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पर्यावरण

बाजार के डस्टबिन में खाना ढूंढ़ रहे बाघ को गोली से उड़ाया, टाइगर की बढ़ती संख्या का सामने आया साइड इफेक्ट

Janjwar Desk
15 Nov 2022 4:23 PM IST
बाजार के डस्टबिन में खाना ढूंढ़ रहे बाघ को गोली से उड़ाया, टाइगर की बढ़ती संख्या का सामने आया साइड इफेक्ट
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Tiger hunting Ramnagar Uttarakhand जिस जगह घटना हुई है, वह कालागढ़ वन प्रभाग की मंदाल रेंज से जुड़ा है। मंगलवार 15 नवंबर की सुबह इस बाघिन की लाश को रामनगर लाया गया, जहां ढेला में इसका पोस्टमार्टम किया जा रहा है। जंगल में अपनी गरिमा और सम्मान के साथ जीवन गुजारने वाली बाघिन की इस हालत के लिए जंगलों में बढ़ती इनकी संख्या को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Tiger hunting Ramnagar Uttarakhand : साल 2010 की ही तो बात है, जब रूस के एक शहर पिट्सबर्ग में कुछ लोग आपस में सिर जोड़े बैठे दुनिया के नक्शे से तेजी से गायब हो रहे बाघ के बारे में फिक्रमंद होते हुए इनके बचाव की चर्चा कर रहे थे। जंगल की जैव विविधता और पारिस्थितिकी क्रम में शीर्ष स्थान प्राप्त इस वन्यजीव को बचाने के लिए सभी संभव उपायों पर गौर करते हुए चर्चा के मंथन में तय हुआ कि अगले बारह सालों में दुनिया इनकी मौजूदा संख्या को दुगुना करने में सफल हो जाए तो बाघ को डायनासोर की गति को प्राप्त होने से रोका जा सकता है।

जंगल के बादशाह का अंधाधुंध शिकार और यौनवर्धित दवाओं में इसकी हड्डियों के उपयोग जैसी मूर्खताओं से बाघों की घटती तादात पर यह चर्चा हुई उसे ग्लोबल टाइगर समिट के नाम से जाना गया। विश्व के कुल जिन तेरह देशों भारत, थाईलैंड, नेपाल, रूस, मलेशिया, म्यांमार, चीन, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, बांग्ला देश, भूटान, कंबोडिया में बाघ पाया जाता है, इन सभी देशों के प्रतिनिधि इस समिट का हिस्सा बने।

एक तरफ जहां बाघों को बचाने के लिए यह कवायद की जा रही थी उस समय कौन सोच सकता था कि पिट्सबर्ग में हुई इस समिट के बारह साल ऐसी भी स्थिति आ जायेगी की जंगल की महारानी बाघिन शहर के बाजार में डस्टबिन में भोजन तलाशती दिखेगी, जहां उसे मौत का शिकार बनना पड़ेगा, लेकिन बारह साल में ही सच बनकर सामने आ गया।

उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से सटे मर्चुला बाजार में बीती रात एक बाघिन दयनीय हालत में दुकानों के बाहर रखे कूड़े के डिब्बों में खाना तलाशती दी। हैरत की बात यह थी कि यह बाघिन इतनी कमजोर हालत में थी कि गली मुहल्ले में भटकने वाले आवारा कुत्ते से इसकी तुलना की जा रही है, जबकि बाघ इतना शर्मिला और एकाकी होता है कि वह इंसानों से दूरी ही बनाकर रखता है।

झाड़ियों के झुरमुट में छिपकर रहने वाले बाघ की पूरी दुनिया ही रहस्यमयी होती है, जिसमें हस्तक्षेप अमूमन बाघ पसंद नही करते। लेकिन यह बाघिन भूख की वजह से बाजार में घूमने को मजबूर हो गई थी। बाघिन की आबादी में इस चहलकदमी से खौफजदा लोगों ने इसकी खबर वन विभाग को दी।

बताया जा रहा है कि मौके पर पहुंचे वनकर्मियों ने बाघिन को भगाने के लिए फायरिंग की, जिसके बाद बाघिन कुछ देर के लिए लापता हो गई। बाद में इसका शव ही बरामद किया जा सका। वीडियो में साफ देखा जा रहा है कि एक गाड़ी में बैठकर करीब बारह साल की इस बाघिन पर बंदूक से फायर किए जा रहे हैं। कई लगातार हुए फायर के दौरान कुछ गोलियां बाघिन को लगती हैं, जिसके बाद यह बाघिन ओझल होती दिख रही है।

अभी यह साफ नहीं है कि गोलियां दागने वाले लोग सरकारी कर्मचारी हैं या आम लोग। लेकिन उनके दौरान हो रही बातचीत का आत्मविश्वास इनके सरकारी आदमी होने की चुगली करता प्रतीत हो रहा है। जिस जगह यह घटना हुई है, वह कालागढ़ वन प्रभाग की मंदाल रेंज से जुड़ा है। मंगलवार 15 नवंबर की सुबह इस बाघिन की लाश को रामनगर लाया गया, जहां ढेला में इसका पोस्टमार्टम किया जा रहा है। जंगल में अपनी गरिमा और सम्मान के साथ जीवन गुजारने वाली बाघिन की इस हालत के लिए जंगलों में बढ़ती इनकी संख्या को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

आगे बढ़ने से पहले बाघ से जुड़े कुछ रोचक बिंदुओं पर नजर डाले तो पता चलता है कि साल 2010 में 1706 बाघों की संख्या भारत में थी। भारत के कुल बीस राज्यों में ही बाघ पाए जाते हैं। चार साल बाद यह संख्या 2226 तो फिर अगले चार साल यानी 2018 में यह संख्या 2967 हो गई। मतलब आठ साल में देश में बाघों की संख्या 74 प्रतिशत बढ़ी। इन 2967 बाघों में से आधे से भी ज्यादा, मतलब कुल 1492 बाघ केवल तीन राज्यों मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड में हैं। यह संख्या अगर भारत के कुल बाघों की संख्या की आधे से अधिक है तो वैश्विक तौर पर बाघों की कुल संख्या का 35 प्रतिशत है। संदर्भ के तौर पर यह बता दे कि बाघों की गणना हर चार साल में की जाती है। यहां जिन आंकड़ों का जिक्र किया जा रहा है, वह 2018 तक के ही हैं। 2022 के आंकड़े अभी रिलीज नहीं हुए हैं।

देश में जहां बाघों की संख्या जहां 74 फीसदी बढ़ी तो उत्तराखंड में यह करीब दुगुनी (195 प्रतिशत) हो चुकी है। यहां साल 2010 में 227 बाघ थे तो 2014 में 340 और 2018 में यह संख्या 526 हो चुकी थी। जबकि मध्य प्रदेश में तो यह दुगुने से भी अधिक (2010 में 257, 2014 में 308 और 2018 में 526) पहुंच गई है। फ्लैशबैक में जाकर बारह साल पहले की पिट्सबर्ग की ग्लोबल टाइगर समिट में लिए गए लक्ष्य की बात करें तो साल 2022 के आंकड़ों में भारत इस लक्ष्य को आसानी से पार करने वाला है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार बाघ की 9 फीसदी से कम की ग्रोथ रेट से भी बारह साल में यह लक्ष्य पाया जा सकता है, जबकि हमारे देश में यह ग्रोथ रेट 9 फीसदी से अधिक है।

अब बात कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की करें तो बाघों के घनत्व को देखते हुए इसे बाघों की राजधानी भी कहा जाता है। ताजा आंकड़े इस रिजर्व में बाघों की संख्या 252 और रिजर्व से सटे इलाकों को मिलाकर 266 बताते हैं। जबकि अपुष्ट सूत्रों के हवाले से रिजर्व की यह संख्या 300 बताई जाती है। एक बाघ की टेरेटरी जंगल में उपलब्ध शिकार और जंगल की डेंसिटी से तय होती है। कॉर्बेट जैसे आदर्श जंगल में औसतन 12 किमी. का क्षेत्र बाघ के लिए पर्याप्त माना जाता है।

विश्व प्रकृति निधि के मिराज अनवर के मुताबिक अनुकूल परिस्थितियां में बाघ 6 किमी. के दायरे में भी प्राकृतिक जीवन जी सकता है।

वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार कहते हैं, कॉर्बेट के घनत्व के लिहाज से यहां 175 बाघों की संख्या पर्याप्त है। इससे ज्यादा होने की स्थिति में बाघों में आपसी टकराव बढ़ सकता है। अपने इलाके में दूसरे बाघ की उपस्थिति को बाघ अपनी सल्तनत पर हमला समझते हैं। इस मामले में एक म्यान में दो तलवार वाली स्थिति आने पर एक बाघ को अपनी जान गंवानी पड़ती है। या फिर जान बचाने के लिए उसे जंगल से बाहर ठिकाना तलाश करना होता है।

दीप रजवार के मुताबिक मर्चूला बाजार में घूमने वाली बाघिन काफ़ी कमज़ोर लग रही थी। जो खाने की तलाश में बीच बाज़ार में आ गई थी। बाघिन इतनी कमज़ोर दिख रही है कि इसमें बाघ जैसे कोई गुण ही नज़र नहीं आ रहे हैं। बाघों के व्यवहार पर रजवार का कहना है कि आमतौर पर बाघ बड़े एकाकी और शर्मीले होते हैं और छुप के शिकार करते हैं, लेकिन यहाँ साफ़ देखा जा सकता है कि बाघिन की भूख ने इसको बाज़ार में आने में मज़बूर कर दिया।

बाघिन की बाजार में इस मौजूदगी को कॉर्बेट में बाघों की बढ़ती हुई संख्या के तौर पर रेखांकित करते हुए उनका कहना है कि "यह साइड इफ़ेक्ट है बाघ की संख्या बढ़ने का। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के घनत्व के हिसाब से बाघों की रहने की जो आदर्श संख्या है वह 175 से ज़्यादा नहीं है। लेकिन अभी पार्क में 300 के क़रीब बाघ हैं। इससे बाघों का रहने का क्षेत्रफल सिकुड़ रहा है। इसी के कारण इनके बीच आपसी संघर्ष भी बढ़ रहा है। ऐसी परिस्थिति में जो ताकतवर है वही जंगल के अंदर रहेगा। जो शारीरिक तौर पर कमज़ोर है, वह बाहर की और को भागेगा अपने को ज़िंदा रखने के लिए। जीवन हर कोई जीना चाहता है। मर्चूला बाजार में घूमती बाघिन जैसे कई वीडियो देखने को मिल सकते हैं भविष्य में क्यूँकि हर कोई अपने को ज़िंदा रखना चाहता है चाहे वो इंसान हो या जानवर। जंगल में बाघों की स्थिति यह है कि आम तौर पर पहाड़ों पर बाघ नहीं मिलता। लेकिन अब केदारनाथ तक में इसकी उपस्थिति देखी गई है।

बाघों को बचाए रखने के लिए रजवार जरूरत से ज्यादा होने पर उनकी शिफ्टिंग को ही इस समस्या का इलाज बताते हुए कहते हैं कि मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए बाघों की संख्या एक अनुपात से अधिक बढ़ने पर उसे दूसरे इलाकों में रिलोकेट किया जा सकता है। अन्यथा खुद जंगल से बाहर आने पर वह या तो इंसानों के लिए खतरा बनेगा या फिर उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी। जैसा की इस घटना में हुआ है।

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