DDU गोरखपुर में नैक ग्रेडिंग के लिए हजारों फेक ID बनाने का कुलपति प्रो. राजेश सिंह पर बड़ा आरोप, विवि प्रशासन ने दी सफाई
DDU गोरखपुर में नैक ग्रेडिंग के लिए हजारों फेक ID बनाने का कुलपति प्रो. राजेश सिंह पर बड़ा आरोप, विवि प्रशासन ने दी सफाई
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
DDU Gorakhpur : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह एक बार फिर आरोपों के घेरे में हैं। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने कुलपति पर नैक ग्रेडिंग को लेकर बड़ा खेल करने का आरोप लगाया है। प्रोफेसर कमलेश के आरोपों के मुताबिक नैक मुल्यांकन में अच्छे ग्रेड के लिए हजारों विद्यार्थियों की फर्जी ईमेल आईडी तैयार की गई है, जिससे की शैक्षिक व्यवस्था को लेकर लगातार बरती गई लापरवाही व अनियमितता पर पर्दा डालकर बेहतर नैक ग्रेडिंग का ढिंढोरा पीटा जा सके।
प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने यह दावा किया है कि मेरे ये आरोप सही हैं, अगर गलत साबित हुआ तो हर सजा भुगतने को तैयार हूं। इस बीच पहली बार विश्वविद्यालय प्रशासन के तरफ से सफाई आई है, जिसमें आरोपों को बेबुनियाद बताया गया है।
कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलनेवालों में कमलेश गुप्ता का नाम आता है। जिसका खामियाजा भी वे लगातार भुगत रहे हैं। एक वर्ष के अंदर हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्ता दूसरी बार निलंबन का सामना कर रहे हैं। विश्वविद्यालय में शिक्षा परिषद की बैठक, शैक्षिक व गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति, परीक्षा प्रणाली में नियमानुसार कार्य करने के बजाए मनमानी करने का कमलेश गुप्ता कुलपति पर आरोप लगाते रहे हैं। इसको लेकर राजभवन से शिकायत करने पर जांच की प्रक्रिया से विश्वविद्यालय गुजर चुका है। हालांकि प्रो. कमलेश गुप्ता के मुताबिक जांच में भी खेल कर कुलपति को बचाने का कुलाधिपति के ओएसडी ने काम किया।
अब कुलपति पर नैक ग्रेडिंग को लेकर हजारों छात्रों का फर्जी आईडी तैयार करने संबंधित फेसबुक पर पोस्ट डालकर कमलेश ने विश्वविद्यालय को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। प्रोफेसर कमलेश गुप्ता अपने फेसबुक पोस्ट पर कायम रहते हुए कहते हैं कि इसमें कुछ भी गलत हो तो हम सजा भुगतने के लिए तैयार हैं। आरोप के मुताबिक, कुलपति ने नैक मूल्यांकन के लिए दाखिल की गई एसएसआर में अच्छा ग्रेड पाने के लिए ढेर सारे झूठे दावे किए हैं। असत्य और भ्रमपूर्ण तथ्य शामिल करवाए हैं। संभव है, ऐसा कुछ अन्य जगहों पर भी हुआ हो लेकिन हमारे कुलपति जैसा काम किसी और कुलपति ने नहीं किया होगा।
हमारे कुलपति को इस बात की आशंका थी कि विद्यार्थी संतुष्टि सर्वेक्षण में कहीं सच न बोल दें, क्योंकि सच से दावों का पता चल सकता है। इसलिए उन्होंने विद्यार्थियों की वास्तविक ईमेल आईडी देने की जगह उनकी फर्जी ईमेल आईडी तैयार करवा के भिजवा दी है। विद्यार्थियों को उस ईमेल आईडी के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई है, जिससे वह उसका पासवर्ड बदल कर अपने नियंत्रण में उसका इस्तेमाल कर सकें।
इस पोस्ट के मुताबिक उस पर नैक की ओर से ईमेल आए होंगे, जिनका संतोषजनक जवाब विद्यार्थियों की जगह कुलपति द्वारा इस काम के लिए नियुक्त लोगों ने दिए होंगे। विद्यार्थियों को इसकी भनक भी नहीं लगी होगी। कही यह सारी जालसाजी और धोखाधड़ी उजागर न हो जाए इसलिए विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अब तक एसएसआर को अपलोड नहीं करवाया गया है, जबकि एसएसआर अपनी उपलब्धियों का विवरण है, नैक मूल्यांकन करवाने वाली शैक्षणिक संस्थाएं अपनी वेबसाइट पर एसएसआर अपलोड करवाती ही है। यह कोई छिपाने वाली चीज नहीं है। यदि वेबसाइट पर एसएसआर तत्काल उपलब्ध करवा दें तो मेरे आरोपों की पांच मिनट में पुष्टि हो सकती है। अब तक कुलपति के तरफ से कोई खंडन नहीं आने से इन आरोपों को बल मिलनेलगा है। हालांकि खास बात यह है कि गंभीर आरोपों के बाद भी शिक्षक संगठन से लेकर किसी के तरफ से कोई बयान नहीं आया है।
डीडीयू प्रशासन ने प्रो. कमलेश गुप्त द्वारा नैक मूल्यांकन में अच्छे ग्रेड के लिए जालसाजी करने के आरोपों को भ्रामक और तथ्यों से परे बताया है।
आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आईक्यूएसी) के निदेशक प्रो. अजय सिंह ने प्रो. कमलेश के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि नैक मूल्यांकन के निर्णायक समय में प्रो. गुप्त द्वारा सोशल मीडिया पर तथ्यहीन टिप्पणियां कर विश्वविद्यालय को सम्भावित मिलने वाले उच्च नैक ग्रेड को प्रभावित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।
प्रो. सिंह ने कहा कि नैक मूल्यांकन के लिए एसएसआर को तैयार करने का कार्य किसी एक व्यक्ति द्वारा सम्पादित नही किया जाता है। एसएसआर तैयार करने के लिए सात अलग-अलग क्राइटेरिया हैं, जिसके लिए अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं।
टीमों द्वारा सूचनाएं एकत्रित कर नैक के निर्धारित प्रारूप में संकलित किया गया है, जिसे नैक मूल्यांकन के लिए ऑनलाइन सबमिट किया गया है। छात्र संतुष्टि सर्वेक्षण के लिए ऑनलाइन सबमिट किए गए छात्रों के ई-मेल आईडी में से नैक द्वारा रैंडम बेसिस के आधार पर छात्रों के चयनित ई-मेल पर सर्वेक्षण के लिए लिंक दिया जाता है, जिसके माध्यम से छात्र अपने उत्तर नैक को सबमिट करते हैं।
ऐसे होती है नैक ग्रेडिंग
यूजीसी की गाइडलाइन के तहत राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को रेटिंग देती है। यह संस्था यूजीसी का एक हिस्सा है। इसका काम देशभर के विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों, निजी संस्थानों में गुणवत्ता को परखना और उनको रेटिंग देना है। यूजीसी की नई गाइडलाइन के तहत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिएशन काउंसिल से मान्यता प्राप्त करना जरूरी है। अगर किसी संस्थान ने इसकी मान्यता नहीं ली है तो उसे किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
सबसे पहले शिक्षण संस्थान नैक की गुणवत्ता पर खरा उतरने के लिए तैयारी करते हैं। इसके बाद संस्थान नैक ग्रेडिंग के लिए आवेदन करते हैं। आवेदन करने के बाद नैक की टीम संस्थान का दौरा करती है। उसका निरीक्षण करती है। इस दौरान टीम कॉलेज व विश्वविद्यालय में शिक्षण सुविधाएं, नतीजे, इंफ्रास्ट्रक्चर और माहौल का निरीक्षण करती है। इसी आधार पर नैक की टीम अपनी रिपोर्ट तैयार करती है। इससे संस्थान को सीजीपीए दिया जाता है और इसी के आधार पर ग्रेड जारी होते हैं।
संस्थान को 4 साल के लिए ग्रेड दिए जाते हैं। चार साल बाद फिर से रेटिंग दी जाती है। नैक ने अस्थाई ग्रेड देने की भी व्यवस्था की है। इसके तहत 2 साल के लिए ग्रेड दी जाएगी। अगर कोई कॉलेज प्रबंधन या विश्वविद्यालय ग्रेड से संतुष्ट नहीं है तो 6 महीने में कमियों को दूर करके दोबारा निरीक्षण करवा सकता है। लेकिन इसके लिए 10 हजार का शुल्क जमा करना होगा। इसके तहत ये ग्रेड सिर्फ 2 साल के लिए मान्य होगी।
यूजीसी ने ग्रेडिंग पैटर्न बदल दिया है। पहले चार श्रेणियों में कॉलेजों को रखा जाता था। लेकिन अब 8 श्रेणियों में रखा जाने लगा है। अगर सीजीपीए 3.76 से 4 के बीच है तो संस्थान को ए प्लस प्लस ग्रेड मिलता है। इसका मतलब है कि संस्थान सबसे बेहतर है। इसी तरह से सीजीपीए के आधार पर एक प्लस, ए, बी प्लस प्लस, बी प्लस, बी, सी और डी ग्रेड दिए जाते हैं।
नैक रेटिंग से स्टूडेंट्स को शिक्षण संस्थान के बारे में सही जानकारी मिलती है। छात्रों को संस्थान के बारे में शिक्षा की गुणवत्ता, अनुसंधान, बुनियादी ढांचा और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी जानकारी हासिल करने में आसानी होती है। नैक ग्रेडिंग के जरिए छात्र अपने लिए बेहतर कॉलेज तलाश कर सकते हैं। इतना ही नहीं, नैक ग्रेड शिक्षण संस्थानों की दी गई डिग्रियों का मूल्य भी निर्धारित करते हैं।