अवैज्ञानिक तरीके से अंधाधुंध कटाई के कारण खूबसूरत पहाड़ बन रहे तबाही का सबब
प्रकृति के साथ अनियंत्रित छेड़खानी से उत्तराखंड के पहाड़ इंसानों के लिए बनते जा रहे खतरा
सलीम मलिक की रिपोर्ट
नैनीताल। प्रकृति से अनियंत्रित छेड़खानी के चलते उत्तराखण्ड के खूबसूरत पहाड़ इंसानों के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। विकास के लिए पहाड़ों के कटान के कारण कमजोर हो रही पहाड़ियां मौसम की जरा सी भी मार झेलने में अक्षम होती जा रही हैं। जिसके चलते उत्तराखण्ड में विकास और उसी क्रम में बढ़ता भूस्खलन दोनों को नए ढंग से सोचने की जरूरत आ पड़ी है।
नैनीताल जिले से शुक्रवार की शाम को आये पहाड़ दरकने के एक हौलनाक वीडियो ने फिर साबित किया कि राज्य के पहाड़ों से हो रही गैर वैज्ञानिक छेड़छाड़ भविष्य में कितनी बड़ी तबाही का सबब बन सकती है। हालांकि इस घटना में कोई जनहानि नहीं हुई। लेकिन कुछ पलों की चूक कितनी बड़ी तबाही बरपा सकती थी, यह वीडियो में साफ देखा जा सकता है।
उत्तराखंड में इन दिनों भारी बारिश का दौर जारी है। पर्वतीय इलाकों में हो रहे भूस्खलन के चलते सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही बन्द है। नैनीताल जिले में ज्योलीकोट-भवाली हाईवे पर मौजूद वीरभट्टी पुल के पास एक नई पुलिया का निर्माण किया जा रहा है। जिसके लिए सड़क किनारे पहाड़ का कटान किया जा रहा है। पहाड़ के कटान की वजह से पहाड़ कमजोर होकर अपने जमे रहने की ताकत खोते जा रहें हैं। जिसकी वजह से शुक्रवार की शाम को कटान वाली पहाड़ी का एक हिस्सा भरभरा कर सड़क पर गिर पड़ा।
इस हादसे के दौरान सड़क पर पैदल आवाजाही भी थी। जिसे शोर-शराबा करके भगाया गया। इसके साथ ही सवारियों को लेकर जा रही एक बस भी इसकी चपेट में आते-आते बची। सड़क पर रुकी इस बस की सवारियों ने जब पहाड़ के ऊपर से मलवे के रूप में बरसती मौत को देखा बस से कूदकर अपनी जान बचाई। वीरपुर भट्टी पुल के आखिरी छोर का पहाड़ी का बड़ा हिस्सा भरभरा कर गिर जाने के कारण फिलहाल गाड़ियों की आवाजाही रोक दी गई है।
वहीं इस हादसे के बरक्स चमोली जिले की बात की जाए तो जोशीमठ-मलारी हाईवे तमक नाम की जगह पर होने वाले लगातार भूस्खलन से बंद है। यहां पर छह दिन से 400 यात्री फंसे हुए हैं। इन यात्रियों को निकालने के लिए देहरादून से हेलीकाप्टर रवाना किया गया। लेकिन मौसम बिगड़ने के चलते हेलीकाप्टर को आधे रास्ते से लौटना पड़ा। भूस्खलन जोन के मुहाने पर दरारें आने से बन्द पड़ी इस सड़क की मरम्मत भी नहीं हो पा रही है। जिसकी वजह से एसडीआरएफ और एनडीआरएफ के जवान लोगों को पैदल निकालने के लिए रास्ता बनाने में जुटे हुए हैं। कुल मिलाकर बारिश के इस मौसम में जगह-जगह होने वाले लैंडस्लाइड से पर्वतीय जिलों में आवागमन बेहद खतरनाक हो गया है।
विश्व की सबसे नई पर्वत श्रंखला हिमालय के बारे में कहा जाता है कि यह आज भी विकसित हो रही है। कमजोर हिमालय में निर्माण को लेकर असंवेनशीलता के कारण ही पहाड़ों का यह भूस्खलन लगातार यहां होने वाले अनियोजित विकास के साथ लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
विकास के बहाने प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट 'आल वेदर रोड' की स्थिति भी विशेषज्ञ खतरे की जद में मानते हैं। पांच साल से चल रहे इस प्रोजेक्ट से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री को जोड़ा जाना है। 900 किमी. के इस हाईवे से टनकपुर-पिथौरागढ़ तक की कनेक्टिविटी होनी है। कैलाश मानसरोवर तक पहुंच बनाने वाले इस हाईवे को कई ईको सेंसेटिव जोन से होकर गुजरना है। ऑलवेदर रोड के कई हिस्से बनने के साथ ही दरक रहे हैं तो कहीं चट्टानों का सही ढंग से कटान न किए जाने के कारण वह बारिशों में भूस्खलन के रूप में सड़क पर आ जा रहे हैं। बोल्डरों (बड़े-बड़े पत्थर) के गिरने का सिलसिला भी जारी है।
ऋषिकेश, गंगोत्री और बदरीनाथ ऑल वेदर रोड पर केवल 150 किमी के हिस्से में ही 60 डेंजर जोन चिन्हित किये जा चुके हैं। सामने आए थे। सर्वे की रिपोर्ट में सड़कों फैला मलबा, पहाड़ी पर अटके पत्थर और कई जगह सड़कों का बेहद संकरा होने को भविष्य के बड़े खतरे के रूप में देखा गया है।
ऑलवेदर सड़क के निर्माण में नियमों की अनदेखी और निर्माण के तरीकों पर उठते सवालों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणविद के नेतृत्व में पांच सदस्यीय रवि चोपड़ा निगरानी कमेटी का गठन किया हुआ है। कमेटी ने पिछले वर्ष चारधाम प्रोजेक्ट से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को हो रहे नुकसान की रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी थी। जिसमें पेड़ों के कटान से लेकर अव्यवस्थित तरीके चट्टानों के कटान, डंपिंग जोन और तमाम दूसरी अनियमितताओं पर सवाल उठाए गए थे। रिपोर्ट में इस बात की भी आशंका व्यक्त की गई थी कि भविष्य में ऑल वेदर रोड बड़े भूस्खलनों के कारण दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है।
वाडिया भू-विज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त भूगर्भशास्त्री डॉ. केपी जुयाल के अनुसार हिमालय सबसे नया पर्वत होने के साथ ही सबसे कमजोर भी है। इस इलाके में निर्माण को लेकर काफी संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। यहां भूस्खलन के ज्यादातर हादसे सड़कों के साथ ही होते हैं। सड़क का वर्टिकल कर्व भी लैंडस्लाइड को न्योता देता है। इसलिए सड़कों के निर्माण के समय चट्टानों का कटान एक निश्चत ढलान के साथ होना चाहिए। ऐसे में भूस्खलन का खतरा कम रहता है।
पर्यावरणविद पद्मविभूषण अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार विश्व के तमाम देशों व यूरोप में भी पहाड़ों में सड़कें और विकास के लिए निर्माण कार्य होते हैं। लेकिन वहां निर्माण अवधि से अधिक समय शोध को दिया जाता है। पर्यावरण के साथ पारिस्थितिकी का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। जबकि हमारे यहां निर्माण पर अधिक ध्यान दिया जाता है जो सारी समस्या की जड़ है।
कुल मिलाकर हिमालय की गोद में विकास के बहाने जिस प्रकार प्रकृति को हराने की कोशिशें हो रही है, वह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए शुभ संकेत नज़र नही आता। बदले दौर में दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के क्रम में हम आदि मानव की तरह गुफाओं और कन्दराओं का जीवन तो नहीं ही जी सकते, लेकिन विकास के लिए दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मॉडल तो अपना ही सकते हैं। जिससे भविष्य में इस प्रकार के खौफनाक वीडियो देखने को न मिलें।