कुलपतियों की सियासत में दरभंगा के ऐतिहासिक नरगोना पैलेस का विरासत संकट में
दरभंगा से हर्ष झा की रिपोर्ट
जनज्वार। मिथिलांचल की हृदय स्थली दरभंगा में साल 1972 में स्थापित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय को जमीन और ऐतिहासिक इमारत दरभंगा महाराज डॉ कामेश्वर सिंह द्वारा प्रदत है।
लेकिन दुर्भाग्य है कि इस दौरान कुल 33 शिक्षाविदों ने विश्वविद्यालय में कुलपति के पद को सुशोभित किया, लेकिन किसी ने सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकायों के लिए अलग-अलग भवन बनाने की जरूरत महसूस नहीं की। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि किसी भी विभाग के अध्यक्ष एवं शिक्षक वर्ग के कार्यालय के लिए अपना अलग कमरा नहीं है।
आलम यह है कि यदि पीजी में नाम नामांकित सभी छात्र एक साथ वर्ग में पढ़ने के लिए पहुंच जाएं तो बैठने के लिए अफरा-तफरी मच जाएगी। छात्र-छात्राओं के लिए ना तो कॉमन रूम उपलब्ध हैं और ना पूरे परिसर में पेयजल की सुविधा। लब्बोलुआब यह कि छात्र-छात्राओं को मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं।
इस दौरान हाल के वर्षो में यूजीसी एवं रुसा यानि उच्चतर शिक्षा अभियान से लगभग 25 करोड़ के अनुपयोगी आधे अधूरे बने भवन बनाए गए हैं। वर्तमान कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह ने जब उद्घाटित भवन का निरीक्षण किया तो वे खुद भी भौंचक्क रह गये।
कहा जाता है कि कमीशनखोरी की बुनियाद पर टिके इन भवनों की कथा व्यथा अलग ही है। ना तो इनके लिए राज्य सरकार की निगरानी टीम है और ना यूजीसी की टीम। इन भवनों के निर्माण में हुए गड़बड़झाले की अभी तक कोई जांच नहीं हो सकी है।
दरभंगा के तत्कालीन सांसद व टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने यूजीसी पर व्यापक पैमाने पर राशि के दुरुपयोग की शिकायत की और दबाव बनाया। इसके बाद यूजीसी ने पूर्व कुलपति प्रोफेसर साकेत कुशवाहा के कार्यकाल में अभिलेखों की जांच कर पल्ला झाड़ लिया।
हालत यह है कि ऐतिहासिक नरगोना भवन स्थापना काल से मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के छात्र-छात्राओं की शरण स्थली बनकर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।