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पर्यावरण

इमारतों के बोझ से धंसता गगनचुंबी इमारतों वाला न्यूयॉर्क, कारण जानकर रह जायेंगे हैरान

Janjwar Desk
25 May 2023 7:56 AM IST
इमारतों के बोझ से धंसता गगनचुंबी इमारतों वाला न्यूयॉर्क, कारण जानकर रह जायेंगे हैरान
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न्यूयॉर्क को एक ऐसे शहर के तौर पर जाना जाता है जहां कभी समय नहीं थमता, पर 84 लाख आबादी वाला यह शहर अपनी इमारतों के बोझ से धंस रहा है, धरती में समा रहा है। यहाँ के गगनचुम्बी इमारतों का सम्मिलित अनुमानित वजन लगभग 0.8 खरब किलोग्राम है, यह लगभग 14 करोड़ हाथियों के सम्मिलित भार के समतुल्य है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

New York is sinking due to enormous weight of buildings. न्यूयॉर्क को एम्पायर स्टेट बिल्डिंग जैसे अपने गगनचुम्बी इमारतों के लिए जाना जाता है, पर इन्हीं इमारतों के वजन के कारण न्यूयॉर्क शहर 1 से 2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से धंस रहा है। अनेक स्थानों पर धंसने की दर इससे दुगुनी से भी अधिक है। दूसरी तरफ न्यूयॉर्क के पास समुद्र तल में बढ़ोत्तरी की दर दुनिया के औसत समुद्रतल बृद्धि से लगभग दोगुनी है। ऐसे में चक्रवातों के समय अचानक बाढ़ आने के खतरे साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। दूसरी तरफ तापमान बृद्धि और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ऐसे चक्रवातों और तूफानों की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ती जा रही है।

अर्थ्स फ्यूचर नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार न्यूयॉर्क को एक ऐसे शहर के तौर पर जाना जाता है जहां कभी समय नहीं थमता, पर 84 लाख आबादी वाला यह शहर अपनी इमारतों के बोझ से धंस रहा है, धरती में समा रहा है। यहाँ के गगनचुम्बी इमारतों का सम्मिलित अनुमानित वजन लगभग 0.8 खरब किलोग्राम है, यह लगभग 14 करोड़ हाथियों के सम्मिलित भार के समतुल्य है। सागर तटीय क्षेत्र पर बसा यह शहर सागर तल से अपनी ऊंचाई खोता जा रहा है, जबकि वर्ष 1950 से अबतक यहाँ सागर तल में 22 सेंटीमीटर की बढ़ोत्तरी हो चुकी है।

वर्ष 2012 में सैंडी चक्रवात के कारण न्यूयॉर्क बाढ़ में डूब गया था, इसके बाद वर्ष 2021 में फिर इडा चक्रवात ने यहाँ बाढ़ का कहर बरपाया था, जिसमें अनेक नागरिकों की डूबने से मौत भी हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार धंसने से न्यूयॉर्क को कोई खतरा नहीं है, पर भविष्य की योजनाओं का प्रारूप तैयार करने से पहले इस समस्या को ध्यान में रखना जरूरी है। महासागरों का खारा पाने जब बाढ़ के तौर पर शहर में आता है तब भवन कमजोर होने लगते हैं और स्टील या धातुओं से बने इंफ्रास्ट्रक्चर खारापन के कारण गलने लगते हैं। इनसे भवन कमजोर होने लगता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार इस अध्ययन को न्यूयॉर्क में किया गया है, पर इसके निष्कर्ष सागर-तटीय अधिकतर बड़े शहरों पर लागू होते हैं। ऐसे शहरों का तेजी से विकास किया जा रहा है, तमाम इमारतें खडी की जा रही हैं और भारी-भरकम इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं लाई जा रही हैं।

वर्ष 2015 में जर्नल ऑफ़ जियोफिजिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार ऑस्ट्रेलिया का पर्थ शहर भूजल की अत्यधिक निकासी के कारण लगभग 6 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से धंस रहा है। बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2000 के बाद से वाटर कारपोरेशन ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रलिया ने बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन शुरू किया और लगभग इसी समय से शहर के धंसने की दर बढ़ने लगी। समस्या यह है कि ऑस्ट्रेलिया में सागर तल में बढ़ोत्तरी की दर वैश्विक औसत की तुलना में तीन-गुना अधिक है।

भूजल की अत्यधिक निकासी से शहरों का धंसना एक वैश्विक समस्या है। बीजिंग, वियतनाम का होची मिन्ह शहर, इटली का वेनिस, जापान का टोक्यो और अमेरिका का न्यू ओरलेंस समेत अनेक शहर इससे प्रभावित हैं। चीन में बीजिंग के धंसने की दर 11 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है, जबकि अमेरिका के न्यू ओरलेंस शहर का बड़ा हिस्सा वर्ष 1990 से 2013 के बीच 113 मिलीमीटर धंस गया।

भूजल की अत्यधिक निकासी के कारण धंसने वाले शहरों में सबसे चर्चित शहर इंडोनेशिया की वर्तमान राजधानी जकार्ता है। इस समस्या का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इंडोनेशिया अब इस शहर को छोड़कर 2000 किलोमीटर दूर नया राजधानी शहर, नुसानतारा, बना रहा है। जकार्ता के धंसते जाने के कारण राष्ट्रपति ने वर्ष 2019 में ही नए शहर बनाने का प्रस्ताव दिया था, पर कोविड 19 के कारण इस प्रस्ताव पर आगे कोई कदम नहीं उठाया गया था, पर अब संसद ने भी इसे अनुमोदित कर दिया है, और उम्मीद है कि वर्ष 2024 तक यह काम ख़त्म कर लिया जाएगा।

पिछले अनेक वर्षों से इस सन्दर्भ में जकार्ता की चर्चा की जाती है। यह सागर-तटीय शहर है इसीलिए समस्या अत्यधिक गंभीर है। एक तरफ तो तापमान बृद्धि के गारण सागर तल उंचा होता जा रहा है और दूसरी तरफ धंसने के कारण इस शहर के अनेक क्षेत्र गहराई में जा रहे हैं। इसी कारण सागर में हाई टाइड होते ही शहर का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आ जाता है। जकार्ता के धंसने की दर 25 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है।

वर्ष 2022 में प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका, नेचर, में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दिल्ली और आसपास के इलाकों में भूजल का इतना अधिक दोहन किया गया है कि अब जमीन धंसती जा रही है। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के माध्यम से अध्ययन कर वैज्ञानिकों के एक अंतराष्ट्रीय दल ने यह बताया है कि दिल्ली का लगभग 100 वर्ग किलोमीटर हिस्सा धंसता जा रहा है और इसमें से अधिकतर हिस्सा नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास है। इस अध्ययन को आईआईटी बाम्बे, जर्मनी के रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और अमेरिका के साउथर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तरीके से किया है।

प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स ने कहा था, प्रकृति पर अपनी मानवीय विजय से हमें आत्म-प्रशंसा से विभोर नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रकृति हर ऐसी पराजय का हमसे प्रतिशोध लेती है। भूजल को पम्प से खींचने का तरीका इजाद कर हमने यही सोचा था कि हमने प्रकृति को पराजित कर दिया पर अब भयानक परिणाम सामने है। धरती का सीना चीर कर पानी निकालते-निकालते हम खुद ही धरती में समाने के कगार पर पहुँच गए हैं।

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