराने लखनऊ आ गए थे। पाकिस्तान से छूटने के बाद 2007 में उनकी शादी हुई थी। शादी के कुछ साल बाद पता चला पत्नी को कैंसर हो गया है। 2013 में पत्नी की मौत के बाद वह लखनऊ में ही रह गए। लॉकडाउन में नौकरी जाने के बाद मनोज को मुफलिसी ने घेर लिया था।
मनोज रंजन ने कश्मीरी युवकों को बरगलाकर अफगानिस्तान बार्डर पर ट्रेनिंग दिए जाने जैसी कई अहम जानकारियां देश तक पहुँचाईं थीं। खूफिया एजेंसी की पहली शर्त होती है कि पकड़े जाने पर वह अपने एजेंट को नहीं पहचानेगीं। लेकिन देश के भीतर ही उनकी सरकार ने ही मुफलिसी के वक्त उन्हें नहीं पहचाना यह बात मनोज को जानने वालों को अंदर से कचोटती है।