New Study : मुसीबत में पौधे भी लगाते हैं आवाज, चूहे और ततैया जैसे जीव सुन सकते हैं पौधों को
photog : Mahendra Pandey
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A new study tells that plants produce sounds in distress. तेज हवा में पत्तियों की सरसराहट, आग लगने पर बृक्षों में तने और टहनियों के दरकने की आवाजें, फूलों पर मधुमक्खियों की आवाजें और बृक्षों पर पक्षियों का कलरव तो सबने सुना है, पर पौधों की अपनी आवाज भी होती है, यह हाल में ही पता चला है। इस अध्ययन को तेल अवीव यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक लिलाच हदानी ने किया है और इसे “सेल” नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
इस अध्ययन के अनुसार पौधों से उत्पन्न होने वाली आवाज अल्ट्रासोनिक होती है, इसलिए हम मनुष्य इसे नहीं सुन पाते। पौधों से उत्पन्न होने वाली आवाज 40 से 80 किलोहर्ट्ज के दायरे में होती हैं, जबकि मनुष्य के सुनने की सर्वाधिक क्षमता 20 किलोहर्ट्ज तक ही है। पर, पौधों के परिवेश में रहने वाले अनेक कीट-पतंगें और जानवर इन आवाजों को सुन सकते हैं और इन आवाजों पर प्रतिक्रियास्वरूप अनुसरण भी करते हैं।
पौधे सामान्य स्थितियों में हरेक घंटे लगभग एक बार आवाज उत्पन्न करते हैं और यह आवाज बुलबुले के फूटने के आवाज की तरह त्वरित होती है। पर, पानी के कमी या तनों के काटे जाने जैसी विषम परिस्थितियों में यह आवाज तेज हो जाती है और आवृत्ति बढ़कर हरेक घंटे में 30 से 50 बार पहुँच जाती है। संकट के समय यह आवाज इतनी तेज होती है कि इसे 3 से 5 मीटर की दूरी पर भी रिकॉर्ड किया जा सकता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे हम मनुष्य सामान्य स्थितियों में भले ही शांत बैठे रहें, पर खतरे से घिरते ही सहायता के लिए बार-बार गुहार लगाते हैं। इस अध्ययन को टमाटर और तम्बाकू के पौधों पर किया गया है। अध्ययन के दौरान पानी की कमी के दूसरे दिन से ध्वनि की आवृत्ति बढ़ने लगती है, 5वें दिन यह सर्वाधिक होती है और इसके बाद पौधा मरने लगता है और ध्वनि की आवृत्ति कम होती जाती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह खोज दिलचस्प है, क्योंकि अब तक वनस्पतिजगत को पूरी तरह से शांत समझा जाता था। इस अध्ययन की मुख्य लेखिका लिलाच हदानी के अनुसार यह तो स्पष्ट है कि पौधे ध्वनि दूसरे पौधों से वार्तालाप के लिए उत्पन्न नहीं करते, पर पौधों से उत्पन्न ध्वनि से उनका परिवेश नियंत्रित होता है। चूहे और ततैया जैसे जंतु ऐसी अल्ट्रासोनिक आवाजों को सुन सकते हैं और इन आवाजों के आधार पर संकट भांप जाते हैं। इन आवाजों से उनका व्यवहार भी नियंत्रित होता है।
लिलाच हदानी के अनुसार यह आविष्कार महत्वपूर्ण है, क्योंकि पौधों के परिवेश में पलने वाले जंतुओं का विकास इन्हीं आवाजों के साथ हुआ है और इन आवाजों पर इनका व्यवहार केन्द्रित है। इन आवाजों के कारण पर अभी अनुसंधान किया जा रहा है, पर अधिकतर वैज्ञानिकों के अनुसार इन आवाजों का कारण तने में नलिकाओं द्वारा बहने वाला पानी है – जब इन नलिकाओं में पानी की कमी होती है तब बुलबुले बनते हैं और इनके फटने पर आवाजें आती हैं।
इसी जर्नल ‘सेल’ में प्रकाशित एक दूसरे अध्ययन के अनुसार पौधे कुछ निश्चित आवृत्ति के बीच की ध्वनि पर प्रतिक्रिया देते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कोई शाकाहारी जंतु किसी पौधे की हरी पत्तियाँ चबा रहा है तब इस चबाने की ध्वनि के बाद आसपास के दूसरे पौधे अपना सुरक्षा तंत्र मजबूत कर लेते हैं। पौधे पानी बहने की आवाज के अनुसार अपनी बृद्धि नियंत्रित करते हैं। इस अध्ययन को बेल्जियम में भारतीय वैज्ञानिक रत्नेश चन्द्र मिश्रा की अगुवाई में किया गया है।
वर्ष 2017 में बार्सिलोना के वैज्ञानिक कार्लोस विसिएंट ने बताया था कि खेत में खड़ी फसलों को तेज संगीत सुनाया जाए तो फसल की सूखा बर्दाश्त करने की क्षमता बढ़ जाती है। वर्ष 2018 में पलोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पौधे जड़ों के माध्यम से एक दूसरे को संकेत और चेतावनी देते हैं। संकट में या दूसरी जरूरतों के समय पौधों की जड़ों से एक विशेष रसायन उत्सर्जित होकर मिटटी में मिलता है, और इसी रसायन से दूसरे पौधे खतरे को भांपते है और उसका सामना करते हैं। इस अध्ययन को स्वीडन के वैज्ञानिक वेलेमिर निन्कोविक ने किया था।
पौधों के आपसी समन्वय के सूत्र वैज्ञानिक तलाशने में जुटे हैं और इस क्षेत्र में बहुत सारी नई खोज हो रही है, ऐसे अनुसंधान के भविष्य में फायदे भी होंगें। यदि पौधे संकट के समय तेज आवाज उत्पन्न करते हैं तब खेतों में अल्ट्रासोनिक आवाज रिकॉर्ड करने वाले कुछ माइक्रोफोन की मदद से सिंचाई को नियंत्रित किया जा सकता है, और उत्पादकता को बढाया जा सकता है।