तापमान वृद्धि से बढ़ रही है दिन की लम्बाई, अध्ययन में हुए चौंकाने वाले खुलासे में वैज्ञानिकों ने दी गंभीर चेतावनी !
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Global warming is increasing day length and it may disrupt internet traffic, financial transactions and GPS Navigation. हरेक दिन तापमान वृद्धि के नए प्रभाव सामने आ रहे हैं तो दूसरी तरफ ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े स्त्रोत, जीवाश्म ईंधनों, के उत्पादन और उपयोग में वृद्धि होती जा रही है। जीवाश्म ईंधन के उत्पादन से जुड़े देश ही अब संयुक्त राष्ट्र के कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का आयोजन करने लगे हैं और जलवायु परिवर्तन रोकने की नीतियाँ बनाने लगे हैं।
पेट्रोलियम उत्पादकों की लॉबी इन आयोजनों में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जाहिर है दुनियाभर के वैज्ञानिकों की तमाम चेतावनियों और पश्चिमी देशों में इन उत्पादकों के विरुद्ध लगातार चलते जन-प्रदर्शनों के बाद भी पेट्रोलियम का कारोबार निर्बाध गति से बढ़ रहा है। अलबत्ता, पेट्रोलियम उत्पादक देश और कम्पनियां अपने विरोध में उठ रही आवाजों को कभी आन्दोलनकारियों के दमन के माध्यम से तो कभी पैसे के बल पर शांत कर देती हैं।
इस बार का जलवायु परिवर्तन रोकने से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का आयोजन पेट्रोलियम उत्पादक देश, अजरबैजान में किया जा रहा है। पेट्रोलियम कंपनियों के मालिक इसके आयोजन समिति में हैं। पेट्रोलियम कंपनियों पर अपना उत्पादन कम करने के बढ़ते दबाव के बीच, कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज की आयोजन समिति ने क्लाइमेट फाइनेंस एक्शन फण्ड बनाने का फैसला लिया है, जिसका मुख्यालय अजरबैजान की राजधानी बाकू में होगा। इस फण्ड में पेट्रोलियम उत्पादक देश और कम्पनियां स्वेच्छा से आर्थिक योगदान करेंगी और फिर इस फण्ड से किसी भी विकासशील देश की मदद जलवायु परिवर्तन की मार से बचाने के लिए की जा सकेगी। इस फण्ड का शुरुआती लक्ष्य 1 अरब डॉलर रखा गया है।
इस फण्ड की स्थापना का आधार वही है, जिससे चरम पूंजीवाद दुनिया को लूट रहा है और इस लूट से मुनाफ़ा कमाने में व्यस्त है। यह एक सामान्य सा मनोविज्ञान है कि जिस भी देश में इस फण्ड से धन पहुंचेगा, कम से कम वह देश पेट्रोलियम उद्योग का विरोध नहीं करेगा। अफ्रीका और प्रशांत क्षेत्र के अनेक छोटे और गरीब देशों का जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि में योगदान नगण्य है, पर इन देशों पर इसका प्रभाव जानलेवा है। इन देशों की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं है कि वे तापमान वृद्धि की चुनौती का अपने बलबूते पर सामना कर पायें।
अफ्रीकी देशों में तापमान वृद्धि के कारण पिछले कई वर्षों से सूखा पड़ रहा है, जबकि प्रशांत क्षेत्र के देशों के बढ़ते सागर तल के कारण पूरी तरह जलमग्न होने का खतरा है। इन सारी समस्याओं का प्रमुख कारण तापमान वृद्धि है और तापमान वृद्धि का मुख्य कारण जीवाश्म ईंधनों का उत्पादन और उपयोग है। अजरबैजान द्वारा फण्ड की घोषणा के बाद पेट्रोलियम उत्पादक देश और उद्योग जलवायु परिवर्तन का कारक नहीं, बल्कि इससे होने वाले प्रभावों से जूझते गरीब देशों का तारणहार बन कर उभरेंगे।
दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के लगातार नए प्रभाव सामने आ रहे हैं। जंगलों की आग, बाढ़, सूखा, अत्यधिक गर्मी, अत्यधिक सर्दी और चक्रवात कैसे प्रभावों से तो अब पूरे साल दुनिया का कोई न कोई क्षेत्र जूझ रहा है और इसकी चर्चा भी की जा रही है, पर अब वैज्ञानिकों ने चेताया है कि तापमान वृद्धि का असर केवल हमारे आसपास के वातावरण पर ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके असर से पृथ्वी की भौगोलिक कार्यप्रणाली और पूरा वायुमंडल भी प्रभावित हो रहा है।
हाल में ही अमेरिका के प्रोसीडीग्स ऑफ़ नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि पृथ्वी पर तापमान वृद्धि के कारण पानी का बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण हो रहा है और इसके प्रभाव से सौरमंडल में पृथ्वी अपनी धुरी पर जिस वेग से घूमती थी, उस वेग में कमी आ रही है। पृथ्वी पर एक दिन का समय इसकी धुरी पर घूमते हुए पूरे एक चक्कर पर निर्भर करता है और इस वेग में कमी का सीधा सा मतलब है कि दिन की लबाई बढ़ती जा रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार हालांकि या अंतर वर्तमान में एक सेकंड के भी हजारवें भाग (मिलीसेकंड) के समतुल्य है, पर यह गंभीर स्थिति है, क्योंकि कई अरब वर्षों से इसमें कोई अंतर नहीं आया था, और अब पिछले 100 वर्षों के भीतर ही ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। मिलीसेकंड में भी अंतर इन्टरनेट में व्यवधान, स्टॉक मार्किट, जीपीएस की कार्यप्रणाली और अंतरिक्ष में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में बाधा डाल सकता है क्योंकि इन सबमें बहुत ही सटीक समय की आवश्यकता होती है और मिलीसेकंड की चूक भी भारी पड़ सकती है। हाल में ही माइक्रोसॉफ्ट के बाधित होने से पूरी दुनिया का थम जाना हमने भुगता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर जमी बर्फ तापमान वृद्धि के कारण तेजी से पिघल रही है और इससे उपजा पानी भूमध्य रेखा के आसपास के महासागरों के क्षेत्र में पहले से अधिक एकत्रित हो रहा है। सामान्य शब्दों में यह माना जा सकता है कि पृथ्वी के भूमध्य रेखा का क्षेत्र पहले से अधिक मोटा हो रहा है। पृथ्वी की गति महासागरों और भूमि पर चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा निर्धारित होती है। ध्रुवों पर पिघलती बर्फ और महासागरों में अधिक पानी इस गुरुत्वाकर्षण बल को प्रभावित कर रहा है, जिससे पृथ्वी की गति धीमी होने लगी है।
स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिक बेनडिक्ट सोजा के अनुसार मानव निर्मित तापमान वृद्धि ने पृथ्वी के अरबों वर्षों की संरचना को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, पर तापमान वृद्धि के रुकने के आसार कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि में तेजी औद्योगिक क्रान्ति के बाद आई है, और पृथ्वी की गति भी पिछले 100-200 वर्षों में ही प्रभावित हुई है और यह प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 1900 से 2000 के बीच पृथ्वी की गति में औसतन 0.3 से 1.0 मिलीसेकंड प्रति शताब्दी की कमी आंकी गयी थी, पर वर्ष 2000 से 2024 के बीच यह कमी 1.3 मिलीसेकंड प्रति शताब्दी तक पहुँच गयी है।
अनुमान है कि पेरिस समझाते के तहत दुनिया के सभी देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करते हैं तब वर्ष 2100 तक पृथ्वी की गति में कमी 1 मिलीसेकंड प्रति शताब्दी तक रुक जायेगी, पर वर्तमान में जिस तरह से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हो रही है उससे पृथ्वी की गति में कमी वर्ष 2100 तक 2.6 मिली सेकंड प्रति शताब्दी तक पहुँच सकती है।
कुछ समय पहले एक दूसरे अध्ययन में बताया गया था कि तापमान वृद्धि के कारण वायुमंडल का संतापमंडल प्रभावित हो रहा है और इसमें गैसों का घनत्व कम होने लगा है। वायुमंडल में समतापमंडल एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और इसी के कारण पृथ्वी पर सूर्य से आने वाली खतरनाक पराबैंगनी किरणों पृथ्वी तक पहुँच नहीं पाती हैं। एक दूसरे अध्ययन में बताया गया था कि बढ़ते तापमान के कारण पृथ्वी पर पानी के पुनर्वितरण के कारण पृथ्वी के दोनों ध्रुवों की स्थिति बदल रही है।
हरेक नया अध्ययन एक नए और पहले से कहीं अधिक बड़े खतरे की और इशारा करता है, पर पूंजीवाद और पूंजीवाद से सत्ता तक पहुंचे नेता तापमान वृद्धि रोकने के प्रति गंभीर नहीं हैं। इस लापरवाही से दुनियाभर की सामान्य जनता प्रभावित हो रही है, और पूंजीवाद जनता की संपत्ति लूटने में व्यस्त है।
सन्दर्भ:
1. https://www.theguardian.com/world/article/2024/jul/20/cop29-host-azerbaijan-seeks-1bn-from-fossil-fuel-producers-for-climate-fund
2. The increasingly dominant role of climate change on length of day variations - https://www.pnas.org/doi/10.1073/pnas.2406930121