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पर्यावरण

Dehradun News : हिमालय की तलहटी के हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट बनेंगे बड़े विनाश की वजह, पर्यावरणविदों ने फिर चेताया

Janjwar Desk
17 April 2022 9:21 PM IST
Dehradun News : हिमालय की तलहटी के हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट बनेंगे बड़े विनाश की वजह, पर्यावरणविदों ने चेताया
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Dehradun News : हिमालय की तलहटी के हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट बनेंगे बड़े विनाश की वजह, पर्यावरणविदों ने चेताया

Dehradun News : प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि केंद्रीयकृत सत्ता के चलते विकास के मॉडल पर न तो स्थानीय लोगों की कोई राय ली जाती है और न ही उनके हित-अहित पर कोई चर्चा होती है.....

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Dehradun News : विकसित होती हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं में बन रहे बांध, चौड़ी सड़क व हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के विकास के नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के विनाश की पटकथा तैयार करने वाले मील का पत्थर साबित होंगे। यह निष्कर्ष रविवार को देहरादून (Dehradun) के प्रेस क्लब में दून पीपुल्स प्रोगेसिव क्लब द्वारा आयोजित "उत्तराखण्ड में कटते जंगल विकास या विनाश?" विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी के दौरान विषय विशेषज्ञों की सम्मिलित राय से निकला।

पीयूष व पुष्पम के संयुक्त संचालन में आयोजित इस गोष्ठी में प्रदेश भर से आए लोगों ने हिस्सा लिया। सिटीजन फ़ॉर ग्रीन दून (Citizen For Green Doon) के हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि ऑल वेदर रोड प्रदेश में आपदाओं (Disasters) को खुला आमंत्रण हैं। इनके लिए कटने वाले जंगल व रोड कटिंग के मलवे के लिए कोई नीति न होने के कारण प्रदेश में आपदाओं व भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ौतरी हो रही है। देहरादून जैसा शहर बीते बीस सालों में ही विश्व के तीस और भारत के दस सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो गया है।

''पेड़ों को बचाना ज्यादा जरूरी है बजाए उन्हें एक जगह से दूसरी जगह प्रतिस्थापित करने के। प्रतिस्थापित होने वाले पेड़ों की कुल संख्या का दस प्रतिशत ही ही नए वातावरण में अपने आप को ढालकर बचा पाता है। शेष नब्बे प्रतिशत पेड़ नष्ट हो जाते हैं। पौधे को पेड़ बनने में जो समय लगता है, पेड़ काटने पर उसकी भरपाई नहीं हो सकती। अरोड़ा ने कहा कि मैदान के जिस विकास मॉडल को बिना किसी समझ के पहाड़ में लागू किया जा रहा है, वह कारपोरेट के हित का मॉडल है। पहाड़ को तो विनाश के रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।''

(डॉ. हेमन्त ध्यानी)

गंगा आह्वान के डॉ. हेमंत ध्यानी ने स्लाइड शो के माध्यम से उत्तराखण्ड के तमाम विकास की पोल खोलते हुए कहा कि पर्यावरण हमारी सरकारों के लिए कोई मुद्दा नहीं है। नीति आयोग सुप्रीम कोर्ट में खुद स्वीकार करता है कि उत्तराखण्ड के 60 प्रतिशत जल स्रोत सूखने की कगार पर हैं। ऑल वेदर रोड ने प्रदेश में दो सौ नए भूस्खलन पॉइंट डेवलप कर दिए हैं। नमी खत्म होने से जंगलों की आग का दायरा और सीजन बढ़ रहा है। ब्लैक कार्बन का दबाव ग्लेशियर पर बढ़ रहा है। नतीजा ग्लेशियर के पिघलने के रूप में सामने आ रहा है। लेकिन सरकार की शह पर बुग्यालों तक में भव्य शादी-विवाह का अड्डा बनाया जा रहा है। मौज-मस्ती के पर्यटन को बढ़ावा देकर डिजास्टर पर्यटन स्थापित किया जा रहा है। ऐसे में यह विकास की नीति नहीं बल्कि डिजास्टर की रेसिपी जनता पर थोपी जा रही है।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि केंद्रीयकृत सत्ता के चलते विकास के मॉडल पर न तो स्थानीय लोगों की कोई राय ली जाती है और न ही उनके हित-अहित पर कोई चर्चा होती है। फैक्ट-तथ्य-सबूतों के साथ पर्यावरण के दुष्प्रभाव की लड़ाई मजबूती से लड़नी होगी। पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एसपी सती ने हैरतअंगेज खुलासा करते हुए कहा कि भारत विश्व का इकलौता देश है, जिसके पास अपनी नदियों का प्राईमरी कांवेंसिंग डाटा तक उपलब्ध नहीं है। किस नदी का किस सीजन में किस क्षेत्र में वाटर फ्लो, वाटर रिचार्ज क्या है, किसी को कुछ नही पता। लेकिन सारी परियोजनाएं नदियों पर धड़ल्ले से चल रही हैं।

इन परियोजनाओं के लिए भी तमाम पहलुओं की अनदेखी करने के बाद जो आधे-अधूरे नियम बनाए भी गए हैं, उन तक का क्रियान्वयन इन परियोजनाओं में नहीं किया जा रहा है। कोई केवल नियमो को ही लागू करने की बात उठा दे तो उसे विकास विरोधी करार दिए जाने का नया फैशन प्रकृति के शत्रुओं में चलन में आ गया है। पर्यावरण बचाने की लड़ाई लड़ने वालों को सरकारी पुरुष्कार मिलने पर प्रोफेसर सती ने कहा कि भारत में ऐसे सभी पुरुस्कार केवल लाइजनिंग के लिए दिए जाते हैं। सरकार पर्यावरण हित की लड़ाई कमजोर करने के लिए ही इन पुरुष्कारों को बढ़ावा देकर खुले हाथ से बांटती है। इससे वास्तव में पर्यावरण की लड़ाई लड़ने वालों को सरकार के साथ-साथ ऐसे पुरुस्कारवादी पर्यावरणविदों से भी लड़ना पड़ता है।

उत्तराखण्ड किसान सभा के महासचिव गंगाधर नौटियाल ने जंगलों पर होने वाले हमले को डेमोक्रेसी पर ही हमला बताते हुए कहा कि अभी पर्यावरण खतरे की जो बात हमें बेहद मामूली और पर्यावरण तक ही सीमित दिख रही है, वह आगे आने वाले समय में बड़ी राजनैतिक उथलपुथल की भी वजह बन सकता है।

इस दौरान गोष्ठी में देहरादून प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष योगेश भट्ट, दिनेश शास्त्री, गुणानंद जखमोला, दीपक फर्सवाण, त्रिलोचन भट्ट, हल्द्वानी से संजय रावत, अमित सिंह चुफाल सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

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