NEET के खिलाफ क्यों हैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और वहां के नेता?
जनज्वार डेस्क। तमिलनाडु में विधानसभा (Tamilnadu Assembly) में मेडिकल एंट्रेस के लिए नीट (राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा) के विरोध में विधेयक पेश किया गया है। इसके माध्यम से प्रदेश को नीट (NEET) परीक्षा से स्थायी तौर पर छूट देने की मांग सुनिश्चित होगी। परीक्षा देने से पहले एक छात्र ने रविवार को सुसाइड (Suicide) कर लिया था। 19 वर्षीय छात्र घर में मृत पाया गया था। अधिकारियों ने कहा कि परीक्षा में असफल होने के डर से कथित तौर पर आत्महत्या से छात्र की मौत होने का संदेह है क्योंकि यह उसका तीसरा प्रयास था। इस घटना को लेकर प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों के बीच घमासान शुरू हो गया, जिसकी गूंज आज विधानसभा में भी सुनाई दी।
बता दें कि एक दिन पहले ही 19 साल के लड़के ने परीक्षा देने से पहले आत्महत्या कर लेने के बाद से इस मामले ने तूल पकड़ लिया है, जिसकी गूंज विधानसभा तक सुनने को मिली। सोमवार को तमिलनाडु विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक (AIDMK) ने सरकार पर निशाना साधा। वहीं इसके जवाब में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (MK Stalin) ने सामाजिक न्याय (Social Justice) सुनिश्चित करने के लिए नीट को समाप्त करने और बारहवीं कक्षा के अंकों के आधार पर मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रदान करने के लिए एक विधेयक पेश किया।
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष के नेता के. पलानीस्वामी ने रविवार को अपने पैतृक सलेम जिले में 19 वर्षीय धनुष की आत्महत्या से हुई मौत का जिक्र किया और मामले को लेकर सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हालांकि द्रमुक ने नीट रद्द करने का वादा किया था, लेकिन वह अपना वादा पूरा नहीं कर पाई, जिसके चलते कई छात्रों ने अच्छे से तैयारी नहीं की थी। इसके साथ ही उन्होंने धनुष के परिवार के एक व्यक्ति के लिए नौकरी की मांग की है।
छात्र की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए स्टालिन ने कहा कि नीट के खिलाफ हमारा कानूनी संघर्ष अब सरकार की बागडोर संभालने के बाद शुरू होता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी और कर्तव्य है कि वह छात्रों के अच्छे भविष्य का निर्माण करे और इसे महसूस करते हुए उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि केंद्र सरकार नीट को रद्द नहीं कर देती। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार इस मुद्दे पर अपने समकक्षों तक पहुंचकर अन्य सभी राज्यों का समर्थन हासिल करेगी। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वह जीतेंगे।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस साल जून की शुरुआत में पीएम मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि तमिलनाडु को नीट परीक्षा से छूट दी जाए और 12वीं के परिणामों का उपयोग करके एमबीबीएस की सीटें भरने की अनुमति दी जाए। अन्नाद्रमुक ने भी इसी तरह के सुझाव दिए थे। बता दें कि जब पहली बार साल 2012 में नीट परीक्षा की घोषणा की गई थी, तब आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने इसका कड़ा विरोध किया था। इन राज्यों का कहना था कि छात्रों के पाठ्यक्रम में अंतर होने के कारण उनको नुकसान हो सकता है।
तमिलनाडु ने पहले नीट के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति ने पाया था कि नीट के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने वाले छात्रों का प्रदर्शन 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर प्रवेश पाने वालों की तुलना में खराब रहता है। रिपोर्ट ने यह भी बताया कि संपन्न परिवारों के छात्र परीक्षा में बेहतर स्कोर करते हैं।
परीक्षा को रद्द करने की मांग कल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तब बढ़ गई जब मेडिकल प्रवेश परीक्षा में फेल होने के डर से 19 वर्षीय एक छात्र ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। छात्र के निधन के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने कहा कि "नीट को खत्म करने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रहेगी"।
तमिलनाडु के नेता एवं नागरिक परीक्षा की अंतर्निहित प्रकृति के कारण नीट का विरोध करते रहे हैं। नीट की तैयारी वैचारिक शिक्षण, एमसीक्यू की स्मार्ट टैकलिंग, मॉक पेपर के अभ्यास आदि पर आधारित है।
नीट में सफलता प्राप्त करने के लिए अच्छे शिक्षकों की जरूरत होती है ताकि वे संदेहों को दूर कर सकें और अवधारणाओं को अच्छी तरह से पढ़ा सकें, उन्हें अच्छी कोचिंग तक पहुंच की आवश्यकता होती है जो उन्हें एमसीक्यू के साथ तैयार करती है और नियमित रूप से मॉक टेस्ट आयोजित करती है ताकि उन्हें यह दिखाया जा सके कि वे कहां खड़े हैं। यह निरंतर प्रक्रिया छात्रों को उनके ज्ञान और अनुप्रयोग कौशल में कमियों को पहचानने और दूर करने में मदद करती है।
कोचिंग तक किसकी बेहतर पहुंच है? शहर का छात्र या ग्रामीण छात्र? अच्छी कोचिंग, नियमित अखिल भारतीय टेस्ट सीरीज और अच्छी ट्यूशन के लिए कौन भुगतान कर सकता है? अमीर शिक्षित माता-पिता या गरीब अशिक्षित माता-पिता?
तमिलनाडु में पहले की प्रणाली बोर्ड परीक्षा के अंकों के आधार पर अधिक रटने पर केंद्रित थी। लेकिन इस प्रणाली की खूबी यह थी कि यह समानता के आधार पर कार्य करती थी।
यह प्रणाली, हालांकि यह रटकर सीखने को प्रोत्साहित करती थी, ग्रामीण बच्चों और कम विशेषाधिकार प्राप्त बच्चों को एमबीबीएस में प्रवेश करने का एक बेहतर मौका दे रही थी। और इन्हीं बच्चों ने शीर्ष राष्ट्रीय संस्थानों में प्रवेश कर अपनी पीजी प्रवेश परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर अपनी योग्यता साबित की थी। पुरानी प्रणाली के साथ तमिलनाडु ने देश में सबसे अच्छी और मजबूत स्वास्थ्य वितरण प्रणालियों में से एक का निर्माण किया था।