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पर्यावरण

5 में से 4 भारतीय सालभर रहते हैं प्रदूषण के खतरनाक स्तर के संपर्क में

Janjwar Desk
14 Jun 2021 6:39 AM GMT
5 में से 4 भारतीय सालभर रहते हैं प्रदूषण के खतरनाक स्तर के संपर्क में
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Second Wave के आंशिक लॉकडाउन का वायु प्रदूषण स्तरों पर नहीं हुआ ख़ास असर

इस बार के आंशिक लॉकडाउन का वायु प्रदूषण स्तरों पर नहीं हुआ ख़ास असर, प्रदूषण स्तर को ट्रैक करना ज़रूरी...

जनज्वार। पिछले साल की ही तरह इस साल भी कुछ महीनों से, देश के कुछ हिस्से कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन में रहे हैं, लेकिन इस बार इन पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन का कोई ख़ास सकारात्मक असर नहीं दिखा। वजह रही शायद इनकी टाइमिंग। वायरस की विभीषिका के बाद लॉकडाउन लगाया तो गया, लेकिन आंशिक। तब तक काफ़ी असर हो चुका था।

पिछले साल के लॉकडाउन को यादगार बनाया था बेहतर हुए वातावरण ने, लेकिन बात अगर इस साल के वायु प्रदूषण की करें तो वर्ष 2020 के विपरीत, देश के कई प्रमुख शहरों में प्रदूषण के स्तर न सिर्फ विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की निर्धारित सीमा से ऊपर रहे, बल्कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की निर्धारित सीमा से भी ऊपर रहे। ये ट्रेंड पता चला नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के ट्रैकर से जहाँ प्रदूषण स्तर की लगातार निगरानी डाटा उपलब्ध है।

माना जाता है प्रदूषण सर्दियों की समस्या है, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में गर्मी के समय वायु प्रदूषण का स्तर स्वीकार्य सीमा से ऊपर रहा है, जो आम धारणा के विपरीत है। विशेषज्ञ और स्वास्थ्य पेशेवर न केवल प्रदूषण की मात्रा, बल्कि इसके स्रोतों को भी संबोधित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टॉक्सिकोलजी रिसर्च, लखनऊ में चीफ़ साइंटिस्ट और एनवीरोंमेंटल टॉक्सिकोलॉजी विशेषज्ञ, डॉ जीसी किस्कु का मानना है, "साल 2020 में बेहद सख्त लॉकडाउन लगा था और उसका असर लगभग फौरन ही दिखा पर्यावरण पर। इस साल आर्थिंक रिकवरी के नाम पर न सिर्फ़ ईंधन जलने की गतिविधियां अपेक्षाकृत ज़्यादा हुईं, बल्कि लॉकडाउन भी आंशिक रूप से लगा। यही वजह रही कि एयर क्वालिटी में वैसा सुधार नहीं देखने को मिला जो पिछले साल था।"

डॉ किस्कु ने हाल ही में लखनऊ की एयर क़्वालिटी का प्री मानसून असेसमेंट किया और पाया कि प्रदूषण के स्तरों में कोविड के पहले के आंकड़ों के मुक़ाबले भले ही कुछ कमी हो, लेकिन वो अब भी मानकों से ज़्यादा हैं। बल्कि इस साल तो स्तर पिछले साल से ज़्यादा ही थे। वो आगे कहते हैं, "इस सबका कुल बढ़िया असर ये हुआ कि इस साल गर्मी ना के बराबर महसूस हुई क्योंकि लॉकडाउन और कम हुई ईंधन खपत का मिश्रित प्रभाव देखने को मिला, लेकिन सही नीतिगत फैसले लेना जरूरी है जिससे स्थिति में सुधार होता जाए।"

सेंटर फॉर बॉयोमेडिकल रिसर्च, लखनऊ के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन भी प्रदूषण के इन आंकड़ों को देख चिंतित दिखे। उन्होंने कहा, "प्रदूषण का सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है और पिछले साल जो उम्मीद बंधी थी, वो इस साल टूटती महसूस हुई। यह वक़्त है कुछ ठोस फैसलों का जिससे जनहित में पर्यावरण का सतत संरक्षण हो।"

स्वास्थ्य के हवाले से चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन, पुणे के पूर्व निदेशक और पल्मोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन (PURE) (प्योर) फाउंडेशन के संस्थापक डॉ सुंदीप साल्वी कहते हैं, "महामारी के बीच, जैसे-जैसे लोग प्रदूषित हवा में सांस लेना जारी रखते हैं, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अतिसंवेदनशील और कमज़ोर होते जाती है और उन्हें कोविड-19 वायरस के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है।"

समस्या के एक महत्वपूर्ण पहलू पर रोशनी डालते हुए सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डॉ संतोष हरीश ने कहा, "हम वायु प्रदूषण के बारे में तभी बात करते हैं जब वे सर्दियों के दौरान उत्तर भारत में ज़हरीले स्तर तक पहुंच जाते हैं, लेकिन पांच में से कम से कम चार भारतीय सालभर प्रदूषण के खतरनाक स्तरों के संपर्क में रहते हैं। राष्ट्रीय मानकों से अधिक वायु प्रदूषण के स्तर के नियमित जोखिम को कम करने के लिए पूरे वर्ष और देशभर में निरंतर सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है।"

सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च ऑन क्लीन एयर (CERCA) (सीईआरसीए), आईआईटी दिल्ली के समन्वयक, डॉ सग्निक डे, प्रदूषण स्तरों की लगातार मोनिटरिंग और मिटिगेशन प्लानिंग पर ज़ोर देते हुए कहते हैं, "वायु प्रदूषण एक मौसमी समस्या नहीं है और इसलिए मिटिगेशन के लिए दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है जो नॉन अटेन्मेंट सिटीज़ के वर्तमान स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं में भी ग़ायब है। समस्याओं को प्राथमिकता देना, समयसीमा और संसाधनों की पहचान करना और जवाबदेही तय करना महत्वपूर्ण है। हर कोई सर्दियों के दौरान उच्च प्रदूषण के स्तर पर चर्चा करता है और फ़सल जलने से होने वाले उत्सर्जन पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन हमें परिवहन, उद्योग और कई अन्य स्रोतों से उत्सर्जन को भी प्राथमिकता देने और कम करने की आवश्यकता है। 2020, कोविड -19 लॉकडाउन के वर्ष में प्रदूषण सबसे कम था, लेकिन स्तर फिर भी WHO (डब्ल्यूएचओ) की वार्षिक सुरक्षा सीमा 10 ug/m3 से लगभग तीन गुना अधिक रहा था।"

यहां नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) का ज़िक्र ज़रूरी है। NCAP के तहत, सरकार का लक्ष्य भारत के पार्टिकुलेट मैटर (PM)(पीएम) वायु प्रदूषण को 30% तक कम करना है।

अच्छी बात यह है कि अब प्रदूषण के स्तरों पर नज़र बनाये रखने के लिए NCAP का ट्रैकर उपलब्ध है। इस ट्रैकर में डाटा संकलन और मूल्यांकन के माध्यम से प्रदूषण स्तरों पर नज़र बनाये रखना सम्भव हुआ है। ट्रैकर का डाटा सोर्स है सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का कंटीन्यूअस एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग (CAAQMS) डैशबोर्ड। पिछले कुछ महीनों में देश और महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में प्रदूषण के स्तर एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं।

ट्रैकर की इस सुविधा के साथ, अब ये देखना होगा कि इसके आंकड़े नीति निर्माण में कितना योगदान देते हैं।

-Climate kahani

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