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पर्यावरण

हिमालय से जरा भी छेड़छाड़ हुई तो प्रकृति हमें नहीं करेगी माफ, हिमालय दिवस पर बोले केंद्रीय मंत्री निशक

Janjwar Desk
11 Sep 2020 5:15 PM GMT
हिमालय से जरा भी छेड़छाड़ हुई तो प्रकृति हमें नहीं करेगी माफ, हिमालय दिवस पर बोले केंद्रीय मंत्री निशक
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file photo

हिमालय में संसाधनों के अपेक्षित ज्ञान के लिए हिमालय की उत्पत्ति, संरचना, खनिज, वन एवं जल संपदा आदि को अच्छी तरह से समझना होगा और तभी हम हिमालय की संपदा का पूरा और वास्तविक मूल्यांकन कर पाएंगे....

दिल्ली। हिमालय दिवस का बुधवार 9 सितंबर को आयोजन किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि हिमालय के बगैर भारतीय उपमहाद्वीप की कल्पना नहीं की जा सकती है। हिमालय दिवस के आयोजन के अवसर पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी मौजूद रहे।

हिमालय की विशेषताओं को बताते हुए केंद्रीय मंत्री निशंक ने कहा, "हिमालय ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संगीत, योग, आयुर्वेद, कला, धर्म-अध्यात्म और साधना का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह एशिया में विशाल क्षेत्र की जलवायु का निर्माता है। तकरीबन 20,000 पौधों की प्रजातियां हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र में पाई जाती हैं।"

इसके बाद उन्होंने इसकी समस्याओं के बारे में बात करते हुए कहा, "ये युवा और बढ़ते पहाड़ भूस्खलन की चपेट में हैं और प्राकृतिक खतरों से ग्रस्त हैं। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लिए इसकी उच्च संवेदनशीलता के कारण यह जलवायु पल्स के रूप में जाना जाता है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभावों में हिम पिघलन, ग्लेशियर संकोचन, प्रजाति बदलाव, मानव पलायन शामिल है।"

हिमालय दिवस मनाने के उद्देश्य के पीछे निशंक ने कहा, "हमारा उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों को व्यापक रूप से विकसित करना है, इस क्षेत्र में समानता आधारित समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाले दृष्टिकोण और ज्ञान में महत्वपूर्ण प्रगति करना, संपूर्ण हिमालय क्षेत्र मे व्यक्तिगत और संस्थागत क्षमता विकास कर विज्ञान आधारित नीतियों का विकास करना, हिमालयी क्षेत्र का व्यावहारिक विकास मॉडल तैयार करना, यहां का आर्थिक और सामाजिक विकास करना और बुनियादी सुविधाओं एवं सेवाओं का विकास करना है।"

भारत सरकार के मुताबिक वैज्ञानिक विश्लेषणों से पता चलता है कि हिमालय में अपार खनिज, वन एवं जल सम्पदा है। हिमालय में संसाधनों के अपेक्षित ज्ञान के लिए हिमालय की उत्पत्ति, संरचना, खनिज, वन एवं जल संपदा आदि को अच्छी तरह से समझना होगा और तभी हम हिमालय की संपदा का पूरा और वास्तविक मूल्यांकन कर पाएंगे।

उन्होनें कहा, "मुझे लगता है कि हिमालय से आने वाला हर एक व्यक्ति इस बात को भली-भांति समझ सकता है कि अगर हिमालय से जरा भी छेड़छाड़ हुई तो प्रकृति हमें माफ नहीं करेगी। हमें इस बात पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि हम सब सामुदायिक भागीदारी बढ़ाते हुए सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति करें।"

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