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पर्यावरण

Prime Minister Modi at COP-26 : जलवायु परिवर्तन पर मोदी जी के दावों की क्या है जमीनी सच्चाई

Janjwar Desk
5 Nov 2021 8:12 AM GMT
Prime Minister Modi at COP-26 : जलवायु परिवर्तन पर मोदी जी के दावों की क्या है जमीनी सच्चाई
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(संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ पीएम मोदी)

Prime Minister Modi at COP-26 : 1 नवम्बर को प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने ग्लासगो अधिवेशन में अचानक ऐलान कर दिया कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बन जाएगा।

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Prime Minister Modi at COP-26 : जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के पेरिस समझौते से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (Conference of the Parties) के 26वें अधिवेशन का आयोजन स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर (COP-26 at Glasgow) में किया गया था और इसमें भारत समेत अधिकतर देशों के मुखिया मौजूद थे। इस अधिवेशन के ठीक पहले तक भारत सरकार का आधिकारिक वक्तव्य था कि अमीर देश जलवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक जिम्मेदारी स्वीकार करें और गरीब देशों की पर्याप्त आर्थिक मदद करें।

कार्बन न्यूट्रल या बिना कार्बन वाली अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के बारे में भारत ने कभी बात नहीं की थी और अक्टूबर के अंत में भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव (Bhupendar Yadav) ने फिर से दोहराया था कि बिना कार्बन वाली अर्थव्यवस्था जलवायु परिवर्तन का हल नहीं है (Carbon Neutral Is Not The Solution)। पर, 1 नवम्बर को प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) ने ग्लासगो अधिवेशन में अचानक ऐलान कर दिया कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल (Carbon Neutral) बन जाएगा। इस ऐलान से जितना आश्चर्य दुनियाभर के विशेषज्ञों और राजनेताओं को हुआ, जाहिर है उतना ही आश्चर्य हमारे देश के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री को भी हुआ होगा।

जाहिर है, पर्यावरण मंत्री को इस बारे में प्रधानमंत्री के ऐलान से पहले इस बारे में कुछ पता ही नहीं होगा, पर यही मोदी जी की विशेषता है – कोविड 19 के फैसलों के बारे में स्वास्थ्य मंत्री को पता नहीं होता, नोटबंदी के बारे में रिज़र्व बैंक को पता नहीं होता, जम्मू-कश्मीर के फैसलों के बारे में वहां के राजनेताओं को पता नहीं होता, और कृषि कानूनों के बारे में किसानों को पता नहीं होता। दूसरी तरफ गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि मोदी जी देश के इतिहास में सबसे अधिक लोकतांत्रिक प्रधानमंत्री हैं और वे हरेक फैसला सबसे विचार-विमर्श के बाद ही करते हैं।

जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि (Climate Change And Global Warming) के लिए मुख्य तौर पर वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस (Carbon Dioxide) के वायुमंडल में उत्सर्जन को जिम्मेदार माना जाता है। इसीलिए हमेशा कहा जाता है कि वायुमंडल में इस गैस को उत्सर्जित करने को रोक देने से ही इस समस्या का हल निकलेगा। कार्बन न्यूट्रल का मतलब है, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का शून्य उत्सर्जन, किसी देश से जितना भी कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन होगा, उसे वायुमंडल में नहीं मिलने दिया जाएगा। अब तक भारत को छोड़कर दुनिया के सभी प्रमुख देश कार्बन न्यूट्रल के लक्ष्य को सुनिश्चित कर चुके थे – अमेरिका और यूरोपीय देशों की योजना वर्ष 2050 की है जबकि चीन और सऊदी अरब के लिए यह वर्ष 2060 है। तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बाद भी भारत यह लक्ष्य निर्धारित नहीं कर रहा था।

28 अक्टूबर को ही भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा था कि क्लाइमेट न्यूट्रल इस समस्या का समाधान नहीं है। पर, ग्लासगो के मंच से वर्ष 2070 की घोषणा कर प्रधानमंत्री ने भूपेन्द्र यादव समेत पूरी दुनिया को चौका दिया। स्सवाल यह है कि क्या इस घोषणा से पहले प्रधानमंत्री जी ने भारतीय वैज्ञानिकों के साथ कोई गहन विचार-विमर्श किया था, या फिर मंच पर खड़े होकर भाषण देते हुए जो भी वर्ष याद आया, उसकी घोषणा कर दी। इसके साथ ही प्रधानमंत्री जी ने कहा कि भारत वर्ष 2030 तक उर्जा की कुल मांग में से आधे का उत्पादन नवीनीकृत उर्जा स्त्रोतों (Renewable Energy Sources) से करेगा और यह उत्पादन 500 गिगावाट के समतुल्य होगा। प्रधानमंत्री जी के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था को भी कार्बन मुक्त करने के प्रयास किये जा रहे हैं और वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था में 45 प्रतिशत की कमी आ जायेगी।

भारत इस समय कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के सन्दर्भ में दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है। देश में ना तो पेट्रोलियम पदार्थों की मांग कम हो रही है और ना ही कोयले पर निर्भरता कम होने का नाम ले रही है। सरकार लगातार कोयले के नए ब्लॉक्स आबंटित कर रही है, कोयले का उत्पादन बढ़ा रही है, कोयले का आयात भी बढ़ा रही है, अडानी तो ऑस्ट्रेलिया से कोयला लाकर देश में खपा रहे है। बड़े देशों में भारत ही अकेला देश है जहां कोयले की खपत बढ़ती जा रही है।

जंगल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और इसे वायुमंडल में मिलने से रूकते हैं, पर देश के अधिकतर जंगल संकट में हैं और इनका क्षेत्र लगातार कम हो रहा है। मोदी सरकार के दौर में पूरे देश के जंगलों में खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का जाल बिछाया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के मूल में वायु प्रदूषण है, जबतक वायु प्रदूषण कम नहीं होगा जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

इन सबकी बाद भी प्रधानमंत्री जी के अनुसार अर्थव्यवस्था से कार्बन उत्सर्जन में कमी आ रही है – यह निश्चित तौर पर एक कुतूहल का विषय है।

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