पृथ्वी ने 24 घंटे से 1.9 सेकेंड पहले पूरा किया अपना चक्कर, यही सिलसिला रहा जारी तो दिन में इतना समय करना पड़ सकता है कम
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
29th July 2022 was shortest day in past 60 years. सामान्यतया माना जाता है कि एक दिन 24 घंटों का होता है, पर वैज्ञानिक तौर पर देखें तो इसका समय भी बदलता है। इस वर्ष यानि 2022 को 29 जुलाई का दिन सामान्य से 1.59 मिलीसेकंड छोटा था। पिछले 60 वर्षों से एटॉमिक घड़ी के माध्यम से पृथ्वी को धुरी पर एक पूरा चक्कर मारने का सटीक आकलन किया जा रहा है, और इन 60 वर्षों में 29 जुलाई का दिन सबसे छोटा रहा है। पृथ्वी अपनी धुरी पर जब एक पूरा चक्कर मारती है तब उसे एक दिन कहा जाता है, और पृथ्वी पर पूरा जीवन इसी परिक्रमा के अनुसार विकसित हुआ है।
पिछले कुछ वर्षों से अपेक्षाकृत छोटे दिनों की आवृत्ति तेजी से बढी है। अकेले वर्ष 2020 में ही पिछले 50 वर्षों के सबसे छोटे दिनों में से 28 दर्ज किया गया थे, जिनमें सबसे छोटा दिन 9 जुलाई 2020 को दर्ज किया गया था जो सामान्य से 1.47 मिलिसेकंड कम था। एक दिन यानि 24 घंटों में कुल 86400 सेकंड होते हैं। वर्ष 2022 में भी यह सिलसिला जारी है। 29 जून को सबसे दिन का रिकॉर्ड 26 जुलाई को टूटने के कगार पर आ गया था, जब दिन 1.5 मिलिसेकंड छोटा था।
दिन छोटा हो रहा है, पर पहली प्रतिक्रिया रहती है कि पृथ्वी की धुरी के चक्कर मारने की गति बढ़ गयी होगी, पर वैज्ञानिकों के अनुसार भौगोलिक काल खंड के सन्दर्भ में पृथ्वी को धुरी की परिक्रमा की गति बढ़ती जा रही है। लगभग 1.4 अरब वर्ष पहले एक दिन महज 19 घंटे का ही होता था। इसके बाद से एक दिन की अवधि एक सेकंड के 74000वें भाग प्रतिवर्ष की दर से बढी है, यानि पृथ्वी की गति कम होती जा रही है। पृथ्वी की गति में फेर-बदल का मुख्य कारण चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव है।
संयुक्त राष्ट्र का इन्टरनेशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन वैश्विक स्तर दिन के समय में अंतर की निगरानी करता है। जब एक दिन के समय में एक सेकंड का अंतर आता है, तब यह जून या दिसम्बर के महीने में वैश्विक मानक घड़ी को एक सेकंड तक रोक कर इसे पृथ्वी के धुरी की परिक्रमा के समय के समतुल्य करता है। ऐसा सबसे पहले वर्ष 1972 में किया गया था, फिर वर्ष 2016 में भी यह किया गया था। ऐसी प्रक्रिया दिसम्बर 2022 के लिए भी निर्धारित थी, पर पृथ्वी की गति तेज होने के कारण ऐसा करना संभव नहीं होगा।
पृथ्वी के अन्दर गर्म, पिघला लावा है, सतह पर महादेश हैं जो लगातार स्थान बदलते हैं, ग्लेशियर और ध्रुवों पर बर्फ का आवरण तेजी से पिघल रहा है और महासागरों में पानी का बहाव बढ़ता जा रहा है, पृथ्वी के घेरे हुए सघन गैसों का वायुमंडल है – इनमें से किसी के भी प्रभावित होने पर पृत्वी की गति प्रभावित होती है। नासा के अनुसार वैश्विक जलवायु को प्रभावित करने वाले एलनीनो वाले वर्षों में तेज हवाएं चलती हैं और पृथ्वी की गति कुछ मिलीसेकंड कम हो जाती है। दूसरी तरफ बड़े भूकंप का असर ठीक उल्टा होता है, और पृथ्वी की गति बढ़ जाती है। वर्ष 2004 के भूकंप के बाद हिन्द महासागर में सुनामी आया था, उस समय पृथ्वी की गति 3 माइक्रोसैकेण्ड बढ़ गयी थी। जब पृथ्वी पर व्यापक हलचल होती है और भारी पदार्थ पृथ्वी के केंद्र की तरफ बढ़ते है तब पृथ्वी की गति बढ़ जाती है। जब पृथ्वी के केंद्र से पदार्थ सतह की तरफ आते हैं तब गति कम हो जाती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक पृथ्वी की गति कम होती जा रही थी तब मानक घड़ी को एक सेकंड रोककर दिन के समय को एक सेकंड बढ़ाया गया, पर अब जब दिन छोटे होने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, तब संभव है आगे दिन में एक सेकंड कम करने की नौबत आ जाए। यह भी संभव है कि आज के दौर में जिस तरह वैज्ञानिक भौगोलिक कालखंड में जलवायु और कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता का व्यापक अध्ययन करते है, उसी तरह आने वाले वर्षों में समय का अध्ययन करने लगेंगे।