अडानी का हुआ लंदन में जमकर विरोध, जब तक साइंस म्यूजियम से जुड़ा है अडानी का नाम, नहीं रखेंगे छात्र वहां कदम
अडानी का हुआ लंदन में जमकर विरोध, जब तक साइंस म्यूजियम से जुड़ा है अडानी का नाम, नहीं रखेंगे छात्र वहां कदम
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Adani Green Energy is sponsoring at London Science Museum and science teachers threaten to boycott events at Museum. लन्दन के प्रतिष्ठित साइंस म्यूजियम (Science Museum, London) में इन दिनों विज्ञान प्रदर्शनी चल रही है| इसमें लन्दन और यूनाइटेड किंगडम के दूसरे इलाकों के अनेक विद्यालयों से छात्र अपने शिक्षकों या शिक्षाविदों के साथ आते हैं| साइंस म्यूजियम से अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक भी जुड़े हैं, जो अपने शोध से सम्बंधित मॉडल का प्रदर्शन करते हैं और छात्रों को इसके बारे में बताते हैं| यह साइंस म्यूजियम पूरी दुनिया में विख्यात है, और अनेक प्रायोजक इससे जुड़ कर अपना गौरव बढाते हैं और बाजार भी|
पर, हाल के वर्षों में साइंस म्यूजियम पर यह दबाव बढ़ता जा रहा है कि सभी प्रायोजक ऐसे हों जिनपर कम से कम जलवायु परिवर्तन को बढाने का आरोप नहीं लगा हो| जाहिर है, पेट्रोलियम और कोयले से सम्बंधित कम्पनियां इस दायरे में आती हैं| दूसरी तरफ ऐसी कम्पनियां यहाँ प्रायोजकों की सूचि में सबसे आगे रहती हैं| इससे कंपनियों को यह फायदा रहता है कि साइंस म्यूजियम से जुड़कर उनपर लगा पर्यावरण विनाश का धब्बा कुछ हद तक कम हो जाता है|
गौतम अडानी का कारोबार जितना कोयला उत्खनन, कोयले का व्यापार और कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं में है लगभग उतना ही अब गैर-परम्परागत उर्जा स्त्रोतों, विशेषकर सौर उर्जा में हो चला है| गैर-परम्पारगत उर्जा स्त्रोतों का काम अडानी ग्रीन एनर्जी के नाम से किया जाता है| अडानी पूरी दुनिया में इसी कंपनी के नाम से अपने आप को नवीनीकृत उर्जा का चैम्पियन साबित करते हैं| जाहिर है वे यह साबित करना चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रति वे कितने गंभीर हैं|
दूसरी तरफ पूरी दुनिया उनके कोयले के कारोबार के बारे में जानती है, दुनिया को यह भी पता है कि अडानी के कोयले का कारोबार केवल भारत में ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया तक फैला है| उन्होंने केवल भारत में पर्यावरण का विनाश नहीं किया है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया तक उनके चर्चे हैं|
लन्दन के साइंस म्यूजियम में अगले वर्ष एक नई गैलरी, उर्जा क्रांति गैलरी (Energy Revolution Gallery), शुरू की जाने वाली है, जिसके प्रायोजक अडानी ग्रीन एनर्जी है| साइंस म्यूजियम और अडानी के रिश्ते का विरोध शुरू से किया जा रहा है| दिसम्बर 2021 में म्यूजियम में दुनियाभर के वनवासी या मूल निवासी पर्यावरण बचाने की गुहार लेकर एकत्रित हुए थे| इन लोगों ने भी अडानी के साथ सम्बन्ध ख़त्म करने का आग्रह किया था|
अभी जब साइंस म्यूजियम में विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है, तब यूनाइटेड किंगडम के बहुत सारे स्कूलों के विज्ञान अध्यापक इसका बहिष्कार कर रहे हैं, और छात्रों को इस प्रदर्शनी में नहीं ला रहे हैं| एक ओपन लैटर के माध्यम से 400 से अधिक विज्ञान शिक्षकों और शिक्षाविदों ने साइंस म्यूजियम से मांग की है कि अडानी से रिश्ते तत्काल प्रभाव से ख़त्म किया जाएँ| साथ ही धमकी भी दी है, जब तक अडानी का नाम साइंस म्यूजियम से जुड़ा है, शिक्षक छात्रों को लेकर म्यूजियम नहीं आयेंगे|
लन्दन स्थित हैरिस वेस्टमिन्स्टर स्कूल के विज्ञान अध्यापक इयान मैकदेर्मोट (Ian McDermott) पिछले 25 वर्षों से अपने छात्रों को साइंस म्यूजियम लाते रहे हैं| उन्होंने कहा है कि अडानी जैसे व्यापारी जलवायु परिवर्तन में अपने योगदान को दुनिया की नज़रों से ओझल करने के लिए साइंस म्यूजियम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों का सहारा लेते हैं|
कोर्ब्रिद्ज शील्ड स्कूल की विज्ञान अध्यापिका मेरील बत्चेल्डर (Meryl Batchelder) ने कहा है कि बच्चों को हम कार्बन उत्सर्जन कम करने के बारे में पढ़ाते हैं, इसे हम हम अपने जीवन में उतारने को कहते हैं, फिर ऐसे जगह कैसे बच्चों को ला सकते हैं जहां वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का लगातार उत्सर्जन करने वाले व्यापारी अपना दाग धुलने के लिए पैसा लगा रहे हैं| अडानी दुनिया में कोयले के सबसे बड़े व्यापारियों में एक हैं, यह दुनिया जानती है|
म्यूजियम के डायरेक्टर इयान ब्लात्च्फोर्ड (Ian Blatchford) ने कहा है कि पेट्रोलियम पदार्थों या कोयले का कारोबार करने वालों का सामाजिक बहिष्कार नहीं किया जा सकता है और आगे भी यदि ऐसी कम्पनियां प्रायोजित करने को आगे आती हैं तब वे मदद लेते रहेंगे|
वर्ष 2021 के अक्टूबर में पूर्व निदेशक क्रिस राप्ले (Chris Rapley) ने ऐसे प्रायोजकों का विरोध करते हुए अपना पद छोड़ दिया था और अब वे भी विरोध में उतरे शिक्षकों का समर्थन कर रहे हैं| नवम्बर 2021 में 40 वैज्ञानिकों, जिसमें कुछ नोबेल पुरस्कार विजेता भी थे और कुछ इन्टरगवर्नमेंटल पैनल ओं क्लाइमेट चेंज से भी जुड़े थे, ने पत्र लिख कर साइंस म्यूजियम को पेट्रोलियम और कोयले के कारोबारियों से सहायता नहीं लेने की अपील की थी| दो नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों ने अपने काम को म्यूजियम में प्रदर्शित करने से मना कर दिया|