खुरपी वाले एएसआई शत्रुघन इस तरह कर रहे प्रकृति का संरक्षण
निशा डागर की रिपोर्ट
आज हम आपको कुछ ऐसे ही पर्यावरण के संरक्षकों से परिचित करा रहे हैं, जो न सिर्फ खुद पौधारोपण कर ग्रीन कवर बढ़ा रहे हैं बल्कि दूसरे लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
नरेंद्र हूडा
हरियाणा में सोनीपत के रहने वाले नरेन्द्र हूडा ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर लगभग 3 वर्ष पहले जनहित अभियान फाउंडेशन की नींव रखी थी। गिने-चुने लोगों के साथ शुरू हुई उनकी यह पहल आज सैकड़ों लोगों तक पहुँच चुकी है। फाउंडेशन के ज़रिए नरेंद्र और उनके साथी पर्यावरण संरक्षण और रक्तदान जैसे अभियान चलाते हैं। पिछले इतने सालों में उन्होंने सोनीपत और इसके आस-पास के बहुत से गांवों में पौधारोपण और रक्तदान शिविर लगाए हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए नरेंद्र बताते हैं, "हम सभी साथी खेती-बाड़ी, प्राइवेट और सरकारी नौकरियों से जुड़े हुए हैं। अक्सर अपने आस-पास के वातावरण को देखते हुए लगता था कि हमें अपने स्तर पर अपने समाज के लिए कुछ करना चहिये। इससे आने वाली पीढ़ी को भी हम एक बेहतर कल दे पाएंगे।"
वह आगे कहते हैं कि उन्होंने शुरुआत अपने मोहल्ले और स्कूल आदि से की। इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने आस-पास के गांवों में पहुंचना शुरू किया। सबसे पहले वह गाँव में पहुंचकर वहां के युवाओं से बात करते हैं। युवाओं की टीम बनाते हैं और उनके साथ मिलकर गाँव की सार्वजनिक जगहों पर पौधारोपण करते हैं। पौधारोपण के बाद लगभग 3 साल तक इन पौधों की देखभाल की ज़िम्मेदारी गाँव की इस युवा टीम की ही होती है। समय-समय पर जनहित अभियान फाउंडेशन गांवों में जाकर दौरा भी करती है। इसके साथ, वे सभी के साथ व्हाट्सअप ग्रुप के ज़रिए लगातार संपर्क में रहते हैं।
"हम सबसे पहले गांवों में रक्तदान शिविर लगवाते हैं। रक्तदान शिविरों के ज़रिए गाँव के लोगों से मुलाक़ात होती है और उनसे विचार-विमर्श करने का मौका भी मिलता है। जहां भी हमने महसूस होता है कि लोग अपने समाज और वातावरण के प्रति संवेदनशील हैं, वहां हम पौधरोपण मुहिम चलाते हैं," उन्होंने आगे कहा।
अब तक उन्होंने लगभग 1 लाख पौधे लगाए हैं और इन सभी पेड़-पौधों का खर्च फाउंडेशन से जुड़े हुए लोग साथ में मिलकर उठाते हैं। जब भी किसी के यहाँ कोई शुभ काम होता है या फिर ख़ुशी का उत्सव होता है जैसे शादी या फिर बच्चे का जन्म, तो लोग 10 से लेकर 100 पौधे तक भी दान करते हैं। नरेंद्र हूडा और उनकी टीम की कोशिशें पूरी सोनीपत जिले में बदलाव की इबारत लिख रही हैं। उनके प्रयासों से प्रकृति की सांसे तो बढ़ ही रही हैं, साथ ही रक्तदान के ज़रिए वह और भी बहुत से लोगों की मदद कर रहे हैं।
आशीष भारद्वाज
इसी कड़ी में अगला नाम है उत्तर-प्रदेश के शाहजहाँपुर के आशीष भारद्वाज का। डिफेंस विभाग में कार्यरत आशीष पिछले कई सालों से पर्यावरण की सुरक्षा हेतु मुहिम चला रहे हैं। वह कहते हैं कि आज से 50 साल बाद भले ही हम ना रहें, हमारी कहानी ना रहे लेकिन आज हमारे लगाए हुए पेड़ ज़रूर रहेंगे।
आशीष कहते हैं, "हम सब जानते हैं कि हमें पेड़ लगाने चाहिए लेकिन हम पेड़ कहाँ लगाएं, कौन-से पेड़ लगाएं और कब लगाएं, इन सब बातों पर गौर करना बेहद ज़रूरी हो चला है। मैंने शुरुआत में खुद बहुत सारे पेड़-पौधे लगाए, आज भी लगा रहा हूँ। लेकिन पिछले कुछ समय से मैंने मैनेजमेंट का काम भी संभाला है। पहले हम फावड़े से गड्ढे करते थे लेकिन अब हम इस स्टेज पर हैं कि हम जेसीबी से गड्ढे करते हैं।"
35 वर्षीय आशीष के मुताबिक उन्होंने देखा कि छोटे पौधे लगाने में काफी समस्या हैं। सबसे ज्यादा खतरा होता है जानवरों से क्योंकि हर जगह बंदर, गाय-भैंस आपको मिल जाएंगे और हर वक़्त उनसे पेड़ों की सुरक्षा कर पाना मुमकिन नहीं। इसलिए उन्होंने छोटे-पेड़ों की बजाय लगभग 10-12 फीट के पेड़ लगाना शुरू किया। इतना बड़ा पेड़ नर्सरी से खरीदने पर थोड़ा महंगा पड़ता है लेकिन आशीष की माने तो इसके जीने की दर काफी ज्यादा होती है। नीम से लेकर बरगद तक के लगभग 12 फीट के पेड़ वह जगह-जगह लगाते और लगवाते हैं।
पिछले इतने सालों में आशीष के साथ शहर के और भी बहुत से लोग जुड़े हैं। "अगर किसी को भी किसी मौके पर पेड़-पौधे लगाने हैं तो वह हमसे संपर्क करते हैं। हम उन्हें बताते हैं कि वह शहर में किस जगह पर कौन-से पेड़-पौधे लगा सकते हैं। हम मौसम और जगह के हिसाब से पौधारोपण करते हैं और दूसरे लोगों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करते हैं," आशीष ने बताया।
आशीष ने इन सभी पेड़-पौधों की देखभाल के लिए खास तौर पर एक आदमी रखा हुआ है। जिसे हर महीने वह खुद अपनी सैलरी में से लगभग 6 हज़ार रुपये देते हैं। इसके साथ ही वह कहते हैं कि यह पूरे समुदाय का प्रयास है। उनकी योजना सार्वजनिक जगहों को हरियाली से भरने की है। योजना बनाने से लेकर पेड़-पौधे खरीदने और उनकी देख-भाल करने तक में बहुत से लोग उनके साथ हैं।
पिछले ढाई सालों में उन्होंने ढाई हज़ार पेड़ लगाए और आज यह सभी पेड़ बड़े होकर लहला रहे हैं। आशीष का सन्देश सिर्फ इतना है कि ज़रूरी नहीं कि हम सब ही ज़मीन पर उतर कर पेड़ लगाएं लेकिन अगर आप संपन्न हैं तो आप पेड़-पौधे लगवा सकते हैं और उन्हें मैनेज कर सकते हैं।
प्रभात कुमार
पर्यावरण संरक्षकों की इस सूची में लखनऊ में रहने वाले प्रभात कुमार का नाम भी शामिल होता है। प्रभात कुमार मूल रूप से छपरा, बिहार के रहने वाले हैं। लेकिन अपनी पढ़ाई के लिए वह लखनऊ आ गए और यही पर उन्होंने हरियाली की यह मुहिम शुरू की।
मास्टर्स के छात्र प्रभात बताते हैं, "मैंने दसवीं की परीक्षा अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण की और इसी ख़ुशी में उस समय लगभग 100 पौधे लगाए थे। तब तो वह एक शौक था जो मैंने पूरा किया लेकिन उन पेड़-पौधों की देखभाल करते-करते मेरा मन प्रकृति संरक्षण में लगने लगा। आज भी वे 100 पौधे जीवित हैं और घने पेड़ बन चुके हैं। तब से ही मुझे जहाँ भी जैसे भी मौका मिलता है मेरी कोशिश रहती है कि मैं पौधारोपण करूं और दूसरों से भी करवाऊं।"
कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने ग्रीनअर्थ नामक एक संस्था बनाई और इसके ज़रिए उन्होंने लोगों को पौधे बांटना और लगाना शुरू किया। उनके मुताबिक वह अब तक 5 हज़ार से भी ज्यादा पौधे बाँट चुके हैं। ग्रीनअर्थ फाउंडेशन के ज़रिए अब वह न सिर्फ पौधारोपण बल्कि जल-संरक्षण और कचरा-प्रबंधन जैसे मुद्दों पर भी काम कर रहे हैं। प्रभात के मुताबिक उनका उद्देश्य हर संभव तरीके से प्रकृति और पर्यावरण को सहेजना है।
एएसआई शत्रुघन पांडेय
अक्सर पुलिस वालों को देखकर हमें उनकी खाकी वर्दी ही ध्यान में आता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के रायपुर के कालीबाड़ी ट्रैफिक जोन में नियुक्त एक पुलिस अधिकारी को लोग उनकी खुरपी से जानते हैं, क्योंकि ये अधिकारी जहां-तहां पेड़-पौधों की सेवा में जुट जाते हैं।
एएसआई के पद पर नियुक्त शत्रुघन पांडेय हम सबके लिए एक मिसाल हैं। पिछले 40 सालों से वह पौधारोपण कर रहे हैं और साथ ही पौधों की देखभाल भी करते हैं। वह बताते हैं कि अपनी नौकरी की शुरुआत में एक बार उन्होंने सड़क किनारे निर्ममता से कटे हुए पेड़ों को देखा और उन्हें बहुत पीड़ा हुई।
उस दिन उन्होंने तय किया कि वह प्रकृति के संरक्षण के लिए स्वयं को समर्पित कर देंगे। उस दिन के बाद से जहां भी उनकी पोस्टिंग हुई वहां खाली समय में वह पेड़ लगाने या फिर आसपास के पेड़ों को पानी आदि देने में जुट जाते। बहुत बार उनके सीनियर और जूनियर अफसर उनका मजाक बनाते कि क्या यह सब करने के लिए पुलिस में भर्ती हुए हो। लेकिन शत्रुघन बिना किसी की परवाह किए अपने काम में लगे रहते। उनकी कोशिशों को नतीजा यह हुआ कि जिस जगह उनकी ड्यूटी होती, वहां कुछ समय में हरियाली क्षेत्र बढ़ जाता।
धीरे-धीरे उनके विभाग को भी उनकी कोशिशों का महत्व समझ में आने लगा। वह बताते हैं कि उन्होंने अब तक लगभग डेढ़ लाख पेड़ लगाए और सहेजे हैं। उनकी खासियत यह है कि वह मुख्य रूप से तीन तरह के पेड़ ही लगाते हैं- नीम, पीपल और बरगद। इन तीनों पेड़ों का ही अपना-अपना महत्व है। नीम को औषधीय पेड़ कहा जाता है तो पीपल 24 घंटे ऑक्सीजन देता है। वहीं बरगद की जड़ें मिट्टी और पानी को बांधकर रखती हैं जिससे भूजल स्तर बढ़ता है।
"आपने बहुत बार देखा होगा कि आपकी छत पर टंकी के सहारे या फिर दीवार में आई तरेर में पौधा उगने लगता है। मुझे जहां भी ऐसे पौधे दिखते हैं मैं तुरंत अपने औज़ार लेकर उसे सही-सलामत जड़ सहित वहां से निकालता हूँ और फिर उसे अपने घर पर लाकर अच्छे से तैयार करता हूँ और फिर किसी सार्वजनिक जगह पर लगा देता हूँ या फिर दूसरों को दान देता हूँ।"
पौधारोपण के साथ-साथ वह वन्य जीव-जन्तुओं का भी ख्याल रखते हैं। ग्रामीण या फिर वन्य क्षेत्रों के पास स्थित पुलिस थानों के बाहर उन्होंने पानी की टंकियां बनवाई हैं ताकि जानवर वहां आकर पानी पी सकें। उनका मानना है कि अगर हम प्रकृति से प्रेम करेंगे तभी एक भरपूर जीवन जी पाएंगे।
बेशक, इन सभी पर्यावरणविदों की कोशिशें काबिल-ए-तारीफ़ हैं।
(द बेटर इंडिया में प्रकाशित निशा डागर की संपादित रिपोर्ट।)