5 Years of Demonetisation: भ्रष्टाचार पर नहीं कोई लगाम, RBI ने स्वीकारा देश में बढ़ा नगदी का चलन
(नोटबंदी के पांच साल)
वरिष्ठ लेखक प्रेमकुमार मणि की टिप्पणी
भारत के नागरिक 8 नवम्बर 2016 की उस शाम को अभी नहीं भूले होंगे जब प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने अचानक से नोटबंदी (Demonetisation) की घोषणा की थी, जिसके मुताबिक तब प्रचलित एक हज़ार और पाँच सौ रुपये के नोट उसी वक़्त से गैरकानूनी हो गए थे । नागरिकों को मौका दिया गया था कि एक खास तारीख तक उन नोटों को बैंकों में जमा कर सकते हैं ,या भुना सकते हैं । उस शाम प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए इस नोटबंदी अभियान को सफाई का महापर्व कहा था और इस महायज्ञ में नागरिकों से योगदान की अपील की थी। प्रधानमंत्री का तर्क था कि इससे हमें काले धन और जाली नोटों को रोकने में मदद मिलेगी। उनका यह भी कहना था कि जनता के पास अधिक नगदी भ्रष्टाचार को तो बढ़ावा देती ही है, महंगाई में भी इजाफा करती है। अपनी लच्छेदार शैली में उन्होंने कहा था कि नागरिकों को इससे थोड़ी असुविधा होगी, लेकिन भारत की महान जनता को असुविधा और भ्रष्टाचार में से यदि एक का चुनाव करने को कहा जाय तो वह निश्चय ही असुविधा को चुनेगी ।
जनता ने असुविधा को चुना नहीं, झेला। उसने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री के महायज्ञ में सैकड़ों जानों की बलि दी। बैंकों के सामने खड़े -खड़े जाने कितने बुजुर्ग मर गए। वित्तीय अफरा-तफरी ऐसी हुई, जैसी कोरोना महामारी के लॉकडाउन में भी नहीं नहीं हुई। लेकिन नतीजा जीरो से भी नीचे निकला। न कालाधन का हिसाब सामने आया, न जाली नोट बन्द हुए। बाद में हिसाब आया कि जितने नोट जारी किए गए थे, उसका 99.3 प्रतिशत बैंकों में लौट आया। किसी सेठ व्यापारी की मौत हृदयाघात या सदमे से नहीं हुई लेकिन लाखों गरीब अपना काम-धंधा छोड़कर मुश्किल से बचाई अपनी दस बीस हजार की राशि जमा करने के लिए कई कई रोज बैंकों के सामने खड़े रहे। इसी में सैंकड़ों की जान गई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कृत्य के लिए देश की जनता से कोई माफी भी नहीं माँगी।
इस नवम्बर में नोटबंदी के पाँच साल हो गए हैं। महंगाई किस रूप में है, बताने की जरुरत नहीं। प्रधानमंत्री ने जिस नगदी के बाहर होने की बात की थी, उसका जायजा इसी 3 नवम्बर (दीवाली के एक रोज पूर्व ) को रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) द्वारा जारी एक विज्ञप्ति से लगाई जा सकती है। इसके अनुसार नोटबंदी से पूर्व देश में 17 लाख 97 हजार करोड़ की नगदी थी। इस 3 नवम्बर 2021 को यह नगदी 28 लाख 25 हजार करोड़ है। यानी पाँच साल पूर्व की अपेक्षा 10 लाख 28 हजार करोड़ अधिक नगदी सार्वजनिक है। जनता के हाथ में नगदी वह राशि होती है जो रिजर्व बैंक द्वारा जारी नोट और बैंकों में जमा नोट की अंतर राशि होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार ने कोई ऐसी व्यवस्था इस बीच नहीं विकसित की, जिससे जनता के बीच नगदी में कमी ला सके। 8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी इस नगदी को ही भ्रष्टाचार की जननी मान रहे थे। इसका अर्थ यह हुआ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मोदी सरकार विफल रही। इसी तरह वह महंगाई पर काबू पाने में भी विफल साबित हुई है।
सीमित स्तर पर नोटबंदी का एक फैसला मोरारजी देसाई (Morarji Desai) की सरकार ने भी लिया था। तब एक हजार के नोट सामान्य तौर से बाजार में नहीं थे। इसकी बंदी से केवल बड़े लोग प्रभावित हुए थे। इसीलिए मुझे 2016 में भी लगा था कि इससे अर्थव्यवस्था की सफाई होगी। लेकिन जिस तरह के प्रतिफल आए वे यही बताते हैं कि सरकार की नीयत स्पष्ट नहीं थी या फिर यह भी कि सरकार से अधिक कालाबाजारियों का बैंकों पर प्रभाव है। यह भी हुआ कि मोरारजी के समय हजार रूपए के नोट केवल बड़े लोगों के पास थे, जबकि 2016 में हजार और पाँच सौ के नोट आमआदमी की जेब में थे। वे बुरी तरह प्रभावित हुए। फिर जो नतीजा आया, वह सिफर था। अर्थात पूरी योजना ही टांय-टांय फिस्स हो गई। आज जो कमरतोड़ महंगाई है, उसका कुछ न कुछ वास्ता उस नोटबंदी से भी जुड़ता प्रतीत होता है। क्योंकि उस वक़्त से जो भारत की आर्थिक स्थिति डगमग हुई ,वह फिर संभल नहीं पाई। बीच में कोरोना महामारी ने भी इसे बुरी तरह प्रभावित किया। लेकिन धन्य है भारत की जनता कि वह मोदी माया से अभी मुक्त नहीं हुई है।
(वरिष्ठ लेखक प्रेमकुमार मणि की यह टिप्पणी उनके FB वॉल पर प्रकाशित।)