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संस्कृति

Prof Manager Pandey Passes Away : हिंदी के मशहूर आलोचक और लेखक मैनेजर पांडेय नहीं रहे, साहित्य जगत में शोक की लहर

Janjwar Desk
6 Nov 2022 3:33 PM IST
Prof Manager Pandey Passes Away : हिंदी के मशहूर आलोचक मैनेजर पांडेय, साहित्य जगत में शोक की लहर
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Prof Manager Pandey Passes Away : हिंदी के मशहूर आलोचक मैनेजर पांडेय, साहित्य जगत में शोक की लहर

Prof Manager Pandey Passes Away : हिंदी साहित्य के मशहूर आलोचक, लेखक, पत्रकार, मार्क्सवादी चिंतक और प्रोफेसर मैनेजर पांडेय का 81 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन के बाद से साहित्य जगत में शोक की लहर है।

Prof Manager Pandey Passes Away : हिंदी साहित्य के मशहूर आलोचक, लेखक और प्रोफेसर मैनेजर पांडेय ( Hindi critic and writer Manager Pandey ) का छह नवंबर को 81 साल की उम्र में निधन ( Manager pandey death ) हो गया। मार्क्सवादी धारा के आलोचनात्मक लेखन के लिए चर्चित मैनेजर पांडेय अपने उत्तेजक और गंभीर आलोचनाओं के लिए जाने जाते हैं। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर व्याप्त है।

सोशल मीडिया पर मैनेजर पांडेय की निधन ( Manager Pandey death ) के बाद से बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार, संपादक, भाषा-साहित्य के अकादमिक जगत, साहित्यिक संगठनों और प्रकाशन संस्थानों से जुड़े लोग शोक जता रहे हैं। सबका कहना है कि मैनेजर पांडेय के निधन से भाषा साहित्य ( Hindi literature ) को जो क्षति पहुंची है उसकी भरपाई संभव नहीं है।

मैनेजर पांडेय साहित्य की दुनिया में लंबी लकीर खींचने में हुए सफल

बिहार के गोपालगंज जिले के लोहटी में मैनेजर पाण्डेय ( Manager pandey) का जन्म 23 सितंबर, 1941 को हुआ था। हिंदी भाषा और साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाने वाले भोजपुरी भाषी मैनेजर पांडेय की उच्च शिक्षा (एमए और पीएचडी) काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई थी। शुरुआत में उन्होंने बरेली कॉलेज और जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( Jawaharlal Nehru University ) नई दिल्ली में हिंदी के प्रोफेसर और भारतीय भाषा केन्द्र के अध्यक्ष भी रहे। अपने अध्यापन के पेशे में भी उन्होंने लंबी लकीर खींचने में सफलता हासिल की थी।

तुलसीदास से प्रेरित थे मैनेजर

देश के लोक जीवन और लोक साहित्य से गहरे ताल्लुक रखने वाले आलोचक मैनेजर पांडेय खुद को तुलसीदास से अधिक प्रेरित और प्रभावित मानते और बताते थे। वहीं उन्होंने भक्त कवि सूरदास पर अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक "भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य" लिखी। वह कहा करते थे तुलसीदास के 'संग्रह-त्याग न बिनु पहिचाने' से उन्होंने अपना आलोचनात्मक विवेक बनाया था। इसके अलावा वह विरोध करने की प्रवृत्ति को लोकतंत्र की आत्मा मानते थे, जिसका पालन वो खुद भी करते थे।

पांडेय की अहम रचनाएं

अगर हम हिंदी साहित्य विधा में मैनेजर पांडेय के मुख्य योगदान की बात करें तो शब्द और कर्म, साहित्य और इतिहास-दृष्टि, भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य, साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका, आलोचना की सामाजिकता, उपन्यास और लोकतंत्र, हिंदी कविता का अतीत और वर्तमान, आलोचना में सहमति-असहमति, भारतीय समाज में प्रतिरोध की परम्परा, साहित्य और दलित दृष्टि, शब्द और साधना, संगीत रागकल्पद्रुम, लोक गीतों और गीतों में 1857, अनभै सांचा आदि शामिल हैं। साक्षात्कार विधा में उन्होंने 'मैं भी मुंह में जबान रखता हूं', संवाद-परिसंवाद, बतकही और 'मेरे साक्षात्कार' जैसी रचनाएं कीं। इन कृतियों के जरिए उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन में शोध और आलोचना की नई कड़ियों को जोड़ने का बेहद ही महत्वपूर्ण काम किया।

Prof Manager Pandey Passes Away : जेएनयू में प्रोफेसर रहे मैनेजर पांडेय को उनके आलोचनात्मक लेखन के लिए समय-समय पर कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इनमें हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'शलाका सम्मान', राष्ट्रीय दिनकर सम्मान, रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी का गोकुल चन्द्र शुक्ल पुरस्कार और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का सुब्रह्मण्य भारती सम्मान आदि शामिल हैं।

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