मोदीराज में अमृतकाल के स्वर्णिम अध्याय में पर्यावरण विनाश में अग्रणी देश बना भारत !
file photo
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
In 2024, till now two global index related to environment have been published, and in both indexes VISHGURU Bharat is placed at 176th position out of total 180 countries. प्रधानमंत्री मोदी अपने हरेक भाषण में अमृत काल के स्वर्णिम अध्याय की चर्चा करते हैं, विकसित भारत की बात करते हैं, बड़ी अर्थव्यवस्था की बात करते हैं। भले ही भारतीय मीडिया और संस्थान मोदी चालीसा के जाप में व्यस्त हों, देश में विकास की नदियां बहा रहे हों, पर समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और संस्थान मोदी सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया के दावों को खोखला साबित करते रहते हैं।
इन दावों को सत्ता निर्लज्जता से नकारती है तो मीडिया इन दावों को समाचारों से गायब कर देता है। साफ और जीवंत पर्यावरण पूरी आबादी के जीवन का आधार है, पर मोदी सरकार में देश के पर्यावरण को निर्ममता से रौदा गया है। मोदी सरकार ने पर्यावरण को सौर ऊर्जा, चीतों और बाघों की संख्या में समेत कर रख दिया है, और मीडिया को भी बस यही पर्यावरण नजर आता है।
पर्यावरण के मामलों में हम कहाँ हैं, इसका अंदाजा इस वर्ष प्रकाशित पर्यावरण से संबंधित दो वैश्विक इंडेक्स से लगाया जा सकता है – दोनों इंडेक्स में प्रधानमंत्री मोदी का विकसित भारत कुल 180 देशों की सूची में 176वें स्थान पर है – यानी एक नहीं बल्कि दो इंडेक्स में पर्यावरण का विनाश करने वाले केवल चार देश ऐसे हैं, जो हमसे भी आगे हैं। अमृतकाल के स्वर्णिम अध्याय में इतना नीचे पहुँच जाना जाहिर तौर पर सत्ता और मीडिया के लिए एक अभूतपूर्व उपलब्धि होगी। दोनों इंडेक्स अलग देशों के संस्थानों ने अपने-अपने तरीके से तैयार किए हैं।
पहली बार प्रकाशित नेचर कान्सर्वैशन इंडेक्स 2024 में कुल 180 देशों में भारत 176वें स्थान पर है – केवल किरिबाती, तुर्की, इराक और माइक्रोनेशिया ही हमसे भी फिसड्डी हैं। यह इंडेक्स भूमि प्रबंधन, जैव-विविधता पर खतरे, क्षमता और विनाश, जैव-विविधता संरक्षण से संबंधित नीतियाँ और भविष्य में संरक्षण के रणनीति के आधार पर तैयार किया जाता है। इस इंडेक्स को इस्राइल स्थित बेन गुरियन यूनिवर्सिटी और जैव-विविधता पर काम करने वाली संस्था बायो डीबी ने संयुक्त तौर पर किया है।
कुल 100 अंकों वाले इस इंडेक्स में भारत को महज 45.5 अंक ही दिए गए हैं। इस इंडेक्स में भारत में अकुशल भूमि प्रबंधन और जैव विविधता पर बढ़ते खतरे पर चर्चा की गई है। देश में वनों की रिकॉर्ड स्तर पर की जा रही कटाई के कारण एक तरफ तापमान वृद्धि में तेजी या रही है तो दूसरी तरफ संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश हो रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत अवैध वन्यजीव का चौथा सबसे बाद बाजार है। देश में केवल 7.5 प्रतिशत भूमि क्षेत्र और 0.2 प्रतिशत जल संसाधन ही संरक्षण के दायरे में आते हैं।
इस इंडेक्स में अग्रणी 10 देश क्रम से हैं – लक्ज़मबर्ग, एस्टोनिया, डेनमार्क, फ़िनलैंड, यूनाइटेड किंगडम, जिम्बॉब्वे, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड, रोमानिया और कोस्टारिका। पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में भारत से भी बदतर केवल चार देश हैं – जाहिर है हमारे सारे पड़ोसी देश काम से काम इस संदर्भ में हमसे बेहतर स्थिति में हैं। इस इंडेक्स में भूटान 15वें, नेपाल 60वें, श्रीलंका 90वें, पाकिस्तान 151वें, अफगानिस्तान 160वें, चीन 164वें, म्यांमार 167वें और बांग्लादेश 173वें स्थान पर है। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में यूनाइटेड किंगडम 5वें, ऑस्ट्रेलिया 7वें, जर्मनी 12वें, साउथ अफ्रीका 25वें, ब्राजील 30वें, अमेरिका 37वें, कनाडा 57वें, जापान 71वें, सऊदी अरब 105वें और यूनाइटेड अरब अमीरात 111वें स्थान पर है।
वर्ष 2024 के शुरू में ही येल यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने संयुक्त रूप से पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स 2024 प्रकाशित किया था और इस इंडेक्स में भी शामिल कुल 180 देशों में भारत 176वें स्थान पर है, यही नहीं दक्षिण एशिया के 8 देशों में भी भारत 7वें स्थान पर है। इस इंडेक्स में भारत के पड़ोसी देशों में केवल पाकिस्तान और म्यांमार ही भारत से पीछे हैं, पर म्यांमार को इंडेक्स के क्षेत्रीय वर्गीकरण में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शामिल किया गया है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में सबसे पीछे हमारा देश है।
सामाजिक सरोकारों, जिनमें पर्यावरण भी शामिल है, के बारे में हमारे देश के दरबारी मीडिया में खबरें नहीं होतीं, इस इंडेक्स की खबर भी सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – हरेक जगह नदारद है। मीडिया ही क्यों, हाल में संपन्न हुए आम चुनावों में भी कहीं भी पर्यावरण की चर्चा नहीं थी, जनता के बीच कोई मुद्दा नहीं था। जिस तरह से बेरोजगारी की चर्चा होते ही प्रधानमंत्री मोदी गर्व से बताते हैं कि अब भारत का युवा रोजगार मांगता नहीं, बल्कि दूसरों को रोजगार देता है, ठीक उसी तर्ज पर पर्यावरण की चर्चा करते हुए भी प्रधानमंत्री 5000 वर्षों की परंपरा का जिक्र करते हैं, बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण हमारी जीवन शैली में रचा-बसा है।
अब पर्यावरण संरक्षण का पैमाना पर्यावरण की स्थिति नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री तय करते हैं। प्रधानमंत्री कहते हैं गंगा प्रदूषण-मुक्त है तो सब कहते हैं कि गंगा में प्रदूषण नहीं है, प्रधानमंत्री कहते हैं कि वनों का क्षेत्र बढ़ रहा है तो सब यही कहते हैं, प्रधानमंत्री कहते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में हमारा योगदान नगण्य है तो यही प्रचारित किया जाता है। अब आंकड़े अध्ययन से नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री की जुबान से टपकते हैं। इन सबके बीच हमारे देश का पर्यावरण पूरी तरह उपेक्षित रह गया है, और पूंजीवाद सरकारी मदद से इसे पूरी तरह लूटने की और अग्रसर है। पर्यावरण संरक्षण की आवाज उठाने वाले अब नक्सली, माओवादी और आतंकवादी करार दिए जाते हैं।
पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स हरेक 2 वर्षों के अंतराल पर प्रकाशित किया जाता है। इसके लिए पर्यावरण से सम्बंधित 58 सूचकों का आकलन कर हरेक देश के प्रदर्शन के आधार पर 0 से 100 के बीच अंक दिए जाते हैं और फिर अंकों के आधार पर एक इंडेक्स तैयार किया जाता है। भारत को कुल 27.6 अंक मिले हैं और इंडेक्स में 176वें स्थान पर है। पहले स्थान पर 75.3 अंकों के साथ एस्टोनिया है, जबकि अंतिम स्थान पर 24.5 अंकों के साथ वियतनाम है।
बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में 13वें स्थान पर फ्रांस, 23वें स्थान पर ऑस्ट्रेलिया, 27वें स्थान पर जापान, 28वें स्थान पर कनाडा, 29वें स्थान पर इटली, 34वें स्थान पर अमेरिका, 48वें स्थान पर ब्राज़ील, 53वें स्थान पर संयुक्त अरब अमीरात, 57वें स्थान पर दक्षिण कोरिया, 84वें स्थान पर रूस, 94वें स्थान पर मेक्सिको, 104वें स्थान पर साउथ अफ्रीका, 106वें स्थान पर सऊदी अरब और 154वें स्थान पर रूस है। दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और स्वघोषित विश्वगुरु, भारत 176वें स्थान पर है।
इसी इंडेक्स में पर्यावरण स्वास्थ्य के सन्दर्भ में भारत 180 देशों में 177वें स्थान पर, पारिस्थितिकी तंत्र जीवंतता में 170वें स्थान पर, जलवायु परिवर्तन में 133वें स्थान पर, वायु गुणवत्ता के संदर्भ में 177वें स्थान पर, पेयजल और स्वच्छता में 143वें स्थान पर, भारी धातुओं के सन्दर्भ में 146वें स्थान पर, जल संसाधन में 104वें स्थान पर, मछलियों के सन्दर्भ में 116वें स्थान पर, वायु प्रदूषण में 129वें स्थान पर और जैव-विविधता के सन्दर्भ में 178वें स्थान पर है। वनों के सन्दर्भ में भारत 15वें स्थान पर, कृषि से सम्बंधित पर्यावरण में 46वें स्थान पर और ठोस अपशिष्ट के सन्दर्भ में 86वें स्थान पर है।
इन दोनों इंडेक्स से इतना तो स्पष्ट है कि स्वघोषित विश्वगुरु का डंका पीटते-पीटते हम पर्यावरण संरक्षण समेत सभी सामाजिक सरोकारों में दुनिया के सबसे पिछड़े देशों के साथ खड़े हैं और गर्व से विकसित भारत का नारा बुलंद कर रहे हैं।
संदर्भ:
https://biodb.com/table/nci-2024/
Block, S., Emerson, J. W., Esty, D. C., de Sherbinin, A., Wendling, Z. A., et al. (2024). 2024 Environmental Performance Index. New Haven, CT: Yale Center for Environmental Law & Policy. epi.yale.edu