मोदीराज में भुखमरी में विश्वगुरु बना भारत, दुनिया के 1.1 अरब गरीबों में से 23.4 करोड़ सिर्फ भारत में !
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
As per latest report published by World Bank, global effort to eradicate poverty has been stagnated due to wars, climate crisis, debt and pandemic : संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने हाल में ही मल्टीडाईमेन्शनल पावर्टी इंडेक्स 2024 प्रकाशित किया है, इसमें भारत की गरीबी का भी जिक्र है। इसके अनुसार दुनिया में 1.1 अरब गरीब हैं, जिसमें से अकेले भारत में इनकी संख्या 23.4 करोड़ है। यह संख्या दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है।
भारत समेत पाँच देश – पाकिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया और कांगो – के गरीबों की सम्मिलित आबादी दुनिया के कुल गरीबों की संख्या की लगभग आधी है। पाकिस्तान में 9.3 करोड़, इथियोपिया में 8.6 करोड़, नाइजीरिया में 7.4 करोड़ और कांगो में 6.6 करोड़ आबादी गरीब है। इस रिपोर्ट को 112 देशों की 6.3 अरब आबादी के आधार पर तैयार किया गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार अब तक जलवायु परिवर्तन, देशों की अर्थव्यवस्था की हालत जैसे कारक ही गरीबी बढ़ाते थे, पर आधुनिक दौर में महामारी और युद्ध भी इसके प्रभावी कारण बन गए हैं। कुल 1.1 अरब गरीबों में से 40 प्रतिशत से अधिक युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में हैं और युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में गरीबी सामान्य क्षत्रों की अपेक्षा तिगुनी अधिक तेजी से बढ़ रही है। युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों की 35 प्रतिशत आबादी और सामान्य क्षेत्रों की 11 प्रतिशत आबादी गरीबी की चपेट में है।
गरीबी सबसे अधिक प्रभावित 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कर रही है, कुल गरीबों में से लगभग आधे इसी आयु-वर्ग के बच्चे और किशोर हैं। दुनिया के 27.9 प्रतिशत बच्चों की तुलना में 13.5 प्रतिशत वयस्क ही गरीबी के दायरे में आते हैं। पूरी दुनिया में ग्रामीण क्षेत्र में शहरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक गरीबी है। वैश्विक स्तर पर 28 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 6.6 प्रतिशत शहरी आबादी गरीब है।
विश्व बैंक की हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार युद्ध, गरीब देशों पर अत्यधिक कर्ज, तापमान बृद्धि और महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर अत्यधिक गरीबी के विरुद्ध युद्ध में हम हारने लगे हैं। पिछले तीन दशकों के दौरान इस क्षेत्र में जितनी सफलता हासिल की गई थी, अब हम वहीं ठहर गए हैं। अत्यधिक गरीबी काम करने के वर्तमान उपायों में यदि तेजी से बदलाव नहीं लाया गया तो दुनिया के 70 करोड़ से भी अत्यधिक गरीबों की गरीबी दूर करने में दुनिया को तीन दशक से भी अधिक समय लगेगा। जाहिर है, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य, जिसके तहत वर्ष 2030 तक दुनिया से अत्यधिक गरीबी को मिटाना है, निश्चित तौर पर असंभव है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में अत्यधिक गरीबी की प्रचलित मान्य परिभाषा किसी व्यक्ति द्वारा प्रति दिन 2.15 डॉलर या लगभग 150 रुपये से कम की आमदनी है। पिछले तीन दशकों के दौरान वैश्विक स्तर पर इस गरीबी को कम करने के संदर्भ में तेजी से प्रगति देखी गई, जिसका कारण चीन द्वारा अत्यधिक गरीबी को पूरी तरह खत्म करना है। वर्ष 1990 में दुनिया की 38 प्रतिशत आबादी अत्यधिक गरीब थी, वर्ष 2024 में यह संख्या 8.5 प्रतिशत रह गई पर वर्ष 2030 में यह आबादी 7.3 प्रतिशत होगी। वर्ष 2019 के बाद से अत्यधिक गरीबी के आँकड़े ठहर गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्ध, कर्ज, जलवायु परिवर्तन और महामारी के कारण अत्यधिक गरीबी बढ़ती जा रही है और अब परंपरागत नीतियों से इसे खत्म नहीं किया जा सकता है।
औद्योगिक देशों में अत्यधिक गरीबी का पैमाना 6.85 डॉलर प्रतिदिन, यानि लगभग 480 रुपये, की आमदनी है। इस स्तर तक पूरी दुनिया को पहुँचने में 100 वर्षों से भी अधिक का समय लगेगा। इस समय दुनिया की लगभग आधी आबादी 6.85 डॉलर प्रतिदिन से काम कमा पाती है। इस रिपोर्ट में आर्थिक असमानता की चर्चा भी की गई है। पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास से एक आश्चर्यजनक विरोधाभास उभरता है – अत्यधिक अमीरों की संख्या और संपत्ति के साथ ही अत्यधिक गरीबों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। दुनिया की 49 प्रतिशत आबादी अत्यधिक आर्थिक असमानता वाली अर्थव्यवस्था में रहती है, एक दशक पहले यह संख्या 66 प्रतिशत थी। दुनिया में सर्वाधिक अमीर 1 प्रतिशत आबादी की संपत्ति 95 प्रतिशत आबादी से भी अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में अत्यधिक गरीबी सरकारी आंकड़ों में कम होती जा रही है, पर हरेक ऐसी रिपोर्ट में सरकार आंकड़ों के लिए अलग-अलग तरीके अपनाती है, जिससे एक-दूसरे से तुलना करना असंभव हो जाता है। हमारे देश में मोदी सरकार के अंतिम आदमी तक पहुँचने के तमाम दावों के बीच आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ी है और साथ ही गरीबी भी। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रतिदिन 6.85 डॉलर से, यानी लगभग 480 रुपये से काम आदनी वाली आबादी वर्ष 1990 की तुलना में वर्ष 2024 में बढ़ गई है।
देश की गरीबी और साथ ही भुखमरी का मंजर तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भी नजर आता है। आयरलैंड की संस्था कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्थहंगरलाइफ द्वारा संयुक्त तौर पर तैयार किए गए इस इंडेक्स में भारत को कुल 27.3 अंक दिए गए है, जो गंभीर भुखमरी की श्रेणी को दर्शाता है। कुल 127 देशों के इस इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु भारत 105 वें स्थान पर है। हमारे पड़ोसी देशों में से केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे भी पीछे हैं।
दुनिया के 42 देश ऐसे हैं, जहां भुखमरी की स्थिति गंभीर है, जिसमें भारत भी एक है। इस इंडेक्स में अफगानिस्तान 116वें, पाकिस्तान 108वें, भारत 105वें, बांग्लादेश 84वें, म्यांमार 74वें, नेपाल 68वें और श्रीलंका 56वें स्थान पर है। चीन इंडेक्स में शीर्ष पर काबिज 22 देशों में शामिल है, जिनके अंक 5 से कम हैं। इस इंडेक्स में अंतिम 5 देश हैं – दक्षिण सूडान, बुरुंडी, सोमालिया, येमेन और चाड।
इंडेक्स में भारत को 27.3 अंक मिले हैं। देश की 13.7 प्रतिशत आबादी कुपोषित है, 5 वर्ष से काम उम्र के बच्चों में से 35.5 प्रतिशत की ऊंचाई और 18.7 प्रतिशत का भार सामान्य से कम है, देश में 2.9 प्रतिशत शिशु अपना 5वां जन्मदिन भी नहीं देख पाते। देश में वर्ष 2008 में 35.2 प्रतिशत आबादी भुखमरी की चपेट में थी, वर्ष 2016 तक इस आबादी में से 6 प्रतिशत आबादी बाहर हो गई और 29.3 प्रतिशत आबादी भुखमरी के दायरे में रह गई। इस अवधि के अधिकतर समय में मनमोहन सिंह की सरकार थी, जिसे नरेंद्र मोदी लगातार देश की बर्बादी का काल बताते हैं। वर्ष 2016 से वर्ष 2024 के बीच मोदी सरकार तमाम खोखले दावों और हरेक तरफ फैले विज्ञापनों के बाद भी भुखमरी से जूझती आबादी को 29.2 प्रतिशत से 27.3 प्रतिशत तक ही पहुंचा पाई।
मोदी सरकार केवल विज्ञापनों और खोखले दावों पर आधारित विकास की बात करती है। वास्तविकता तो यह है कि गरीबी, आर्थिक और लैंगिक असमानता और कुपोषण के संदर्भ में अमृत काल के स्वर्णिम अध्याय का भारत वाकई में विश्वगुरु है।
संदर्भ :
1. https://hdr.undp.org/content/2024-global-multidimensional-poverty-index-mpi#/indicies/MPI
2. World Bank. 2024. Poverty, Prosperity, and Planet Report 2024: Pathways Out of the Polycrisis. Washington, DC: World Bank. doi:10.1596/978-1-4648-2123-3.
3. https://www.globalhungerindex.org/2024/india.html