Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

क्या आप जानते हैं पानी की कमी और दूषित पानी विकलांगों की संख्या में बढ़ोत्तरी का है एक बड़ा कारण !

Janjwar Desk
29 May 2024 4:18 PM GMT
क्या आप जानते हैं पानी की कमी और दूषित पानी विकलांगों की संख्या में बढ़ोत्तरी का है एक बड़ा कारण !
x

file photo

जल की कमी से कृषि उत्पादन कम हो सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है। बिजली उत्पादन कम हो सकता है, जिससे बिजली की कमी हो सकती है, स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं, क्योंकि लोग स्वच्छ पानी तक पहुंच खो सकते हैं, इन समस्याओं का विकलांगता पर भी सीधा प्रभाव पड़ सकता है....

दीपमाला पाण्डेय की टिप्पणी

Water crisis : पानी जीवन का आधार है। यह एक सरल सत्य है जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं। अमूमन मेहमानों के घर आने पर सबसे पहले पानी पिलाना हमारी परंपरा भी है और आजकल तो मौसम की जरूरत भी है। अक्सर यह देखा गया है कि पानी पूरा गिलास पिया नहीं जाता और वह जूठा आधा भरा गिलास सिंक में खाली कर दिया जाता है। हम भी कई बार आदतन गिलास भर पानी लेकर छोड़ देते हैं। यदि कोई व्यक्ति रोजाना आधा गिलास पानी बर्बाद करता है, तो इसका मतलब है कि प्रतिदिन 90 मिलीलीटर पानी बर्बाद होता है। एक वर्ष में, यह जुड़कर: 90 मिलीलीटर/दिन × 365 दिन/वर्ष = 32,850 मिलीलीटर या 32.85 लीटर पानी बर्बाद होगा। इसका परिप्रेक्ष्य देने के लिए, 32.85 लीटर निम्नलिखित के बराबर है: 1/3 एक मानक बाथटब का 657 मानक पीने के गिलास किसी व्यक्ति के 9 दिन के पीने के पानी के बराबर है।

हालांकि यह एक छोटी मात्रा लग सकती है, लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि पानी एक कीमती संसाधन है। रोजाना थोड़ी मात्रा भी बर्बाद करने से समय के साथ यह काफी बढ़ सकती है। नल बंद रखना जब उपयोग में न हो, रिसाव को तुरंत ठीक करना, और दैनिक गतिविधियों में पानी के उपयोग के प्रति सजग रहना पानी की बर्बादी को कम करने में मदद कर सकता है।

ध्यान रहे कि भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 2001 में 1816 घनमीटर से घटकर 2011 में 1545 घनमीटर हो गई है और 2021 में यह 1486 घनमीटर होने की उम्मीद है। इससे पता चलता है कि भारत को अधिक जल तनाव का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें उपलब्धता 1700 घनमीटर के नीचे है, जो जल तनाव का संकेत है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार ने नल के पानी की पहुंच में सुधार किया है, 2022 तक 51.96% ग्रामीण परिवारों के पास नल का पानी है। हालांकि, 1.54% ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जल गुणवत्ता की समस्याएं हैं, परंतु क्या यह आंकड़े सिर्फ जल संसाधन की उपलब्धता या स्वच्छ पेयजल के बढ़ते तनाव की तरफ इंगित कर रहे हैं या कुछ ऐसा भी है जो अनदेखा है। आइये नजर डालते हैं एक और महत्वपूर्ण बात पर।

क्या आप जानते हैं कि पानी की कमी या खराब गुणवत्ता समाज में दिव्यांगजनों की संख्या में वृद्धि का एक प्रमुख कारण बन सकती है?आप सोच रहे होंगे कैसे। दरअसल इन दोनों बातों में यह संबंध कई स्तरों पर है:

गर्भवती महिलाओं में पानी की कमी

पर्याप्त पानी न पीने से गर्भवती महिलाओं में एमनियोटिक द्रव कम हो सकता है, जिससे भ्रूण को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इससे मस्तिष्क क्षति, जन्म दोष और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।

बच्चों में पानी की कमी

बच्चों को वयस्कों की तुलना में अधिक पानी की आवश्यकता होती है। पानी की कमी से बच्चों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है, जिससे जन्म के समय उनका वजन और आकार कम हो सकता है।

दूषित पानी से होने वाली बीमारियां

दूषित पानी से कई बीमारियां हो सकती हैं, जिनमें टाइफाइड, हेपेटाइटिस, डायरिया और पोलियो शामिल हैं। इन बीमारियों से शारीरिक और मानसिक विकलांगता हो सकती है।

माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव

माइक्रोप्लास्टिक हार्मोन गतिविधि को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे मस्तिष्क विकास, IQ स्कोर में कमी और बच्चों में अन्य विकास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिवर्तन से सूखे और बाढ़ जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं। इन आपदाओं से लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है, जिससे उनका स्वास्थ्य और शिक्षा प्रभावित हो सकती है। यह केवल शुरुआत है। जल संरक्षण की प्रासंगिकता को समझने के लिए हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर भी विचार करना होगा।

जलवायु परिवर्तन के कारण

तापमान बढ़ रहा है, जिससे पानी का वाष्पीकरण बढ़ रहा है। वर्षा पैटर्न बदल रहे हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाएं हो रही हैं। हिमनद और बर्फ की चादरें पिघल रही हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। इन सभी कारकों का जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

जल की कमी से कृषि उत्पादन कम हो सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है। बिजली उत्पादन कम हो सकता है, जिससे बिजली की कमी हो सकती है। स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं, क्योंकि लोग स्वच्छ पानी तक पहुंच खो सकते हैं। इन समस्याओं का विकलांगता पर भी सीधा प्रभाव पड़ सकता है।

उदाहरण के लिए कुपोषण, जो जल की कमी से जुड़ा है, मस्तिष्क विकास को प्रभावित कर सकता है और सीखने की विकलांगता का कारण बन सकता है। संक्रामक रोग, जो दूषित पानी से फैलते हैं, शारीरिक और मानसिक विकलांगता का कारण बन सकते हैं। इसलिए जल संरक्षण केवल पर्यावरणीय चिंता का विषय नहीं है, यह सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों का भी मुद्दा है। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना होगा कि सभी के लिए स्वच्छ और सुरक्षित पानी उपलब्ध हो।

(लेखिका बरेली के एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाचार्या हैं और दिव्यांग बच्चों को शिक्षा और समाज की मुख्यधारा में लाने के अपने प्रयासों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम में भी शामिल हो चुकी हैं।)

Next Story

विविध