GDP मे सबसे बड़ी गिरावट और उच्च राजकोषीय घाटे के बीच निर्मला सीतारमण का शताब्दी बजट
अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार का विश्लेषण
दिसंबर 2020 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने सीआईआई के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में 100 सालों में महामारी के बाद के हालात में इस तरह का बजट बनते नहीं देखा होगा।
क्या वास्तव में यह मात्र तथ्यों का एक वक्तव्य था कि पूर्व में महामारी के बाद बजट बनाने में प्रभावकारी तरीकों का उपयोग नहीं किया गया था या फिर आशा भरा एक बयान था कि बजट का अंतिम परिणाम गहरा होगा जो देश ने एक सदी में पहले कभी नहीं देखा होगा।
कोविड 19 संक्रमण व अर्थव्यवस्था के नीचे जाने के बाद लगभग एक साल का वक्त हो चुका है। जब से देश में जीडीपी के आंकड़ों की घोषणा शुरू हुई है देश की आर्थिक गतिविधियों में तेजी से गिरावट दिख रही है। यहां तक की दुनिया के अधिकतर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में जीडीपी में गिरावट सबसे अधिक थी।
परिणामतः बेरोजगारी का संकट है, मनरेगा के तहत रोजगार में तेज वृद्धि हुई है, रोजगार जाने और तनख्वाह में कटौती से आय में गिरावट आयी है, कारोबार की विफलता, वित्तीय संकट बढा है और एनपीए बढ रहा है। बढती असमानताएं, सरकारी राजस्व में भारी गिरावट और राजस्व घाटे में तेज वृद्धि हुई है। इसलिए आबादी का बड़ा हिस्सा कड़ी मेहनत कर रहा है।
यह सब सरकार के 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर पैकेज के बावजूद है। यदि बहुत बड़े पैकेज के बावजूद बड़ी संख्या में बुनियादी समस्याएं बनी रहती हैं तो क्या बजट उन्हें हल करने में मदद कर सकता है? आखिरकार 2020-21 के केंद्रीय बजट में लगभग 30 लाख करोड़ रुपये का खर्च आया। आत्मनिर्भर पैकेज ने बजट व्यय में बहुत कुछ नहीं जोड़ा, क्योंकि इसमें से अधिकतर कर्ज व क्रेडिट थे और कई योजनाएं पहले से बजट योजनाओं के तहत जारी थीं और उन्हें अतिरिक्त आवंटन की आवश्यकता नहीं थी। राजकोषीय घाटे के बढने के बाद से मंत्रालयों द्वारा व्यय में कटौती से भी खर्च वृद्धि संतुलित थी। इसलिए 2020-21 के बजटीय व्यय से आगे के बहुत कम कदम उठाए गए थे।
साल 2021-22 के लिए भी व्यय का आकार मोटे तौर पर समान आकार का होगा। यह देखते हुए कि अर्थव्यवस्था 2020-21 में संकुचित हुई है और जो यह 2019-20 में थी उससे भी कम रहेगी, राजस्व कम रहेगा। इसलिए जबतक सरकार राजकोषीय घाटे में वृद्धि नहीं होने देना चाहेगी तब तक आर्थिक मंदी से पीड़ित नागरिकों के समर्थन में व्यय नहीं बढ सकता है। इसलिए अर्थव्यवस्था के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन और महामारी से पीड़ित के लिए राहत असंभव है। इसके बाद 2020-21 के बजट में यह और अधिका किया जाएगा।
सही संख्या की जरूरत
महामारी और लाॅकडाउन ने बजटीय 2020-21 के लिए बजटीय गणना को को पूरी से बेपटरी कर दिया है।
बजटीय गणना आने वाले वर्ष में अर्थव्यवस्था की अनुमानित वृद्धि पर निर्भर करती है। 2020-21 का बजट 10 प्रतिशत की अनुमानित मामूली वृद्धि पर आधारित था। इसलिए जीडीपी 204 लाख करोड़ रुपये से 225 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद थी। राजस्व एवं व्यय के लिए सभी अनुमानों के अनुसार गणना की गयी थी। इसके बजाय, जीडीपी के पहले उन्नत अनुमानों की आधिकारिक घोषणा के अनुसार - जिसका की बजटीय गणना में उपयोग किया जाता है - इसमें लगभग चार प्रतिशत की मामूली गिरावट की बात कही गयी। इस तरह, जीडीपी 29 लाख करोड़ की गिरावट के साथ संकुचित होकर 196 लाख करोड़ करोड़ रुपये का होगा।
यह इस बात का संकेतक है कि 2020-21 के दौरान राजस्व में कमी आएगी, जिसमें निगम कर, निजी आयकर, सीमा शुल्क और जीएसटी पर्याप्त मात्रा में कम होंगे। पेट्रोलियम पदार्थाें पर ही केवल उत्पाद शुल्क अधिक होगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बावजूद उसकी खुदरा कीमतें काफी बढ गयी हैं। यह कर और गैर कर राजस्व दोनों में गिरावट के कारण ही था कि व्यय में कटौती के बाजवूद नवंबर में राजकोषीय घाटा पहले से ही वार्षिक लक्ष्य के 135 प्रतिशत तक चढ गया था अर्थात यह घाटा 31 मार्च 2021 तक जितना होना चाहिए था उससे 35 प्रतिशत अधिक था। इसलिए निम्न जीडीपी में राजकोषीय घाटा 8.2 प्रतिशत तक जा रहा था। इसे अगर राज्यों और पब्लिक सेक्टर के घाटे से जोड़ें तो यह जीडीपी का 15 प्रतिशत से कम नहीं होगा।
वैकल्पिक आंकड़े
आधिकारिक जीडीपी नंबर समस्याग्रस्त हैं। त्रैमासिक जीडीपी संख्या सीमित आंकड़ों पर आधारित है - कृषि को छोड़कर। यह अर्थव्यवस्था के असंगठित सेक्टर के लिए स्वतंत्र रूप से गणना नहीं करता है। क्वार्टर 1 व क्वार्टर 2 डेटा के लिए प्रेस नोट स्वीकार करता है कि वे सीमित डेटा पर आधारित हैं और संख्या बाद में संशोधित होने की संभावना है। उच्च आवृत्ति डाटा जो सरकार और आरबीआइ उपयोग करते हैं वे संगठित क्षेत्र से हैं। उदाहरण के लिए जीएसटी डाटा अधिकरत संगठित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि पांच इकाइयां 95 प्रतिशत का भुगतान करती हैं। इसी तरह आॅटो बिक्री और हवाई यात्रा संगठित क्षेत्र व स्वनियोजित तबके के कुछ संपन्न वर्गाें को दर्शाता है।
लेकिन, असंगठित क्षेत्र सबसेे अधिक प्रभावित थे और यह कार्यशील पूंजी और अर्थव्यवस्था की मांग के नष्ट होने के कारण जारी रहे। यदि वह सकल घरेलू उत्पाद के आंकडे में शामिल रहता है तो पूरे साल में जीडीपी में 25 प्रतिशत तक की गिरावट होगी। इस प्रकार वर्ष के लिए मात्र जीडीपी मात्र 153 लाख करोड़ रुपये रह जाएगा। तब राजकोषीय घाटा केंद्र के लिए 10.5 प्रतिशत और सार्वजनिक क्षेत्र का साझा घाटा 18 प्रतिशत से कम नहीं होगा।
यह आंकड़ा बढने की संभावना है यदि सरकार ने व्यय को बढाया है। अब जब आधिकारिक दावा है कि अर्थव्यवस्था महामारी के पूर्व स्तर पर काम कर रही है,(क्वार्टर 3 व 4 के ग्रोथ रेट को मामूल रूप से सकारात्मक माना जा रहा है) तो व्यय में वृद्धि होनी चाहिए, लेकिन तब घाटा और बढ सकता है। अगर आत्मनिर्भर योजनाओं के तहत वादे पूरे किए जाते हैं तो खर्च और बढने की संभावना है।
बजट 2021-22
चूंकि किसी भी बजट को मौजूदा वर्ष के संशोधित अनुमानों के आधार पर तैयार किया जाता है, इसलिए वर्ष 2020-21 के सही अनुमान की आवश्यकता है। यदि व्यय और राजस्व के लिए 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान सही नहीं है तो 2021-22 के अनुमान भी गलत होंगे।
एक फरवरी, 2021 को पेश किया जाने वाला बजट वास्तव में शताब्दी बजट होगा, क्योंकि इससे पहले कभी भी जीडीपी और राजस्व संग्रह में इतनी गिरावट नहीं हुई है। इससे पहले कभी भी संशोधित अनुमान बजट के अनुमान के अनुरूप नहीं थे। पूर्व की किसी सरकार के लिए राजकोषीय घाटा कभी इतना अधिक नहीं रहा। 2021-22 का बजट इन सबसे कैसे निबटेगा, वह एक सदी में घटने वाली घटना होगी?
यह देखते हुए कि अर्थव्यवस्था के बड़े घटक (पर्यटन, परिवहन आदि) 2019-20 के स्तर से नीचे हैं और बेरोजगारी उच्च स्तर पर बनी हुई है। 2020-21 में जीडीपी दो साल के पहले अपने महामारी पूर्व के स्तर से कम होगी। वैक्सीन के रोल आउट के बावजूद कई देशों में वायरस के नए प्रकार मिलने से अनिश्चितता है, जो फिर से लाॅकडाउन में धकेल रहा है। भारत में संख्या को देखते हुए टीकाकरण अतिरिक्त 10 महीने से कम में सामूहिक प्रतिरोधक शक्ति नहीं तैयार करेगा, इसलिए सतर्कता जरूरी है।
2021-22 में इन प्रतिकूलताओं और अनिश्चितताओं के बीच शताब्दी बजट में अर्थव्यवस्था को दलदल से बाहर निकालने की जरूरत है। संसाधन की कमी जारी रहेगी, जबकि अर्थव्यवस्था में मांग सृजित करने के लिए व्यय की मांग उच्च स्तर पर रहेगी। इसलिए यदि अर्थव्यवस्था को गति देनी है तो राजकोषीय घाटा उच्च स्तर पर रह सकता है।
आपूर्ति पक्ष की नीतियों को वर्क आउट करने में समय लगता है, जैसा कि 2020-21 में देखा गया है। श्रम विनियमन में बदलाव, सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण और कृषि कानूनों का कड़ा विरोध किया जा रहा है। वे केवल अर्थव्यवस्था को उस दलदल से बाहर निकालने के लिए तत्काल उठाये जाने वाले कदम पर से ध्यान हटा रहे हैं,ं। पांच में से एक कारोबार अपने कर्ज को चुकाने में सक्षम नहीं है और वित्तीय तनाव बना हुआ है। एमएसएमइ क्षेत्र के लिए कर्ज अधिकतर मध्यम दर्ज की इकाइयों और शायद ही वे सूक्ष्म क्षेत्र को मिल रहे हैं। इसलिए असंगठित क्षेत्र लगातार नुकसान झेल रहा है।
मांग सृजन आवश्यक
बजट को मांग में बढावा देने में मदद करनी होगी ताकि उद्योग जिस स्थिति में हैं उससे अधिक व्यापक रूप से पुनर्जीवित हो। हमें यह याद रखने की जरूरत है कि महामारी से पहले ही अर्थव्यवस्था में गिरावट आयी थी और वे केवल बढ गए हैं क्योंकि असमानताएं बढ गयी हैं और असंगठित क्षेत्र में गिरावट जारी है।
बहुत सारे रोजगार पैदा होने और बेरोजगारों के लिए आय का सृजन होने पर मांग बढेगी। इसके लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्ययकता होगी। अन्यथा घाटा केवल एक गुब्बारा होगा जिसका वित्तमंत्री लगातार रेटिंग एजेंसियों के प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं की वजह से प्रतिरोध करती रहीं हैं। व्यापार हितैषी विश्लेषकों और लाॅबी ने धन जुटाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति (जैसे भूमि) के विनिवेश और बिक्री का सुझाव दिया है। लेकिन जब आय कम हो जाती हैं तो इससे परिसंपत्ति की कीमतें कम हो सकती हैं और निवेश का माहौल बिगड़ सकता है।
यह अभूतपूर्व संकट से अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने के लिए शताब्दी अवसर है। अन्यथा, यह संकट से निकलने का रास्ता उपलब्ध कराये बिना यह सिर्फ एक तथ्य होगा कि बजट सबसे प्रतिकूल परिस्थितियों में तैयार किया गया है।
(द वायर में प्रकाशित मूल आलेख से अनूदित।)