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पर्यावरण

घर के आंगन में भी सुरक्षित नहीं उत्तराखंड का बचपन, अलग राज्य बनने के बाद से वन्यजीवों के हमले में एक हजार से ज्यादा मौतें, सबसे ज्यादा गुलदार के शिकार

Janjwar Desk
13 May 2023 8:31 AM GMT
घर के आंगन में भी सुरक्षित नहीं उत्तराखंड का बचपन, अलग राज्य बनने के बाद से वन्यजीवों के हमले में एक हजार से ज्यादा मौतें, सबसे ज्यादा गुलदार के शिकार
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वन्यजीवों के हमले में मारे गये और घायल हुए लोगों को सरकार द्वारा दिये जाने वाले मुआवजे की राशि बढ़ाए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन

सल्ट में एक घायल हुई महिला को यह कहकर आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं दिया गया कि आपको सरकार से मुआवजा मिलेगा, लेकिन सरकार की ओर से मिलने वाला मुआवजा इतना कम था कि उससे ईलाज कराना संम्भव ही नहीं हुआ। जानवर के हमले में मनुष्य की मौत होने पर बीमा कंपनियां भी यह कहकर लाभ देने से इनकार करती हैं कि सरकार मुआवजा दे तो रही है....

सलीम मलिक की रिपोर्ट

रामनगर। एक सप्ताह पहले शनिवार की शाम उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से सटे विकासनगर इलाके के एक शंकरपुर गांव में घर के आंगन में खेलते 4 साल के मासूम बच्चे अहसान की गुलदार के हाथों हुई मौत न तो इस राज्य का पहला हादसा है और न ही आखिरी। विकासनगर से लेकर सुदूर पिथौरागढ़ तक के गांवों की यही पहचान है कि अपने परिजनों के बिखरे खून के निशानों के सहारे ग्रामीण अपनों के शवों के टुकड़े बटोरने को अभिशप्त हैं। विकासनगर की इस घटना के लिए जिम्मेदार माने जा रहे गुलदार को दो दिन पहले बृहस्पतिवार 11 मई की सुबह पकड़ लिया गया है। लेकिन चप्पे चप्पे पर मौजूद हिंसक वन्यजीवों के कारण अगला हादसा कब और कहां हो जाए, कोई नहीं जानता। प्रदेश में बढ़ता वन्यजीवों का आंकड़ा भले ही वाइल्ड लाइफ के लिए सुखद हो, लेकिन राज्य के लोगों के यह ऐसा अभिशाप बन गया है जो अब तक एक हजार से लोगों की जिंदगियां लील चुका है। पांच हजार लोग वन्यजीवों के हमले का दंश झेलकर जी रहे हैं। यह आंकड़े सूचना अधिकार के तहत खुद वन विभाग के हैं।

हल्द्वानी शहर के गोरखपुर तिकोनिया में रहने वाले राज्य के प्रतिष्ठित सूचना अधिकार कार्यकर्ता हेमंत सिंह गौनिया ने उत्तराखंड के वन विभाग से राज्य स्थापना से लेकर वर्तमान तक बाघ, गुलदार, हाथी, भालू, मगरमच्छ, जंगली सूअर आदि वन्यजीवों के हमले में मारे और घायल किए गए लोगों की जानकारी मांगी थी। इसी के साथ गौनिया ने वन्यजीवों के हमले में मारे और जख्मी किए गए लोगों को दिए गए मुआवजे की भी जानकारी मांगी थी। गौनिया को उपलब्ध कराए गए आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 1060 लोग (21 अप्रैल 2023 तक) वन्यजीवों के हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं। जबकि इस अवधि में 4,923 लोग वन्यजीवों के हमले में घायल हो चुके हैं।

तराई भावर में बाघ और हाथी तो पर्वतीय क्षेत्र में गुलदार का है खौफ

भौगौलिक तौर पर उत्तराखंड तीन हिस्सों में बंटा है। अधिकांश हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र में शामिल है तो कुछ हिस्सा मैदानी क्षेत्र में आता है। पहाड़ और मैदान के बीच की पट्टी भावर क्षेत्र कहलाती है। मैदानी और भावर के इलाकों में बाघ, गुलदार, हाथी जैसे वन्यजीवों का प्रकोप है तो पहाड़ों में गुलदार और भालू का आतंक सिर चढ़कर बोलता है। राज्य स्थापना के समय प्रति माह औसतन दो मौत प्रदेश में वन्यजीवों के हमलों में होती थी। जो बढ़कर अब छः से अधिक हो चुकी हैं। पिछले साल ही 82 लोगों को वन्यजीवों के हमले में अपनी जान गंवानी पड़ी थी। जबकि वन्यजीवों के हमलों में हर माह औसतन करीब पांच लोग घायल होते थे। जो की बढ़ते बढ़ते पांच गुना (2022 में 325 घायल) हो गया है। साल 2016 में तो यह आंकड़ा 368 तक पहुंच चुका था।

चप्पे चप्पे पर है गुलदार की दहशत

यूं तो वन्यजीवों के हमले में हुई मौतों के लिए कई वन्य जीव जिम्मेदार माने जाते हैं, लेकिन इन सबमें गुलदार सर्वाधिक घातक साबित हो रहा है। साल 2000 से लेकर 21 अप्रैल 2023 तक अकेले गुलदार के हमले में ही 501 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जबकि इसके एक तिहाई से अधिक लोग (1,698) गुलदार के हमले में जख्मी हो चुके हैं। गुलदार के हमले में साल 2003 सर्वाधिक मौतें 33 (दो माह में औसतन पांच) दर्ज हैं। जबकि साल 2017 में 9 मौत गुलदार के हमले में हुई हैं। वन्यजीवों के हमले में हुई मौतों की वजहों में हाथी का नंबर दूसरे स्थान पर है। जिसके हमले में 208 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं तो 213 लोग हाथी के हमले की चपेट में आकर घायल हो चुके हैं।

वन्य जीवों के हमलों की रिपोर्ट

हाथी के हमलों से हुई मौतों के मामले में साल 2011 अधिक संवेदनशील रहा। 21 लोगों की मौत इस साल हाथी के हमले में हुई। राज्य में साल 2013 से पहले सांप के काटे जाने की वजह से हुई मौतों का कोई आंकड़ा नहीं है। लेकिन इसके बाद के कुल दस सालों में भी सर्पदंश से हुई मौतों संख्या कुछ कम नहीं है। साल 2013 से अब तक 187 लोग सर्पदंश की वजह से मारे जा चुके हैं। जबकि सांप के काटे जाने की कुल 602 घटनाएं रिपोर्ट हुई हैं। बाघों के हमले में अभी तक कुल 77 मौतें हुई हैं तो 117 लोग इसके हमले में घायल हुए हैं। पिछले साल 2022 में ही 16 मौतें बाघ के हमले के कारण हुई थी। भालू के हमले में 59 लोगों की मौत हुई है। जबकि भालू के हमले में घायल हुए लोगों की संख्या कुल घायलों की एक तिहाई से अधिक यानी 1,760 है। साल 2000, 2007 और 2022 ही ऐसे साल रहे हैं, जब भालू के हमले में किसी की जान नहीं गई। इसके अलावा जंगली सूअर, मगरमच्छ, मधुमक्खी आदि के हमलों में भी कुल 35 मौत हो चुकी हैं। इनके हमले में घायल होने वाले लोगों की संख्या 586 है।

दस साल में एक अरब से अधिक का मुआवजा भी बांट चुका है वन विभाग

एक तरफ जहां लोगों की जिंदगी पर वन्यजीवों का खतरा बरकरार है तो दूसरी तरफ वन विभाग ऐसे हादसों को टालने के लिए जंगलों की तारबाड़, पत्थरों की दीवार, सोलर फेंसिंग, सुरक्षा गश्त जैसे तमाम उपाय भी करता है। हादसे के बाद मुआवजे का भी प्रावधान है। बीते दस सालों में ही वन विभाग एक अरब रुपए से अधिक की धनराशि मुआवजे के तौर पर बांट भी चुका है। वन्य जीवों के हमले के अलावा हेमंत गौनिया ने वन विभाग से मुआवजे की राशि बांटे जाने की भी सूचना मांगी थी। गौनिया का सवाल था कि राज्य बनने से लेकर अब तक शासन से विभाग को लाभार्थियों को मुआवजा देने के लिये कितना बजट मिला, कितना खर्च हुआ, कितना शेष रहा, सम्पूर्ण विवरण सत्यापित कर सत्य प्रतिलिपि उपलब्ध करायें। जिसके जवाब में विभाग का कहना है कि राज्य बनने से लेकर वर्ष 2011-12 तक मानव वन्यजीव संघर्ष की सूचना इस कार्यालय में नहीं है। चूंकि मानव वन्यजीव संघर्ष राहत वितरण निधि नियमावली नवम्बर-2012 से लागू हुई है। अतः मानव वन्यजीव संघर्ष के अन्तर्गत वन विभाग को वर्ष 2012-13 से वर्ष 2022-23 तक ₹11863.51 लाख का बजट विभाग को प्राप्त हुआ है, जिसके सापेक्ष ₹10890.67 लाख की धनराशि व्यय हुई है एवं ₹937.50 लाख की धनराशि ब्याज रहित शासन को समर्पित की जा चुकी है तथा नियोजन कार्यालय स्तर पर ₹35.34 लाख की धनराशि अवशेष है।

मुआवजा बढ़ाए जाने और प्रक्रिया के सरलीकरण की मांग

यूं तो पूरे उत्तराखंड की आबादी वन्य जीवों के आतंक से त्रस्त है। वक्त बेवक्त वन विभाग के खिलाफ आधे अधूरे मुआवजे को लेकर आंदोलन होते रहते हैं। लेकिन अल्मोड़ा जिले का सल्ट क्षेत्र इन दिनों गुलदार और बाघ के खौफ से सहमा हुआ है। कल बुधवार को ही इस इलाके में महिलाओं ने वन विभाग के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करते हुए मुआवजा बढ़ाए जाने और उसकी प्रक्रिया का सरलीकरण किए जाने की मांग उठाई है।

रचनात्मक महिला मंच की अध्यक्ष निर्मला देवी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य में मानव- वन्यजीव संघर्ष निरन्तर बढ़ रहा है। इस संघर्ष की वजह से हमारी जान, कृषि व पशुपालन भारी संकट में है। सल्ट विकास खण्ड के निवासी इस संघर्ष से बुरी तरह प्रभावित हैं। सल्ट में हाल ही के महीनों में एक महिला बाघ के हमले में घायल हुई व 2 महिलाओं की मौत हुई। हम लोग जंगली जानवरों की वजह से आतंकित हैं व सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे है। हम अपने छोटे बच्चों को आगनवाड़ी केन्द्र व स्कूल भेजने में डर रहे हैं इससे हमारे बच्चों का भविष्य भी संकट में है। खेतों में काम करने व जंगलों से पशुओं के लिए घास लेने जाने की हमारी हिम्मत नहीं है। इससे हमारी कृषि व पशुपालन तबाही के कगार पर है, जबकि रचनात्मक महिला मंच कि सचिव सुनीता देवी का कहना है कि जंगली जानवर के हमले में मनुष्य की मौत होने पर 4 लाख रुपए मुआवजे का प्रावधान बेहद कम है। मौत से होने वाले नुकसान को किसी भी धनराशि से पूरा नहीं किया जा सकता है। लेकिन सल्ट विकासखण्ड में हुई दो मौत के मामले में हमने देखा है कि इंसानी मौत होने पर 4 लाख की धनराशि परिवार को संभालने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है। इसके साथ ही जानवर के हमले से घायल होने वाले व्यक्ति के ईलाज के लिए मिलने वाली राशि भी बहुत कम है।

सल्ट में एक घायल हुई महिला को यह कहकर आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं दिया गया कि आपको सरकार से मुआवजा मिलेगा, लेकिन सरकार की ओर से मिलने वाला मुआवजा इतना कम था कि उससे ईलाज कराना संम्भव ही नहीं हुआ। जानवर के हमले में मनुष्य की मौत होने पर बीमा कंपनियां भी यह कहकर लाभ देने से इनकार करती हैं कि सरकार मुआवजा दे तो रही है। वन पंचायत थला के सरपंच प्रयाग दत्त के मुताबिक जंगली जानवरों से खेती को होने वाले नुकसान का मुआवजा लेने कि प्रक्रिया इतनी दुरह है कि हममें से कोई भी आज तक इस मुआवजे को नहीं ले पाया है।

रचनात्मक महिला मंच ने जंगली जानवर के हमले से होने वाली मनुष्य की मौत का मुआवजा 25 लाख रुपए किए जाने, जंगली जानवरों के हमले में घायल होने वाले व्यक्ति के इलाज का पूरा खर्च सरकार द्वारा वहन करने, जंगली जानवरों के हमले में मरने वाले खच्चर के लिये 1 लाख रुपए, गाय/भैंस के लिये 50 हजार रुपए व बकरी के लिये 20 हजार रुपए का मुआवजा किए जाने की मांग करते हुए कहा है कि जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले नुकसान का मुआवजा भी न केवल बढ़ाया जाए, बल्कि इस मुआवजे को प्राप्त करने की प्रक्रिया को भी आसान किया जाए, जिससे ग्रामीण मुआवजा का दावा कर मुआवजा ले सके। इसके अलावा पंचायती वनों को पूरी तरह ग्रामीणों को सौंपने और उनके लिये हर वर्ष ग्राम पंचायतों को मिलने वाली वित्त की निधि की तर्ज पर विकासात्मक गतिविधियों के लिये निधि की व्यवस्था करने की मांग भी रचनात्मक महिला मंच की ओर से की गई है।

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