Supreme Court : शिक्षा क्षेत्र में एक्सपर्ट की तरह काम नहीं कर सकतीं अदालतें, सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
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Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि कोई भी कानूनी अदालतें शिक्षा क्षेत्र (Education Sector) में एक्सपर्ट की तर्ज पर काम नहीं कर सकती हैं। कोर्ट (Supreme Court) ने आगे कहा कि कि कोई छात्र किसी आवश्यक योग्यता और क्वालिफिकेशन की पात्रता या योग्यता मानदंड को पूरा करता है या नहीं, यह तय करने का अधिकार शैक्षणिक संस्थानों पर ही छोड़ देना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी नौकरी विज्ञापन में दी गई पात्रता और चयन संबंधी शर्तों के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच को खारिज करते हुए की।
जस्टिस एम.आर.शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि कोई अदालत शिक्षा के क्षेत्र में विशेषज्ञ के तौर पर काम नहीं कर सकती है और यह तय करने का काम संस्थानों पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि उम्मीदवार के पास अपेक्षित योग्यता है या नहीं, एक्सपर्ट कमिटी ही इस पर विचार करेगी। बेंच ने कहा कि नौकरी के लिए जारी अधिसूचना विज्ञापन में उल्लेखित शैक्षणिक योग्यता को मानना ही होगा, उससे किनारा नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में झारखंड के हाई स्कूलों में विभिन्न श्रेणियों के तहत अलग-अलग विषयों के लिए पीजीटी के पद पर नियुक्ति के लिए चयन प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी।
बेंच ने आगे कहा कि विज्ञापन के अनुसार उम्मीदवार के पास इतिहास में ग्रेजुएशन/पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री होनी चाहिए। हमने मामले में संबंधित रिट याचिकाकर्ताओं की डिग्रियां और प्रमाण पत्र देखे हैं। ऐसा लगता है कि संबंधित रिट याचिकाकर्ताओं ने इतिहास विषय किसी एक भाग जैसे प्राचीन भारतीय इतिहास, भारतीय प्राचीन इतिहास और संस्कृति, मध्यकालीन/आधुनिक इतिहास, भारतीय प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व आदि में ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की है। कोर्ट ने कहा कि हमारे विचार में इतिहास से जुड़े किसी एक उप विषय में डिग्री प्राप्त करने को समग्र इतिहास में डिग्री प्राप्त करना नहीं कहा जा सकता है।
बेंच ने कहा कि एक शिक्षक को कक्षा में समग्र इतिहास पढ़ाना होता है और उसे सिर्फ इतिहास के भाग की ही जानकारी होगी तो वह क्या और कैसे पढ़ा पाएगा? इस मामले में विज्ञापन में आवश्यक शैक्षणिक योग्यता का विशेष रूप से उल्लेख किया गया था। साथ ही विज्ञापन में दिए गए योग्यता मानदंडों में कोई अस्पष्टता या भ्रम जैसा नहीं है। जांच में पाया गया कि संबंधित रिट याचिकाकर्ता और अपीलकर्ता विज्ञापन के मुताबिक अपेक्षित योग्यता नहीं रखते थे और उसके बाद उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई थी।