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पर्यावरण

महासागरों के किनारे पूंजीपतियों के लिए बढ़ते लग्जरी विला, पोर्ट, व्यापारिक केंद्र और मनोरंजन के साधन और गरीब हो रहे बेघर

Janjwar Desk
21 Feb 2023 7:19 AM GMT
महासागरों के किनारे पूंजीपतियों के लिए बढ़ते लग्जरी विला, पोर्ट, व्यापारिक केंद्र और मनोरंजन के साधन और गरीब हो रहे बेघर
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file photo

कुछ छोटे शहर भी महासागरों की जमीन हड़प रहे हैं, इसे शहरों की लिस्ट में गुजरात में गौतम अदानी के पोर्ट शहर मुंद्रा का नाम भी शामिल है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Land reclamation from sea is a global phenomenon amidst rising sea level due to global warming. पिछले कुछ वर्षों से लगातार तापमान वृद्धि के कारण तेजी से बढ़ाते औसत सागर तल और इसके प्रभाव से डूबते सागर तट, शहरों और देशों की चर्चा की जा रही है, पर इसी बीच हाल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2000 से 2022 के बीच दुनियाभर के शहरों ने सागरों और महासागरों के किनारे की 2530 वर्ग किलोमीटर यानि 253000 हेक्टेयर भूमि विकास परियोजनाओं के लिए हड़प ली हैं। इनमें से 70 प्रतिशत भूमि ऐसे क्षेत्रों में है जहां औसत सागर तल तेजी से बढ़ रहा है।

हाल में ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एन्टोनियो गुतेर्रेस ने कहा कि वर्तमान में सागर तल के बढ़ने की दर पिछले 3000 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है, और इसके प्रभाव से आबादी का बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा क्योंकि एक बड़ी आबादी का घर और व्यवसाय छूट जाएगा, ठिकाना बदल जाएगा। इसके प्रभाव से अनेक देश भी डूब जायेंगें, जिससे एक बड़ी आबादी ऐसी होगी, जिसका कोई देश नहीं होगा।

इस समस्या के समाधान के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के साथ ही एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय क़ानून बनाने की जरूरत भी है जिससे गरीबों, बेघर और बिना देश वाले लोगों को पर्याप्त सुरक्षा दी जा सके। इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन के बाद साफ़ पानी, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा और तेज हो जायेगी। वर्ल्ड मेटेरियोलोजिकल आर्गेनाईजेशन ने हाल में ही बताया है कि दुनियाभर में सागर तल बढ़ रहा है और दूसरी तरफ पिछले 11000 वर्षों की तुलना में महासागरों का पाने अधिक गर्म भी हो रहा है।

यदि इस शताब्दी के अंत तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक भी दिया गया गया, जिसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती, तब भी औसत सागर तल में वर्ष 2100 तक 50 सेंटीमीटर की और अगले 2000 वर्षों के दौरान 2 से 3 मीटर की वृद्धि तय है। वर्ष 2015 के आकलन के अनुसार दुनिया में लगभग 1.1 अरब आबादी सागर तट के पास बसती है और इस आबादी में वर्ष 2050 तक 71 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

तापमान वृद्धि के इन प्रभावों के बीच हाल में ही अर्थ्स फ्यूचर नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर दस लाख से अधिक आबादी वाले 135 शहरों ने महासागरों और सागरों के किनारे की 253000 हेक्टेयर भूमि पर विकास परियोजनाएं खड़ी कर ली हैं। यह सब वर्ष 2000 से 2022 के बीच हुआ है। इसका सीधा सा मतलब है कि पिछले 22 वर्षों के दौरान पृथ्वी पर भू-क्षेत्र में 253000 हेक्टेयर की वृद्धि हो गयी है। यह अपने तरीके का पहला अध्ययन है। इन 135 शहरों में से 78 प्रतिशत यानि 106 शहरों ने अपने समुद्री तट का विस्तार किया है। ऐसे विस्तार में से अधिकतर विस्तार एशिया में, 248550 हेक्टेयर किया गया है, इसके बाद अफ्रीका में 2277 हेक्टेयर और यूरोप में 2233 हेक्टेयर विस्तार है। इस अध्ययन को लैंडसैट सॅटॅलाइट द्वारा प्राप्त चित्रों के माध्यम से किया गया है।

एशिया में भी अकेले पूर्वी एशिया में महासागरों से 225290 हेक्टेयर भूमि हड़पी गयी है, जब कि पश्चिमी एशिया में यह क्षेत्र 14998 हेक्टेयर और दक्षिण पूर्व एशिया में 7477 हेक्टेयर है। दुनियाभर में महासागरों से जितनी भूमि निकाली गयी है उसमें से 90 प्रतिशत चीन, यूनाइटेड अरब एमिरात और इंडोनेशिया में है। अकेले चीन के शंघाई शहर में यह विस्तार 34978 हेक्टेयर है। कुल 78 शहरों में महासागरों से निकाली गयी जमीन पर बंदरगाह का निर्माण किया गया है, 31 शहरों में आवास और व्यवसाय के लिए भूमि पर कब्जा किया गया है और 19 शहरों में यह उद्योगों के विस्तार के लिए किया गया है।

हालांकि इस अध्ययन को दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों पर किया गया है, पर इसके अनुसार कुछ छोटे शहर भी महासागरों की जमीन हड़प रहे हैं। इसे शहरों की लिस्ट में गुजरात में गौतम अदानी के पोर्ट शहर मुंद्रा का नाम भी शामिल है।

महासागरों के बढ़ते तल से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और सामान्य आबादी होने वाली है, पर महासागरों की तरफ विस्तार पूरे तरफ से पूंजीवाद का प्रतीक है। महासागरों की तरफ फैलते पोर्ट, अत्यधिक महंगे लक्ज़री विला, व्यापारिक केंद्र और मनोरंजन के साधन – सभी पूंजीपतियों के लिए हैं। यह वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता ही है जिसके कारण जिस महासागर के कारण गरीब विस्थापित हो रहे हैं, उसी महासागर से जमीन छीनकर अमीर अपना व्यापार और मनोरंजन बढ़ा रहे हैं।

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