धरती पर मनुष्यों की जनसंख्या 8 अरब पार से भी ज्यादा, पर चीटियों की संख्या जानकर रह जायेंगे दंग—प्रति व्यक्ति 25 लाख से अधिक चीटियाँ
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
There are 2.5 million ants per parson on earth and their total number exceeds 20 quadrillion. इसी वर्ष पृथ्वी पर मनुष्यों की संख्या 8 अरब पार करने का अनुमान है। यह संख्या बड़ी लग सकती है, पर यह संख्या दुनिया में चीटियों की संख्या की तुलना में नगण्य है। हाल में ही प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार में दुनिया में चीटियों की संख्या 20 क्वाडरीलियन (1 क्वाडरीलियन में 1 के आगे 24 शून्य लगते हैं, एक करोड़ शंख) से भी अधिक है, यानि दुनिया के हरेक मनुष्य के बदले 25 लाख से अधिक चीटियाँ हैं। चीटियाँ सर्वव्यापी, अत्यधिक व्यस्त और सामाजिक समुदाय वाले कीट हैं, जो पृथ्वी पर डायनासोर युग से पहले से पनप रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इनका सबसे पुराना जीवाश्म 10 करोड़ वर्ष से अधिक पुराना है।
भूमि से जुड़े हरेक पारिस्थितिकी तंत्र में चीटियाँ हमेशा केन्द्रीय भूमिका निभाती हैं। चीटियाँ पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, कार्बनिक पदार्थों के विखंडन, बीजों के विस्तार और मृदा के हरेक परत को मिलाने में महत्वपूर्ण हैं। दुनिया में चीटियों की विविधता चौकाने वाली है, इनकी 12000 से अधिक प्रजातियाँ मौजूद हैं। अधिकतर प्रजातियों का रंग काला, लाल या भूरा होता है। चीटियाँ पृथ्वी पर सबसे अधिक संख्या में रहने वाली प्रजातियों में एक हैं और पारिस्थितिकी तंत्र की हरेक क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
चीटियों के आकार में बहुत विविधता है, इनका आकार 1 मिलीमीटर से 3 सेंटीमीटर के बीच रहता है, पर हरेक प्रजाति में शरीर तीन हिस्सों में बंटा होता है। चीटियाँ मृदा, गिरी पत्तियों और कार्बनिक अपशिष्ट में रहती हैं, पर दुनिया भर में शहरी क्षेत्रों में रसोई में भी ये मिलती हैं। जीव जगत में मधुमक्खियाँ और ततैय्या इनके सबसे नजदीकी संबंधी हैं। अंटार्कटिक, ग्रीनलैंड, आइसलैंड और कुछ छोटे द्वीपों को छोड़कर चीटियाँ पूरी दुनिया में मिलती हैं। चीटियों का सम्मिलित बायोमॉस सभी बड़े स्तनपाई प्रजातियों और पक्षियों की सभी प्रजातियों के सदस्यों के सम्मिलित बायोमॉस से भी अधिक है। पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्यों के सम्मिलित बायोमॉस की तुलना में चीटियों का बायोमॉस 20 प्रतिशत से भी अधिक है।
इस अध्ययन को जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ़ वुज्बुर्ग और यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है और इस अध्ययन का आधार चीटियों की संख्या और बायोमॉस का आकलन करने वाले पहले से प्रकाशित 489 शोधपत्र हैं। चीटियों में गजब की अनुकूलन क्षमता होती है, इसलिए ये हरेक प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र में पनपती हैं, फिर भी अधिकतर चीटियाँ समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाई जाती हैं। शहरी क्षेत्रों की तुलना में वनों और शुष्क भूमि पर इनकी संख्या अधिक रहती है।
चीटियाँ एक सामाजिक प्राणी हैं और सुनिश्चित समूह में रहती हैं। हरेक समूह में सभी सदस्यों की एक निश्चित भूमिका होती है – श्रमिक, सुरक्षा और रानी। नर चीटियाँ केवल रानी के साथ मिलकर बच्चे पैदा करने का काम करते हैं और फिर मर जाते हैं। मादा चीटियाँ श्रमिक और सुरक्षा के साथ ही भोजन प्रबंधन, बिल की देखभाल और बच्चों को पालने का काम भी करती हैं। इस अध्ययन में बताया गया है कि चीटियों के विशालकाय सम्मिलित बायोमॉस से ही ही पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भूमिका का अंदाजा लगाया जा सकता है। इनकी भूमिका के कारण ही इन्हें पारिस्थितिकी तंत्र का अभियंता कहा जाता है। मशहूर पर्यावरणविद ई ओ विल्सन के अनुसार चीटियाँ छोटे कीट हैं, पर दुनिया को चलाते हैं।
वर्ष 2015 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग के वैज्ञानिकों ने चार वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद चीटियों का एटलस प्रकाशित किया था। इस एटलस में व्हीतियों की लगभग 15000 प्रजातियों का वर्णन और इनका वैश्विक विस्तार दर्शाया गया था। इस एटलस के अनुसार दुनिया में चीटियों की सर्वाधिक विविधता ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में है, यहाँ चीटियों की 1400 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कुछ वर्ष पहले इजराइल के वैज्ञानिकों ने बताया था कि भारी वस्तुवें उठाने के लिए चीटियाँ एक समूह में काम करती हैं, और इस समूह में 15 से 20 चीटियाँ एक दूसरे का वैसे ही सहयोग करती हैं, जैसे भारी काम करने वाले मनुष्य करते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्युनिख के वैज्ञानिकों के अनुसार फिजी में चीटियों की एक प्रजाति कुछ फसलों को किसानों की तरह उगाती हैं, इन्हें "मिनी फार्मर्स" कहा जाता है। इससे पहले वैज्ञानिकों ने बताया था चीटियाँ कुछ विशेष प्रकार के कवक की पैदावार कर सकती हैं। फिजी की चीटियाँ कम से कम 6 प्रजातियों के पौधों को उगाती हैं। इसके लिए वे बीज को उठाकर पुराने वृक्षों के तने के दरारों में रखती हैं और कुछ समय के लिए इंजी दरारों में मल करती हैं जो इन बीजों के पनपने के लिए खाद का काम करता है। चीटियाँ इन बीजों और कोपल का नियमित समय पर मुआयना करती हैं और जब पौधे कुछ बड़े होने लगते हैं तब उन्ही दरारों में इनका समूह रहने लगता है। इस अध्ययन को नेचर प्लांट्स नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया था।
जर्नल ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी में जर्मनी के उल्म यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार चीटियाँ एक अच्छी धावक भी होती हैं, विशेष तौर पर जब भोजन की खोज में चीटियाँ निकलती हैं तब बहुत तेज चलती हैं। इस अध्ययन के अनुसार सबसे तेज धावक ट्यूनीशिया में पाई जाने वाली सिल्वर ऐन्ट्स होती हैं, जिनकी औसत गति एक मीटर प्रति सेकंड होती है। इनकी गति और इनके आकार की तुलना की जाए तो सिल्वर ऐन्ट्स अपनी लम्बाई का 108 गुना एक सेकंड में तय करती हैं।
चीटियाँ पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, पर मनुष्य अपनी गतिविधियों द्वारा लगातार इनकी संख्या कम करता जा रहा है।