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पर्यावरण

सर्वे : ज्वालामुखी विस्फोटों से उतना प्रदूषण नहीं हुआ जितना की इंसान ने फैला दिया

Janjwar Desk
20 Sep 2020 4:27 PM GMT
सर्वे : ज्वालामुखी विस्फोटों से उतना प्रदूषण नहीं हुआ जितना की इंसान ने फैला दिया
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 File photo

पृथ्वी पर जीवन आने के बाद से कार्बन के पृथ्वी की प्रक्रियाओं में भागीदारी की अहमियत बहुत अधिक और संवेदनशील हो गई थी, इसका सीधा असर मानवीय जीवन पर दिखाई देने लगा है, आलम यह है कि इस कार्बन उत्सर्जन से कई प्रक्रियाएं ऐसे स्तर पर पहुंच गई हैं जिनका वापस पूर्व स्थिति में पहुंचना नामुमकिन है, ग्रीन लैंड में हिमचादर का पिघलना प्रमुख उदाहरण है.....

जनज्वार। मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी पर जितना कार्बन का उत्सर्जन हुआ है, वह प्राकृतिक तौर पर ज्वालामुखी विस्फोटों से हुए उत्सर्जन से कई गुणा ज्यादा है। ताजा शोध में यह बात सामने आई है। आज मानवीय गतिविधियों के कारण कार्बन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तनों का कारक बन गया जिससे पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग जैसे नतीजे मिल रहे हैं। ताजा अध्ययन से पता चला है कि बहुत पहले जब पृथ्वी पर आज के कार्बन उत्सर्जन जैसे हालात थे, तब ज्वालामुखियों ने बड़ी मात्रा में महासागरों में कार्बन छोड़ा था लेकिन आज के मानवीय कार्बन उत्सर्जन तब के उत्सर्जन से कहीं ज्यादा हैं।

पृथ्वी पर जीवन आने के बार से कार्बन के पृथ्वी की प्रक्रियाओं में भागीदारी की अहमियत बहुत अधिक और संवेदनशील हो गई थी। इसका सीधा असर मानवीय जीवन पर दिखाई देने लगा है। आलम यह है कि इस कार्बन उत्सर्जन से कई प्रक्रियाएं ऐसे स्तर पर पहुंच गई हैं जिनका वापस पूर्व स्थिति में पहुंचना नामुमकिन है। इसें ग्रीन लैंड में हिमचादर का पिघलना प्रमुख उदाहरण है।

इस शोध में साफ तौर पर बताया गया है कि मानवीय कार्बन उत्सर्जन आज तक प्राकृतिक तौर पर भी इतना नहीं हुआ। जितना उस दौर में ज्वालामुखियों ने हजारों सालों तक महासागरों में कार्बन पहुंचाया है वह मानवीय कार्बन उत्सर्जन के आसपास तक नहीं है। अध्ययन के मुताबिक इंसान अब तीन से आठ गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन कर रहा है।

इस अध्ययन की पड़ताल प्रसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लैमोन्ट डोहेर्टी अर्थ ऑबजर्वेटरी के शोधकर्ताओं ने 5.56 करोड़ साल पुरानी महासागरीय स्थितियों का अध्ययन किया। इस काल को पैलेओसीन-इयोसीन थर्मल मैक्जिमम के नाम से जाना जाता है।

इस युग से पहले पृथ्वी बहुत ज्यादा गर्म थी। आज जितनी है उससे भी ज्यादा। बढ़ते कार्बन स्तरों ने PETM काल में ताबमान 5 से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा रखा था। महासागरों में विशाल मात्रा में कार्बन जमा हो गया था जिसकी वजह से उसका पानी अम्लीय हो गया था। इससे बहुत सी समुद्री प्रजातियां खत्म हो गई थीं।

PETM काल के बारे में वैज्ञानिक काफी पहले से जानते है। लेकिन अब तक उन्हें इसके कारणों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं थी। ज्वालामुखी के अलावा और भी मत सामने आए जिसमें PETM काल में कार्बन की मात्रा बढ़ने की व्याख्या दी गई, जिसमें जमी हुई मीथेन के अचानक घलने से लेकर धूमकेतु के पृथ्वी से टकराव तक शामिल है। शोधकर्ता इस का कारण भी पता नहीं पा रहे थे कि वायुमंडल में कार्बन की मात्रा कितनी और कैसे बढ़ी थी। इसका जवाब ज्वालामुखी सिद्धांत से ही मिल रहा है।

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